इसका दूसरा नाम – डामियाना ( damiana ) है। जिस उद्देश्य से कविराज सब मदनानन्द मोदक, कामेश्वर वटिका इत्यादि बाजीकरण और शुक्रवर्धक औषधियाँ तैयार करते हैं, होमियोपैथी में इसी उद्देश्य से ही इस दवा का व्यवहार होता है। स्नायविक दुर्बलता की वजह से इन्द्रिय-शक्ति का घटना, ध्वजभंग ( इस बीमारी में पुरुषत्व घट जाता है, लिंग में कड़ापन नहीं आता ), वृद्धों की धारणाशक्ति की कमी, पाखाना और पेशाब में वेग देने के समय शुक्र-पतन इत्यादि नाना प्रकार के जननेन्द्रिय की बीमारी में बहुत सफलता के साथ इसका व्यवहार होता है। धातुदौर्बल्य में कुछ अधिक दिनों तक इसका व्यवहार करना उचित है। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर युवती स्त्रियों की ऋतु-सम्बन्धी नाना प्रकार की बीमारियाँ आरोग्य हो जाती है और ऋतुस्राव स्वाभाविक रूप से होने लगता है।
शुक्र-क्षय के कारण उत्पन्न बीमारियों में – ऐसिड फॉस के इस्तेमाल करने से मालूम होता है कि उनसे ही रोगी बिलकुल आरोग्य ही जायगा, पर वैसा नहीं होता, ऐसे स्थान पर मैं टर्नेरा Q की 10 बून्द पानी के साथ सवेरे और संध्या में एवेना Q की 10 बून्द पानी के साथ सेवन करने को देता हूँ। इससे 3-4 सप्ताह में ही फायदा होते देखा गया है।
साधारणतः ध्वजभंग की बीमारी, अमिताचार, इन्द्रिय-दोष और प्रमेह, बवासीर, कृमि, बहुमूत्र प्रभृति बीमारियों से उत्पन्न होती है। अतएव इस बीमारी को आरोग्य करने के लिये रोगी को अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखना होगा, कु-अभ्यास, कु-संसर्ग दूर रखना होगा और पुष्ट करने वाली चीजें खाना होगा। अगर कोई दूसरी बीमारी इस बीमारी का कारण हो, तो उसकी चिकित्सा करानी चाहिये और नियमित रूप से दवा खाने के साथ ही साथ उड़द ( अन्दाजन एक छटाँक ) गाय के घी में भूनकर दूध में औंटाकर, चीनी या मिश्री की बुकनी डालकर रोज एक बार एक महीने तक भोजन करना चाहिये। पूँटी मछली को धीमें तलकर खाने से वीर्य गाढ़ा और रति-शक्ति बढ़ती है।
लाइकोपोडियम – छोटी उमर में अधिक स्त्री-संसर्ग कर या हस्त मैथुन इत्यादि अस्वाभाविक उपाय से इन्द्रिय-चालन कर जब क्रमश: पुरुषत्व-हीनता या ध्वजभंग हो जाता है, बहुत ज्यादा इच्छा रहने पर भी वासना की तृप्ति नहीं होती, लिंग शिथिल, ठण्डा और छोटा हो जाता है, लिंग में कड़ापन नहीं आता, थोड़ा-सा कड़ापन आकर फिर शिथिल हो जाता है, उस समय लाइकोपोडियम से फायदा हो सकता है। बहुत अधिक वीर्यक्षय के कारण स्मरण-शक्ति घट जाने पर महात्मा हैनिमैन नक्स, सल्फर, कैल्केरिया और लाइको – ये चार दवाएँ लक्षण-भेद से व्यवहार करने का उपदेश देते हैं ।
ल्युप्युलस – यह दवा एक तरह की साग-सब्जी से तैयार होती है । जननेन्द्रिय की कमजोरी और बच्चों के कामला ( jaundice ) की बीमारी में यह बहुत फायदेमंद है। इस दवा का उग्रवीर्य ( lupulin ) 2x शक्ति का एक ग्रेन मात्रा में रोज दो-तीन बार सेवन करने पर स्पर्माटोरिया (पाखाना-पेशाब के समय काँखने पर शुक्र निकलना ), इन्द्रिय और धातुदौर्बल्य, अत्यधिक तकलीफ देने वाला लिंग का कड़ापन ( painful erection ), हस्त मैथुन के बाद इस तरह का लिंगोद्र के, मूत्रनली के भीतर जलन प्रभृति कई बीमारियों में इससे फायदा होता है। अगर टर्नेरा वगैरह दवाओं से फायदा न हो तो इसकी परीक्षा करें।
क्रम – Q से छठी शक्ति ( ट्रिब्यूलस, एवेना प्रभृति भी इस बीमारी की उत्कृष्ट दवाएँ हैं। )
टर्नेरा Q – 10 से 20 बून्द, आधे छटाँक पानी के साथ सवेरे और संध्या दो बार सेवन करना चाहिए। गिरकर मेरुदण्ड में चोट, वृद्धों का पेशाब का वेग धारण न कर सकना, दिन-रात बून्द-बून्द कर पेशाब टपकना, स्वप्नदोष, अनजाने में शुक्र-क्षरण ( spermatorrhoea ) इत्यादि उपसर्गों की बढ़िया दवा है।