[ एक तरह के वृक्ष के कच्चे पत्तों से इसका टिंचर तैयार होता है। इसमें अर्बुटिन और प्रुसिड एसिड नामाक एक तरह का घातक उदभिज विष रहता है ] – गुर्दा, मसाना, और मूत्रनली आदि पर इसकी प्रधान क्रिया होती है। पुराना मूत्राशय-प्रदाह, पेशाब के साथ पीब, श्लेष्मा, रक्त और यूरिक एसिड निकलना ; मूत्र पथरी, पेशाब में महीन बालू के कण जैसी तली जमना, गुर्दे के भीतर वाली श्लेष्मिक-झिल्ली का प्रदाह ( pyelitis ), इच्छा न रहने पर भी पेशाब निकल जाना, पेशाब करते समय मूत्राशय के ग्रीवा प्रदेश में जलन और बाद में कूथन, थोड़ा पेशाब होना इत्यादि कई बिमारियों की यह एक उत्तम दवा है। रोग की प्रबल अवस्था में शक्तिकृत दवा की अपेक्षा इसका मूल अर्क का 5-10 बून्द की मात्रा में नित्य चार-पांच बार तीन घंटे के अंतर से सेवन कराने से जल्द फायदा होता है। यह सिर के दर्द में भी लाभदायक है।
सदृश – चिमाफिला, पैरिरा, इयुवा आदि।
क्रम – Q और 2x से 3x शक्ति।