नेट्रम म्यूर के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Natrum Mur uses in hindi )
लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी से रोग में वृद्धि |
हिस्टीरिया के-से लक्षण; कभी रोना कभी हंसना | खुली हवा से रोग में कमी |
मन का विवश हो जाना, किसी विचार को छोड़ न सकना; शोक, भय, क्रोध के दुष्परिणाम | ठंडे पानी से स्नान से कमी |
सहानुभूति से रोगी का क्रुद्ध हो उठना | दायीं करवट लेटने से रोग में कमी |
पुष्टिकारक भोजन खाने पर भी दुबला होते जाना | लक्षणों में वृद्धि |
लड़कियों की रक्तक्षीणता (Chlorosis and Anemia) | समुद्र-तट या समुद्री नमकीन हवा से रोग का बढ़ जाना |
सूर्योदय के साथ सिर-दर्द होना और सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाना | 10-11 बजे प्रात:काल रोग का बढ़ जाना |
सविराम-ज्वर (मलेरिया) में 10 बजे प्रात: ज्वर आना | सूर्य की गर्मी से रोग में वृद्धि |
छींकों के साथ बहने वाला कच्चे अंडे की सफेदी-जैसा जुकाम | सहानुभूति से रोग में वृद्धि |
नमक के लिये विशेष चाह होना |
(1) हिस्टीरिया के-से लक्षण; कभी रोना कभी हंसना – यद्यपि यह रोजमर्रा का शक्तिकृत नमक है, तो भी यह अत्यंत गहन-क्रिया करने वाली औषधि है। शक्तिकृत होकर यह नमक जीवन के स्रोत पर प्रहार करता है। इस औषधि की रोगिणी में हिस्टीरिया के से लक्षण पाये जाते हैं – कभी रोना, कभी हँसना, ऐसी बात पर हँसना जिसमें हँसने की कोई बात नहीं है। हँसने का देर तक दौर-सा पड़ जाना, और बाद को रोने लगना, उदास हो जाना, खुशी का नामोनिशान तक न रहना।
(2) मन का विवश हो जाना, किसी विचार को छोड़ न सकना; शोक, भय, क्रोध के दुष्परिणाम – रोगिणी का मन उसके काबू मे नहीं रहता, वह विवश हो जाती है, जो विचार उसे पकड़ लेता है, ऐसा जकड़ता है कि वह लाख किये छूटता ही नहीं। उदाहरणार्थ, अविवाहिता लड़की किसी विवाहित व्यक्ति के प्रेम में फंस जाती है। वह जानती है कि यह भावना मूर्खतापूर्ण है, परन्तु उसी के प्रेम में रात भर नींद नहीं आती। कोई लड़की अपने ड्राइवर के प्रेम में फंस जाती है, जानती है कि यह अनुचित कार्य है परन्तु अपने को विवश पाती है। प्रेम ही नहीं, कोई भी विचार पकड़ ले, छुड़ायें न छूटे, तो इस औषधि की एक मात्रा सारी विचारधारा को बदल देती है और रोगी का जब उस विचार से पीछा छूट जाता है, तब वह आश्चर्य करने लगता है कि उसे हो क्या गया था। इस रोगी का मन कमजोर हो जाता है – इसीलिये इस प्रकार की बातें होती हैं।
शोक, भय, क्रोध के दुष्परिणाम – रोगी किसी बात से भी मन को दुःखी करने लगता है, बिना बात के दु:खी होता है। पुरानी बातों को उखाड़ने लगता है, उन्हीं को याद करके दु:खी होता है। कितनी ही सान्त्वना दी जाय, दु:खजनक घटनाओं को स्मृति-पथ में ताजा करता है और दु:ख मनाता रहता है मानो उसे इस प्रकार के रंज मानने में भी कोई सुख मिलता है। छोटी-छोटी बातों को लेकर उनहें बड़ा बनाकर हाय-हाय किया जाता है। क्रोध के मारे आग बबूला हो जाता है। शोक, भय, क्रोध आदि उद्वेगों को मन-ही-मन दबा रखने से जब कोई मानसिक-रोग उत्पन्न हो जाय, तब इस औषधि को स्मरण करना चाहिये। उदाहरणार्थ, घरों में सास-बहू का बर्ताव अच्छा न हो, तो बहू अन्दर-ही-अन्दर घुन की तरह गलती-सड़ती, घुटती रहती है। उसे इस घुटन से दु:ख मिश्रित क्रोध तथा सास या पति से भय के कारण क्षय रोग हो सकता है, हिस्टीरिया हो सकता है। इस प्रकार के शोक, भय, क्रोध से जो रोग उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें नवीन रोगों में इग्नेशिया और पुराने रोगों में नेट्रम म्यूर उपयुक्त औषधि है। नेट्रम म्यूर को इसीलिये इग्नेशिया का क्रौनिक कहा जाता है। अगर रोग हरा हो, तो शुरू में ही नेट्रम म्यूर दे देना उचित है।
