मन मस्तिष्क तथा अन्य कारणों से सम्बन्धित विविध रोग तथा उनकी चिकित्सा के विषय का इस प्रकरण में उल्लेख किया जा रहा है ।
बुद्धि के कछ कम अथवा एकदम नष्ट हो जाने को ‘बुद्धि-वैकल्य’ कहा जाता है । इसे ‘मति-भ्रम’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । यह रोग निम्नलिखित पाँच प्रकार का होता है :-
(1) मद्यपान के कारण – इसमें स्मरण-शक्ति एवं इच्छा-शक्ति की कमी, जरा-जरा-सी बात पर क्रोध करना, अपने शरीर तथा वेष-भूषा का तनिक भी ध्यान न रखना, शरीर के स्वाभाविक तापमान में कमी तथा पाकाशय-प्रदाह आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
(2) हस्तुमैथुन के कारण – इसमें स्मरण-शक्ति की कमी, मानसिक-दुर्बलता, उदासीनता, हाथ-पाँवों का ठण्डा तथा तर रहना, किसी ओर टकटकी लगाकर देखते रहना तथा सिर झुकाये बैठे रहना आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
(3) वृद्धावस्था के कारण – लगभग साठ वर्ष की आयु के बाद यह रोग होता है तो इसमें स्मरण शक्ति की कमी, क्रोध आना, चित्त विभ्रम, अत्यधिक आत्मगरिमा का भाव, भ्रान्त-विश्वास, अवास्तविक-परिकल्पनायें एवं बेचैनी आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
(4) यान्त्रिक कारणों से – शरीर के अवयवों में खराबी आ जाने पर जब यह रोग होता है, तब भय का भाव, देखने-सुनने में भ्रम, खींचन, पक्षाघात, सन्देहशीलता आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
(5) गौण कारणों से – इसमें स्मरण-शक्ति की कमी, अत्यधिक कमजोरी, इच्छा-शक्ति की कमी तथा मानसिक वृत्तियों का अचानक ही ह्रास हो जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
गन्दे रहने, चुप रहने, मशीन के पुर्जे की भाँति रहन-सहन, किसी प्रकार का अचानक आक्रमण, मानसिक-शक्ति का एकदम कमजोर हो जाना, मानसिक चिन्ता अथवा एक ही दिशा में चिन्तन, एक ही प्रकार का काम करते रहना – इन कारणों से भी यह बीमारी हो जाती है। इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
ऐनाकार्डियम 6 – स्मरण-शक्ति की कमी, भ्रान्त विश्वास के साथ बुद्धि-वैकल्य एवं सदैव शपथ खाते रहना इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
एसिड-फॉस 2x, 6 – समीपवर्ती लोगों अथवा वस्तुओं के प्रति उदासीनता, स्मरण-शक्ति की कमी, शारीरिक-दुर्बलता, मानसिक-चिन्ता, एक ही प्रकार का चिन्तन, जरा-सी बात पर रो देना तथा हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न रोग में अत्यधिक परिमाण में पेशाब होना – इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
हेलिबोरस 3x – उन्माद अथवा विषाद-वायु रोग के बाद बुद्धि-विभ्रम में इसका प्रयोग करें ।
जिंकम 6 – हेलिबोरस से लाभ न होने पर इसका प्रयोग करें ।
लिलियम-टिग 6 – गहरी मानसिक-सुस्ती, परन्तु हर काम में जल्दबाजी, निरन्तर रोते रहने की इच्छा, शाप देने, मारने अथवा अश्लील बातों को सोचने की तीव्र इच्छा, लक्ष्य-हीनता, निरन्तर यह सोचते रहना कि उसे कोई यान्त्रिक-रोग हो गया है, जो अब अच्छा नहीं होगा, किसी प्रकार छुटकारा न पाने की चिन्ता एवं समझाने-बुझाने से रोग के उपसर्गों में वृद्धि होना – इन सब लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
ऐगारिकस 6 – सामान्य अथवा छिपे हुए बुद्धि-वैकल्य की उत्तम औषध है।
कोनियम 6 – हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न बीमारी, लेटने पर सिर में चक्कर आना, घर अथवा कामकाज के सम्बन्ध में उदासीनता तथा स्मरण-शक्ति की
कमजोरी – इन लक्षणों में हितकर है।
कैल्के-कार्ब 6, 200 – बुद्धि वैकल्य की अधिकता के कारण किसी विषय में कोई धारणा न बना पाना, सिर में चक्कर आना तथा भारीपन आदि लक्षणों में हितकर है।
क्रोटेलस 3 – इन्द्रिय ज्ञान तथा स्मरण शक्ति में अत्यधिक कमी, सहन-शक्ति का अभाव, कहीं भागने का प्रयत्न करते रहना, खिन्नता, बकवास करना तथा मुखाकृति का बिगड़ जाना आदि लक्षणों में प्रयोग करें।
कैल्के-फॉस 6x वि० – चिड़चिड़ा स्वभाव, समीपवर्ती लोगों को भी न पहचान पाना, घटनाओं को समझ न पाना तथा घर में रहे हुए भी घर जाने की बात कहना – इन लक्षणों में लाभकर है । दुबले-पतले शिशुओं अथवा कम आयु वाले लोगों के लिए यह औषध विशेष लाभकर सिद्ध होती है ।