इस पोस्ट में अपने आप पेशाब निकल जाने का होम्योपैथिक इलाज के बारे में बताया गया है।
कारण – मूत्रनली में पक्षाघात हो जाने अथवा मूत्राशय के मुख की संकोचक पेशियों के ढीले पड़ जाने के कारण पेशाब रोकने की शक्ति आंशिक रूप से अथवा सर्वथा कम हो जाती है। इसी कारण पेशाब लगने पर फिर उसे किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता, और बूंद-बूंद पेशाब होने लगता है। प्रसव-कष्ट, पथरी, प्रमेह, कृमि अथवा चोट के कारण भी यह रोग हो सकता है। बच्चों के सोते समय बिस्तर पर ही अनजाने में पेशाब कर देना प्राय: देखा जाता है । यह रोग प्राय: बच्चों में अधिक पाया जाता है ।
चिकित्सा – लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-
फेरम-फॉस 12x – पेशाब का वेग एकदम न रोक पाने के लक्षण में दें।
बेलाडोना 30 – डॉ० सैण्डर्स कैमिल्स के मतानुसार यह इस रोग की मुख्य औषध है । संकोचक पेशी की कमजोरी के कारण इच्छा न होने पर भी पेशाब का हो जाना तथा बालक का सोते समय बिस्तर पर पेशाब कर देना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
कास्टिकम 6, 30 – नींद के पहले भाग में ही बिस्तर पर पेशाब कर देना, प्राय: सर्दी के मौसम में अथवा किसी मानसिक-उत्तेजना के कारण पेशाब का आपने-आप निकल पड़ना आदि लक्षणों में यह लाभकारी है ।
सीपिया 30, 200 – डॉ० फ़ैरिंगटन के मतानुसार बालक द्वारा रात्रि के प्रथम भाग में पेशाब कर देने की यह सर्वश्रेष्ठ औषध है | दुर्गन्धित पेशाब के लक्षण में हितकर है ।
कोनियम 30 – वृद्धों की बीमारी में यह औषध विशेष लाभ करती है।
कैन्थरिस 6 – यह औषध बच्चों तथा वृद्धों की बीमारी में समान रूप से लाभ करती है ।
जेल्सीमियम 6x – मूत्राशय की मुख-शायी ग्रन्थि की वृद्धि अथवा मूत्राशय में पथरी होने के कारण बालक अथवा वृद्धों की स्वत: ही पेशाब निकल जाने की बीमारी में हितकर है ।
पल्सेटिला 30, 200 – रात्रि के प्रथम भाग में पेशाब निकल जाना, विशेषकर स्त्रियों के रोग में यह बहुत लाभकर है। रोगिणी पीठ के बल लेटते ही अपने पेशाब को रोक पाने में असमर्थ हो जाती है, जबकि करवट से सोने पर पेशाब की हाजत नहीं होती । पेशाब लगने पर यदि वह उठने में थोड़ी-सी देर भी करे तो पेशाब अपने आप निकल जाता है । जब तक वह पेशाब को रोकने की ओर अपना ध्यान केन्द्रित रखती है, तब तक पेशाब रुका रहता है । अन्यथा निकल जाता है । छोटे, मृदु-स्वभावी, मोटे-ताजे तथा उष्ण प्रकृति के बालक जो कि सोते समय उढ़ाये गये कपड़े को लात मार कर दूर फेंक देते हैं, उनका अचानक पेशाब निकल जाना भी इस औषध से ठीक हो जाता है । खाँसने, हँसने, छींकने, अत्यधिक प्रसन्नता, आश्चर्यजनक घटना अथवा किसी मानसिक आघात के पेशाब निकल जाने के लक्षणों में भी यह लाभकारी है।
क्रियोजोट 3, 30, 200 – बच्चों का सोते समय अथवा स्वप्न देखते समय अनजाने में पेशाब हो जाना तथा पेशाब का ख्याल आते ही पेशाब करने के लिए भागना-इन लक्षणों में हितकर है ।
रसटाक्स 30, 200 – चलने-फिरने, हरकत करने अथवा काम में लगे रहने तक पेशाब का रुका रहना तथा बैठते ही जोर का पेशाब लगना तथा उसे रोकने के लिए प्रयत्न करना अन्यथा पेशाब का निकल जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।
पेट्रोसिलीनम 3 – एकदम पेशाब करने की इच्छा होना तथा इतनी जोर से पेशाब आना कि बालक ऊपर-नीचे होने लगे-इन लक्षणों में औषध लाभ करती है।
सल्फर 30 – डॉ० ज्हार के मतानुसार यह इस रोग की श्रेष्ठ औषध है। इसके मतानुसार इससे लाभ न हो तो लड़कियों को सीपिया, बेलाडोना अथवा पल्स में से कोई औषध देनी चाहिए तथा छोटे लड़कों को कास्टिकम तथा थुलथुल शरीर वाले लड़कों को कैल्केरिया-कार्ब देना उचित रहता है । जो बच्चे नींद के प्रारम्भ में ही पेशाब कर देते हैं उनके लिए सीपिया अथवा कास्टिकम और जो दिन-रात में चाहे जब अनजाने में पेशाब कर देते हैं उनके लिए बेलाडोना तथा कास्टिकम लाभकर रहती है ।
इग्नेशिया 6 – जिन औरतों को गुल्म-वायु होने के कारण बदहवासी के समय अपने-आप पेशाब निकल जाता हो, उनके लिए इस औषध का प्रयोग हितकर रहता है ।
सिना, स्पाइजीलिया, रस-ऐरीमेटिका-(प्रति मात्रा पाँच बूंद) – कृमि के कारण यह रोग होने पर (विशेष कर बच्चों को) इनमें से किसी भी एक औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
एसिड-फॉस 3, 30 – शुक्र-क्षय रोग के लक्षण तथा अपने-आप पेशाब निकल जाने के लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
विशेष – ऊपर के औषधियों के अतिरिक्त कभी-कभी लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है :- मर्क-सोल 6, इरिजिरन 3, नक्स-वोमिका 3 तथा बेलाडोना 6।
रोगी को सोने से कम से कम तीन घण्टे पूर्व पानी पीना बन्द कर देना चाहिए। इस रोग में चित्त होकर सोना ठीक नहीं रहता । ठण्डे पानी से स्नान करना, कम खाना तथा पतले पदार्थों का अधिक सेवन करना अच्छा हैं । रात में एक बार स्वयं उठ कर पेशाब करना चाहिए । दिन में जब तक पेशाब रोका जा सके, तब तक नहीं करना चाहिए ।