(3) सहानुभूति से रोगी का क्रुद्ध हो उठना – इस रोगिणी का मन अत्यंत चिड़चिड़ा (irritable) होता है। जरा-जरा सी बात पर उत्तेजित हो उठती है, रोने लगती है। रोते रहना और उदास, खिन्न, दु:खी हो जाना – ये दोनों इसके चरित्रगत लक्षण हैं। उसे पता नहीं कि वह क्यों रोती रहती है, एकान्त में जा बैठती है और आंसू बहाया करती है। लोग यह समझते हैं कि उसके दु:ख में उसके साथ सहानुभूति दर्शायेंगे तो उसका दु:ख कम होगा, परन्तु नहीं, सहानुभूति उसे और चिढ़ा देती है। यही कारण है कि वह एकान्त ढूंढ़ा करती है, अकेली बैठी रोया करती है, चुप रहती है, गुमसुम। यह लक्षण सीपिया में भी है। इसके विपरीत पल्सेटिला भी रोती है, परन्तु वह अपना दु:ख प्रकट करती रहती है क्योंकि वह सहानुभूति चाहती है। नेट्रम म्यूर और पल्स दोनों रोती रहती हैं, परन्तु पल्स सहानुभूति चाहती है, नेट्रम म्यूर और सीपिया नहीं। सीपिया सर्द-प्रकृति की है, नैट्रम म्यूर तथा पल्स गर्म-प्रकृति की हैं।
(4) पुष्टिकारक भोजन खाने पर भी दुबला होते जाना – दुबला होने और शरीर पर से मांस के क्षीण हो जाने में इसका अन्य मुख्य-औषधियों में अपना ही स्थान है। बच्चा अच्छा खाता-पीता है, और फिर भी उसके शरीर पर खाया-पीया लगता नहीं, वह दुबला होता जाता है। यह दुबलापन भी अजीब किस्म का होता है। गले की हड्डियां चमकने लगती हैं, गला सिकुड़ जाता है, अत्यंत पतला, नीचे के अंग-धड़ आदि मोटे बने रहते हैं। बच्चा ऊपर से सूखना शुरू करता है, यह सूखना ऊपर से नीचे को जाता है। इतनी भूख और इतना दुबलापन-यह देखकर आश्चर्य होता है। खाने के बाद रोगी थक जाता है, निद्रालु हो जाता है, पेट में भारीपन महसूस होता है, पेट और जिगर में बेचैनी लगती है, और ज्यों-ज्यों भोजन पचता जाता है रोगी को आराम मिलता है।
दुबला होने में जो मुख्य-मुख्य औषधियां हैं उनकी गणना हम एब्रोटेनम में कर आये हैं और उनके लक्षण भी वहां दिये गये हैं।
(5) लड़कियों की रक्तक्षीणता (Chlorosis and Anemia) – जैसे बच्चों के या युवकों के दुबलेपन में यह औषधि उपयोगी है, वैसे ही लड़कियों की रक्तक्षीणता में इसका उपयोग है। लड़की का रंग पीला पड़ जाता है। माहवारी दो-तीन महीने में एक बार होती है। रज:स्राव जब होता है तब या तो बहुत अधिक होता है, या पनीला होता है, और थोड़ा होता है। अंगुली में चाकू लग जाय, तो खून क्या, पानी जैसा रुधिर निकलता है। मासिक-धर्म क्या, प्रदर का-सा स्राव जाता है। यह भयंकर रक्तक्षीणता-एनीमिया-की हालत है। नेट्रम म्यूर देने से रोगी का जीवन-स्रोत सुधर जाता है, और फीके रंग की लड़की पर लालिमा छा जाती है। परन्तु स्वास्थ्य में यह परिवर्तन जल्दी नहीं आता, इसमें समय लगता है क्योंकि यह औषधि जहां जीवनीशक्ति के गहरे स्रोत पर पहुंचती है वहां इसे अपने प्रभाव को जाहिर करने में समय लगता है।
