स्वर-यन्त्र-प्रदाह, कर्कट-रोग, गुटिका-दोष, उपदंश-रोग, हिस्टीरिया अथवा ठण्ड लग जाना, सर्दी बैठ जाना, ऊँचे स्वर से बोलना गाना अथवा व्याख्यान देना आदि कारणों के ‘स्वर-भंग’ रोग होता है । इस रोग में गला बैठ जाता है तथा आवाज बिगड़ जाती है । आवाज बहुत कम निकलती है , विकृत रूप में निकलती है और कभी-कभी कुछ देर के लिए बिल्कुल ही नहीं निकल पाती । इसके कारण सूखी खाँसी, श्वास-कष्ट, गले में खुरखुरी आदि उपसर्ग भी प्रकट हो सकते हैं । इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
आर्निका 3, 30, 200 – यह अधिक बोलने के कारण आवाज बैठ जाने में हितकर है । व्याख्यान-दाताओं, गायकों, कवियों तथा अध्यापकों द्वारा अधिक बोलने के कारण गला बैठ जाने की यह श्रेष्ठ औषध है ।
कास्टिकम 6, 30 – सर्दी के कारण गला बैठ जाने की यह बहुत अच्छी.औषध है। गले का दुखना, गले का बैठ जाना, ठण्डा पानी पीने से कुछ आराम का अनुभव, बड़ी तकलीफ से श्लेष्मा निकलना तथा गले से आवाज का निकल ही न पाना-इन लक्षणों में लाभकारी है । गाने वालों तथा व्याख्यान-दाताओं की आवाज बिगड़ने पर इसे दें।
इग्नेशिया 3x, 200 – गला बैठ जाने पर गले में ढेला अटका होने जैसी अनुभूति, गला घुटता हुआ सा प्रतीत हो, वायु के गोले का गले में आ अटकना, गले में दर्द, कड़ी वस्तु निगलते समय आराम का अनुभव, परन्तु कुछ भी निगलते समय गले में सुई चुभने सा दर्द, जो कानों तक फैल जाता हो तथा हिस्टीरिया के दौरे के समय गले में कष्ट-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
ऐण्टिम-कूड 6 – गर्मी, धूप या ताप लग जाने के कारण आवाज का बैठ जाने के लक्षणों में लाभकर है।
ऑक्जेलिक एसिड 6, 30 – बोलने की पेंशियों पर पक्षाघात हो जाने के कारण आवाज बैठ जाने में हितकर है ।
बैराइटा-कार्ब 30 – गले का रोग पुराना हो जाने पर इस औषध का प्रयोग लाभकर सिद्ध होता है ।
जैल्सीमियम 3x, 30 – मासिक-धर्म के दिनों में स्त्री के गले से आवाज न निकलने पर इसका प्रयोग लाभकारी है ।
आयोडियम 3 – अत्यधिक कमजोरी तथा शारीरिक-क्षीणता के कारण आवाज बैठ गयी हो तो इसका प्रयोग करें ।
इपिकाक 6, 30 – डॉ० कार्टियर के मतानुसार आवाज बिल्कुल बैठ जाने पर इसे आधा-आधा घण्टे बाद लगातार देते रहने पर 4-5 घण्टे में ही गला पूरी तरह खुल जाता है ।
ड्रोसेरा 1, 12 – बोलते समय जोर लगाना, बोलते समय दमा जैसा अनुभव होना, प्रत्येक शब्द को बोलते समय गला रूंधता-हुआ-सा प्रतीत होना-आदि लक्षणों से युक्त वक्ताओं का गला बैठने में यह बहुत हितकर है ।
बोरैक्स 6, 30 – यदि सर्दी लगने के कारण अचानक ही गला बैठ गया हो तो इसे घण्टे भर में दो-तीन बार मुँह में रख कर चूसने से आवाज खुल जाती है।
फाइटोलैक्का 6, 30 – एकदम गला बैठ जाने पर अथवा पुराने स्वर-भंग में लाभकर है ।
हिपर-सल्फर 6, 30 – स्वर-यन्त्र में अत्यधिक श्लेष्मा एकत्र हो जाने के कारण स्वर-भंग, श्वास-कष्ट में ठण्डी हवा लगने से खाँसी का बढ़ना आदि लक्षणों में हितकर है । यदि गले में ‘साँय-साँय’ अथवा ‘घर-घर’ की आवाज हो तो इसका प्रयोग करें ।
फास्फोरस 3, 6 – स्वर-तन्त्रियों के पक्षाघात में हितकर है। कमजोरी के कारण गला बैठ जाने में भी लाभकारी है ।
कार्बो-वेज 3, 6, 30 – स्वर-भंग की पुरानी बीमारी में इसे दें। खाँसी, छाती में जलन, दुर्गन्धित-श्लेष्मा का निकलना, फेफड़ों से खून आना, बोलने अथवा भोजन करने के बाद अथवा सन्ध्या के समय स्वर-भंग का बढ़ना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
कालिबाई 6x वि० 30 – जल्दी-जल्दी खाँसी आना, लसदार, सूतदार तथा कड़ा कफ निकलना, सन्ध्या समय अथवा कपड़े उतारने पर स्वर-भंग में वृद्धि-इन लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
मैगेनम 6 – श्लेष्मा का ढीला न होना तथा पुराने स्वर-भंग में हितकर है।
बेलाडोना 3 – सिर में सर्दी लगने अथवा गले के प्रदाह के कारण उत्पन्न स्वर-भंग में प्रयोग करें ।
ऐरम-ट्राइफाइ 3 – स्वर-यन्त्र की अकड़न तथा गले में जख्म के साथ स्वर-भंग में इसका प्रयोग हितकर है ।