यह दवा – साधारणतः स्नायुमण्डल, आँख और श्वासयन्त्र के ऊपरी अंश पर ज्यादा क्रिया प्रकट करती है। स्नायुमण्डल पर क्रिया रहने के कारण जहाँ ऐसा दिखाई दे कि रोगी के अंग-प्रत्यंग में ताकत नहीं है, चलने में ठोकर खाता है, पैर शुन्य में गिरते हैं, काँपते या सुन्न हो जाते हैं, रोगी आँख मूंदकर खड़े रहने पर गिर जाता है (ये लोकोमोटर – एटेक्सी के लक्षण है) वही इसका प्रयोग करें, इससे फायदा होगा। आँख की बीमारी में – ‘ऐट्रोपिया’ की अपेक्षा यह कहीं ज्यादा फायदा करती है। इसलिए- आइराटिस (चक्षुतारा – प्रदाह) आदि आँख की बीमारियों में – जहाँ ऐट्रोपिया की ज़रूरत हो वहाँ इसकी – १/८० से १/२० ग्रेन की मात्रा का हाइपोडर्मिक इंजेक्शन दिया जाता है।
शक्तिकृत औषघ का सेवन करने से – नयी या पुरानी दोनों ही प्रकार की आँख आने की पीड़ा ( conjunctivities ), रेटिना ( चक्षुगोलक के पीछे की झिल्ली ) में खून की अधिकता, आँख के उपरी भाग में और भौंह के बीच के दर्द में फायदा होता है। श्वासयन्त्र के उपरी अंश में इसकी क्रिया होने के कारण इससे – स्वर यन्त्र का सूखापन, गले में भारीपन, सूखी खांसी के साथ सांस में तकलीफ इत्यादि उपसर्ग दूर हो जाते हैं। फैरिन्जाइटिस की बीमारी में काले रंग का और गोंद जैसा बलगम निकलने पर – इससे फायदा होता है। ज्वर विकार में इस दवा में बैप्टि, आर्नि, एसिड फॉस, हायोसि आदि दवा के सारे लक्षण पाए जाते हैं।
क्रियानाशक – मोर्फ़िया, पाइलोकार्पिन।
Duboisia होम्योपैथिक मेडिसिन का कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है, परन्तु फिर भी इस दवा का सेवन डॉक्टर के परामर्श के साथ ही करें।
क्रम – 3 शक्ति।