युफोर्बिया लैथाइरिस (Euphorbia Lathyris) – पके फल के सूखे बीज से विचूर्ण दवा तैयार होती है – यद्यपि इसका बहुत सी बीमारियों में प्रयोग होता है, तथापि विकार (डिलिरियम), अभिभूत भाव और बिलकुल बेहोशी की हालत में पड़ा रहना (कोमा), आँख की पलक फूल जाने से आँखे बंद हो जाना, इरिथिमा नामक एक तरह का चर्म रोग ( इरिथिमा-रोग में ) – त्वचा में मामूली प्रदाह होकर क्रमशः शरीर पर नाना प्रकार के लाल रंग के दाग निकलते है, जो पहले मुंह से आरम्भ होकर क्रमश: रोयेंदार जगहों में और सात आठ दिन के अंदर सारे शरीर में फ़ैल जाते है, सूजन और जलन होती है, बहुत ज़्यादा मात्रा में पेशाब होना, अण्डकोष का प्रदाह और घाव जिसमे असह्य खुजली और जलन, पहले – खुसखसी खाँसी जैसी खांसी होकर बाद मे हूपिंग खांसी में परिणत हो जाना, खांसते खांसते वमन या दस्त हो जाना; बुखार के बढ़ने के साथ ही साथ बहुत ज़्यादा परिमाण में पसीना होना; हृत्पिण्ड की बीमारी में हृत्पिण्ड का क्षीण पड़ जाना, हृत्पिण्ड के भीतर ऐसा मालूम होना जैसे कोई चिड़िया फड़फड़ा रही है, नाड़ी की गति मिनट में 120 से 125 बार, अनियमित स्थूल नाड़ी इत्यादि कई लक्षणों और बीमारियों में युफोर्बिया लैथाइरिस से बहुत फायदा होता है।
सद्दश – क्रोटॉन, जैट्रो, कॉलचि।
क्रियानाशक – कैम्फर, ओपियम।
क्रम – 3 से 30 शक्ति।