होम्योपैथी में औषधि का चुनाव करते हुए सिर्फ लक्षणों को ही नहीं देखना होता, लक्षणों के साथ औषधि की चाल को भी देखना होता है। औषधि की चाल और रोग की चाल में समता होना आवश्यक है। औषधि और रोग की चाल से हमारा क्या मतलब है? उदाहरणार्थ, एकोनाइट और बेलाडोना की चाल यकायक होती है, इनमें देर का काम नहीं। जो रोग यकायक होंगे, तेजी से, वेग से होंगे, उन्हीं में एकोनाइट और बेलाडोना कारगर होंगे। अगर बुखार धीरे-धीरे आया, तेजी से और जोर से न आया, जैसा टाइफॉयड में होता है, तब एकोनाइट या बेलाडोना काम नहीं देंगे, भले ही लक्षण क्यों न मिलते हों। ब्रायोनिया और रस टॉक्स की चाल धीमी होती है, यकायक नहीं होती, इसलिये टाइफॉयड में ब्रायोनिया और रस टॉक्स काम देते हैं। इन सब को ध्यान में रखते हुए यह ध्यान रखना चाहिये कि नेट्रम म्यूर का असर धीरे-धीरे होता है, बहुत समय लग जाता है, इसलिये रक्तक्षीणता की उस हालत में जब रोगी धीरे-धीरे आया हो, यह औषधि उपयुक्त है।
रज:स्राव की रक्तक्षीणता से कमजोरी कैलि कार्ब और पल्स में भी पायी जाती है। वीर्य-क्षय में कमजोरी चायना और एसिड फॉस में पायी जाती है।
(6) सूर्योदय के साथ सिर-दर्द होना और सूर्यास्त के साथ समाप्त हो जाना – सिर-दर्द में इस औषधि का स्थान किसी अन्य औषधि से कम नहीं है। विशेषतौर पर रक्त-क्षीण (Anemic) लड़कियों के सिर-दर्द में यह अत्यंत उपयोगी है। रोगी अनुभव करता है कि सैकड़ों हथौड़ों की उसके सिर पर चोट पड़ रही है। कभी-कभी यह सिर-दर्द प्रात: 10-11 बजे शुरू होती है, 3 बजे सूर्य ढलने तक बनी रहती है, तब समाप्त हो जाती है। सिर-दर्द सामयिक (Periodical) होती है – प्रतिदिन, प्रति तीसरे या प्रति चौथे दिन। सिर-दर्द वेग से आता है, समय छोड़-छोड़ कर इसका दौर पड़ता है। इतना तीव्र होता है कि चिकित्सक बेलाडोना देने की सोचता है, परन्तु अगर रोगी का चेहरा पीला हो, वह रक्त-क्षीण हो, तो नेट्रम म्यूर से ही लाभ होगा। अगर चेहरा लाल हो, जल रहा हो, आंखें निकली पड़ रही हों, दर्द के साथ टपकन (Throbbing) हो, तब तो मेलिलोटस, बेलाडोना, नक्स वोमिका की तरफ ध्यान जायगा। नेट्रम म्यूर का सिर-दर्द प्राय: माहवारी के बाद होता है, शायद इसलिये क्योंकि खून जाने से रोगिणी रक्त-क्षीण हो जाती है। इस प्रकार की रक्तक्षीणता के कारण होने वाले सिर-दर्द में चायना भी दिया जा सकता है। स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के सिर-दर्द में नेट्रम म्यूर या कैलकेरिया फॉस उत्तम है। बहुत पढ़ने के बाद होने वाले सिर-दर्द में अर्जेन्टम नाइट्रिकम या रूटा की तरफ ध्यान जाना चाहिये।
(7) सविराम-ज्वर (मलेरिया) में 10 बजे प्रात: ज्वर आना – प्राय: सभी होम्योपैथिक-चिकित्सक जानते हैं कि ज्वर में इस औषधि का महत्वपूर्ण स्थान है। मलेरिया बुखार में, जब ज्वर जड़ से नहीं गया परन्तु कुनीन से दबा दिया गया है, तब इसकी विशेष उपयोगिता है। ऐसे ज्वर में रोगी को सवेरे 10-11 बजे के बीच में ठंड लगने लगती है। ठंड लगने के समय के लक्षण को देखकर अनेक रोगियों को औषधि दी जाती है। उदाहरणार्थ
नेट्रम म्यूर – 10-11 बजे के बीच ठंड लगना शुरू होता है।
युपेटोरियम पर्फ़ – 7 बजे प्रात: ठंड लगने लगती है।
एपिस – 3 बजे दोपहर ठंड लगने लगती है।
लाइकोपोडियम – 4 बजे शाम ठंड लगने लगती है।
