सामान्तयः इस रोग को कनसुआ या गलसुआ भी कहते हैं। इस रोग में कर्ण मूल से लेकर गले तक के भाग में सूजन और जकड़न आ जाती है। इस स्थान पर तीव्र दर्द होता है और कभी कभी रोगी को बुखार भी आ जाता है। रोग बढ़ने पर सूजन का स्थान गरम हो जाता है, ग्रन्थियाँ सूज जाती है और रोगी अपने गर्दन भी नहीं घुमा पता।
एक़ोनाइट 3x – कर्णमूल-प्रदाह की प्रथमावस्था, प्यास, बेचैनी, बुखार आदि लक्षणों में उपयोगी है। विशेषकर सर्दी लगने के कारण रोग हुआ तो अति लाभप्रद है।
रस टॉक्स 30 – बाँयें ओर सूजन हो, लाली हो, तेज़ दर्द हो, दर्द बरसात में या ठण्डी हवा लगने से बढ़ जाता हो तो देनी चाहिये ।
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मर्क बिन आयोड 3x – रोग की प्रथमावस्था बीत जाने के बाद, जब बुखार कम हो जाये, लार अधिक बहे तो लाभ करती है। यह इस रोग की सर्वोत्तम औषध है – ऐसा अनेक चिकित्सकों का कहना है।
बेलाडोना 30 – दाहिना गाल सूजा हो, लाली हो, टनक जैसा दर्द हो, रोग का प्रभाव मस्तिष्क पर भी पड़े, रोगी प्रलाप करता हो तो देनी चाहिये ।
कार्बो वेज 3x – सूजन और गाँठ पत्थर जैसी कड़ी हो गई तो इसका प्रयोग लाभप्रद होगा।
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सल्फर 30 – यदि सूजन व गाँठ में मवाद पड़ने का भय हो तो यह दवा लाभप्रद है।
हिपर सल्फर 30 – यदि सूजन व गाँठ में मवाद पड़ चुका हो तो इस दवा को देने से मवाद पूर्णतः निकलकर आक्रांत स्थान सूख जाता है।
फाइटोलक्का 1x, 30 – यह दवा रोग की समस्त अवस्थाओं में लाभप्रद है ।