बहरापन का कारण
डॉक्टरों की खोजों के अनुसार बहरेपन (Deafness) का रोग शारीरिक दुर्बलता तथा स्नायु संबंधी गड़बड़ी के कारण होता है। वैसे आमतौर पर सर्दी लगने, कान में तीव्र से तीव्र आवाज पहुंचने, सिर में चोट लगने, मस्तिष्क में चोट लगने, स्नायु दुर्बलता, नहाते समय कान के भीतरी भाग तक पानी का पहुंचना, कान में कठोर मैल की परतों का जमना, कान का बहना, मस्तिष्क या कंठ की बीमारी, पक्षाघात, टाइफाइड, मलेरिया, जुकाम का बार-बार बिगड़ना आदि कारणों से व्यक्ति बहरा हो सकता है। कई बार देखा गया है कि तेज दवाओं के असर के कारण भी बहरापन आ जाता है।
बहरापन का लक्षण
सुनने की शक्ति का कम हो जाना या बिल्कुल सुनाई न देना बहरेपन की सबसे बड़ी पहचान है। इस रोग के कारण कान में तरह-तरह के शब्द सुनाई देते रहते हैं। कभी-कभी रुक-रुक कर आवाजें आती रहती हैं। कई बार कानों में चीखने-चिल्लाने के बाद भी कुछ नहीं सुनाई देता है।
बहरापन का घरेलू उपचार
- लगभग एक माह तक कानों में दालचीनी का तेल डालें।
- फिटकिरी 5 ग्राम, नौसादर 3 ग्राम, कलमी शोरा 10 ग्राम। तीनों को 100 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं। फिर इसे छानकर बंद मुंह की शीशी में भर लें। इसमें से दो-तीन बूंदें रोग प्रभावित कान में नित्य टपकाएं।
- 20 ग्राम आक के सूखे पत्ते लेकर उन पर गोमूत्र के छींटें दें। इसके बाद पत्तों को पीसकर लुगदी बना लें। इस लुगदी को थोड़े-से सरसों के तेल में भून लें। तेल को साफ करके शीशी में भर लें। इस तेल को रोज दोनों कानों में दो-दो बूंदें डालें।
- थोड़ा सा मूली का रस, दो चम्मच सरसों का तेल तथा शहद एक चम्मच । तीनों को मिलाकर एक शीशी में रख लें। इसमें से तीन-चार बूंदें नित्य कानों में डालें।
- अनार के पत्तों का रस आधा लीटर, बिल्व (बेल) के पत्तों का रस आधा लीटर, देसी घी एक किलो। तीनों को आंच पर इतनी देर तक पकाएं कि केवल घी बचा रह जाए। इसमें से नित्य दो चम्मच घी को दूध के साथ तब तक सेवन करते रहें, जब तक बहरापन दूर न हो जाए।
- शुद्ध हींग को पानी में घोलकर नित्य कानों में डालें।
- लहसुन की आठ-दस कलियों को 100 ग्राम तिल्ली के तेल में पकाएं। फिर तेल को छानकर शीशी में रख लें। इस तेल में से दो-तीन बूंदे प्रत्येक कान में कुछ दिनों तक डालते रहें।
- हीरा हींग को गाय के दूध में घिसकर कानों में डालें।
- कान में सफेद प्याज के रस को डालते रहना चाहिए। बहरेपन को दूर करने की यह उत्तम औषधि है।
- सरसों के तेल में धनिया के कुछ दानें पका लें। फिर तेल को छानकर कानों में नित्य डालें।
- तुलसी के पत्तों का रस सरसों के तेल में मिलाकर कान में डालें।
बहरापन का आयुर्वेदिक उपचार
- आक के पत्तों पर घी चुपड़कर उन्हें आग में तपाकर उसका रस निचोड़ लें। इस रस को गुनगुना करके नित्य कान में डालें।
- अदरक का रस एक चम्मच, चुटकीभर सेंधा नमक, शहद एक चम्मच । सबको गर्म करें। फिर ठंडा करके नित्य कान में डालें। इससे कर्ण शूल, बहरापन तथा कान के भीतर की फुसियां ठीक हो जाती हैं।
- लहसुन का रस एक चम्मच, बरना का रस एक चम्मच, अदरक का रस एक चम्मच । इन सबको मिलाकर गर्म करके गुनगुने ही कान में डालें, इससे कान के सभी रोग दूर होते हैं।
- बिल्व तेल, सोंठ, मिर्च (काली), पीपल, कूट, पीपलामूल, बेल की जड़ का रस तथा गोमूत्र। सबको समान मात्रा में लेकर धीमी आंच पर पकाएं। फिर इसे छानकर शीशी में भर लें। इस तेल को ‘बधिरता हर तेल’ कहते हैं। यह तेल कान के सभी रोगों को दूर करता है।
- मिसरी तथा लाल इलायची, दोनों को बारीक पीस लें। फिर इसे दो घंटे तक सरसों के तेल में डालकर रखा रहने दें। दो घंटे बाद इस तेल को छानकर शीशी में भर लें। इस तेल की तीन-चार बूंदे नित्य सुबह-शाम कान में डालें।
- कूट, हींग, बच, सौंफ, दारु हलदी, सोंठ, सेंधा नामक। सब चीजों को समान मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। फिर इन सबको बकरे के मूत्र में मिलाकर तेल में पकाएं। जब सिर्फ तेल ही बचा रह जाए, तो इस तेल को आंच पर से उतार कर छान लें। इस तेल में से तीन-चार बूंदें कान में डालें।
- आंवले के पत्तों का रस, जामुन के पत्तों का रस तथा महुए के पत्तों का रस। सबको लेकर सरसों के तेल में पकाएं। रसों की समान मात्रा एक-एक चम्मच तथा तेल 100 ग्राम होना चाहिए। जब केवल तेल ही बचा रह जाए, ते उसे शीशी में भर लें। इस तेल में से दो-तीन बूंदे नित्य कान में डालें।
- शतावर, असंगध, दूध, अरण्ड की जड़, काले तिलों का तेल। इन सब चीजों को समान मात्रा में लेकर 200 ग्राम सरसों के तेल में पका लें। इसके बाद इसे कान में होने वाली सभी प्रकार की बीमारियों तथा विकारों में प्रयोग करें।
- सुरमा, कलिहारी, बावकी, बर्क पक्षी का मांस। सबको तिल्ली के तेल में धीमी आंच पर पकाएं। जब सभी चीजें जलकर केवल तेल ही बचा रह जाए, तो कान में बूंद-बूंद करके डालें।
सावधानियां और बचाव के उपाय
- कान के रोगों को लगने से पहले ही अनेक उपायों द्वारा रोका जा सकता है। बचाव इस प्रकार करें :
- कान में तेल, साबुन जाने से रोकना चाहिए, क्योंकि कान के पर्दे बेहद नाजुक होते हैं और इससे उनके संक्रमित हो जाने की संभावना रहती है।
- छोटे बच्चों या बड़ों को उस तालाब में स्नान करने से रोकना चाहिए, जिसमें जानवरों को भी धोया या नहलाया जाता है।
- ज्यादा देर तक ऊंची आवाज में टी.वी. नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इससे कानों की नसें प्रभावित होती हैं और कानों की नसें खराब होने पर वह बीमारी ला-ईलाज हो जाती है।
- कानों को संक्रमित करने वाले पदार्थों से बचना चाहिए।
- कानों में किसी भी प्रकार के रोग (संक्रमण या क्रानिक) लगने पर इलाज में देरी न करें, क्योंकि समय रहते इलाज होने से बीमारी के बिलकुल समाप्त हो जाने की संभावना रहती है।