आर्सेनिक – दोपहर या रात 1 बजे से 2 बजे के बीच ठंड लगने लगती है इसमें सन्देह नहीं कि सविराम-ज्वर (मलेरिया) में, और ख़ास कर क्रौनिक मलेरिया में, रोग को दूर करने में सर्वोच्च स्थान नेट्रम म्यूर का है। इस औषधि से सविराम-ज्वर के जितने रोगी ठीक हुए हैं उतने अन्य किसी औषधि से नहीं। दूसरी औषधि जो इस क्षेत्र में नेट्रम म्यूर के आस-पास पहुंचती है, आर्सेनिक है। नेट्रम म्यूर के ज्वर में जो स्पष्ट लक्षण होते हैं, वे निम्न है:
(i) ज्वर का 10-11 बजे के बीच प्रात: ठंड लगने से आक्रमण शुरू होना।
(ii) ठंड पांवों तथा हाथों की अंगुलियों से शुरू होती है।
(iii) ठंड बहुत जबर्दस्त लगने लगती है।
(iv) ठंड, गर्मी, पसीना – इन तीनों हालात में असहनीय सिर-दर्द होता है।
(v) तीनों हालात में जबर्दस्त प्यास होती है – ठंड में भी प्यास लगती है।
(8) छींकों के साथ बहने वाला कच्चे अंडे की सफेदी-जैसा जुकाम – यह जुकाम, बहने वाला, ऐसा जैसे कच्चे अंडे की सफेदी का होता है, शुरू-शुरू में लगा तार तेज छींकें आती है; या यह पनीला होता है, या गाढ़ा सफेद। साधारण तौर पर तो यह पनीला ही होता है, परन्तु कई नजले के क्रौनिक रोगियों का स्राव गाढ़ा सफेद होता है। डॉ० बोरिक ‘मैटीरिया मैडिका’ में लिखते हैं कि अगर जुकाम छींकों के साथ शुरू हो, तो इस औषधि की 30 शक्ति की एक मात्रा देने से वह रुक जाता है।
(9) नमक के लिये विशेष चाह होना – रोगी को नमकीन वस्तुएं खाने की विशेष चाह होती है। हर वस्तु में नमक चाहता है। घर के लोग जानते हैं कि उसे नमक अधिक चाहिये। कॉस्टिकम और कैलकेरिया में भी नमक के लिये अस्वाभाविक-इच्छा होती है। नेट्रम का रागी समुद्र तट पर या समुद्री हवा में जिसमें नमक अधिक होता है अच्छा नहीं अनुभव करता। उसके रोग का कारण अधिक नमक खाना होता है इसलिये जब समुद्र-तट पर उसे हवा में अधिक नमक मिलने लगता है तब उसकी तबीयत खराब हो जाती है। डॉ० बर्नेट लिखते हैं कि एक रोगी को ‘स्नायु-शूल’ था। जब स्नायु-शूल की सब दवाएं देकर वे हार गये, तब उन्होंने उसे समुद्र-तट पर जाकर रहने की सलाह दी। समुद्र-तट की हवा से उसका रोग और बढ़ गया। इससे डॉ० बर्नेट इस नतीजे पर पहुँचे कि समुद्री हवा ने, जिसमें नमक होता है, नमक के कारण उसे नुकसान पहुँचाया। जो वस्तु जो रोग उत्पन्न करती है, शक्तिकृत होकर वही उसे ठीक भी कर देती है – इस नियम के आधार पर उनहोंने उसे नेट्रम म्यूर 6 शक्ति का दिया और वह झट ठीक हो गया। पल्स के रोगी को नमक का स्वाद अनुभव ही नहीं होता।
नेट्रम म्यूर औषधि के अन्य लक्षण
(i) मुंह का निचला होंठ बीच में फट जाता है, खुश्की रहती है।
(ii) कोई दूसरा सामने हो तो रोगी पेशाब नहीं कर सकता।
(iii) जीभ पर बाल होने का अनुभव होता है।
(iv) जीभ पर नक्शा-सा बना होता है।
(v) प्यास बहुत होती है।
(vi) गले में फांस चुभती-सी लगती है।
(vii) हिचकी को ठीक कर देता है। डॉ० बर्नेट लिखते हैं कि उन्होंने इस औषधि से एक रोगी की 10 साल पुरानी हिचकी दूर कर दी।
(vii) ज्वर में होंठ पर पानी के छाले उभर आते हैं।
(11) नेट्रम म्यूर का सजीव तथा मूर्त-चित्रण – दुबला-पतला, कमजोर, रक्त-शून्य, पीला चेहरा, फीका बदन, शोकातुर, रोने वाला परन्तु सहानुभूति दर्शाने पर बिगड़ जाने वाला, नमकीन चीजों में रुचि, सर्द प्रकृति का परन्तु खुली हवा चाहने वाला, सिर-दर्द तथा कब्ज का रोगी, पुराने नजले की शिकायत-यह है सजीव तथा मूर्त-चित्रण नेट्रम म्यूर का।
(12) शक्ति तथा प्रकृति – 12, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’-प्रकृति लिये है, परन्तु किन्हीं-किन्हीं लक्षणों में ‘शीत’ भी है)