शरीर में चोट मांस-पेशियों तथा मांस-पेशियों के सिरों (Muscles and tendons) पर लग सकती है, या स्नायु-तंतुओं (Nerves) के कुचले जाने से लग सकती है। इन सब प्रकार की चोटों के लिये होम्योपैथी में अलग-अलग दवायें हैं जिनमें से मुख्य-मुख्य का हम वर्णन करेंगे।
(1) मांस-पेशियों तथा उनके सिरों की चोट में आर्निका, रस टॉक्स, कैलकेरिया कार्ब का प्रयोग – चोट लगने की शुरू की अवस्था में जब चोट का प्रहार मांस-पेशियों तथा उनके सिरों तक सीमित हो, तब आर्निका दिया जाता है। रोगी को मांसपेशियों के कुचले जाने का-सा अनुभव (Bruised feelings) होता है। इसका प्रभाव-क्षेत्र चोट के शुरू में है; दर्द हो, कुचले जाने का-सा दर्द हो। इस औषधि के बाद यह कुचले जाने का-सा दर्द ठीक हो जाता है, परन्तु मांसपेशियों पर की चोट का असर फिर भी बना रहता है, उनमें थकान, भारीपन, मोच का-सा अनुभव होता है। इस समय आर्निका के बाद रस टॉक्स का क्षेत्र आ जाता है जिससे मांसपेशियों की कमजोरी दूर हो जाती है। इसके बाद भी मांसपेशियों में पहले-सी दृढ़ता नहीं आती, दृढ़ता लाने के लिये कैलकेरिया कार्ब दिया जाता है। इस प्रकार आर्निका, रस टॉक्स, कैलकेरिया – यह क्रम (series) है जिसमें से मांसपेशियों की चोट खाये हुए रोगी को गुजार देने की आवश्यकता पड़ सकती है। इन तीनों का एक-दूसरे के पीछे मांसपेशी की बची-खुची कमजोरी को दूर कर देने का संबध है। इस प्रकार की त्रिक श्रृंखलाओं का वर्णन हमने कैली सल्फ़ में किया है।
(2) स्नायु-तंतुओं के चोट में हाइपेरिकम तथा लीडम – जिस प्रकार मांस-पेशियों की चोट में आर्निका दी जानी चाहिये, उसी प्रकार स्नायु-तंतुओं की चोट में हाइपेरिकम या लीडम दी जानी चाहिये। कई लोग चोट का नाम सुनते ही आर्निका लेकर दौड़ते हैं। यह गलत है। आर्निका की चोट मांस-पेशियों तक सीमित है। स्नायु-तंतुओं की चोट में हाइपेरिकम तथा लीडम निर्दिष्ट दवाएं हैं। हाइपेरिकम को विशेषत: तथा लीडम को साधारणत: ‘स्नायु-तंतुओं’ का आर्निका’ (Arnica of nerves) कहा जा सकता है। हाइपेरिकम तथा लीडम यद्यपि स्नायु-तंतुओं की चोट की दवायें हैं, तो भी इन दोनों में भेद है। वह क्या है?
(3) हाहपेरिकम का दर्द चोट खाये स्थान से स्नायु-मार्ग में जाता है – जब हाथ या पैर की अंगुलियों में चोट लग जाती हैं, वे पिस जाती हैं या छिद जाती हैं, नाखून पर चोट लग जाती है, जब स्नायु पर हथौड़े की चोट पड़ जाती है, और उस चोट से दर्द उठ कर स्नायु के मार्ग की तरफ जाता है, तब समझ लेना चाहिये कि चोट में ‘स्नायु’ (Nerve) पर आघात पहुंचा है। कुत्ता-बिल्ली ने दांत मार दिया और दर्द के स्थान से स्नायु के मार्ग में, स्नायु के लम्बे सूत्र के दर्द होने लगा, तब हाइपेरिकम से लाभ होगा, तब आर्निका का विचार नहीं करना चाहिये।
(4) लीडम का क्षेत्र तभी तक है जब तक स्नायु पर लगी चोट अभी आगे नहीं बढ़ी – इस औषधि का काम ‘प्रतिरोधक’ (Preventive) है। हाथ की अंगुलियों में चोट लगी, स्नायु छिल गये, कील पर पांव पड़ गया, सूई चुभ गई, नाखून में फांस लग गई, लोहार के हाथ पर हथौड़ा पड़ गया, जूता सीते हुए मोची के हाथ में सूआ चुभ गया, चूहे-बिल्ली ने काट लिया परन्तु अभी स्नायु-मार्ग से दर्द ऊपर तक नहीं होने लगा। इस हालत में लीडम देने से रोग आगे नहीं बढ़ता। स्नायु पर चोट लगते ही लीडम का प्रयोग करना चाहिये; अगर उस समय प्रयोग नहीं किया और दर्द स्नायु-मार्ग से ऊपर चढ़ने लगा, तब हाइपेरिकम का क्षेत्र आ गया। लीडम पहले, हाहपेरिकम बाद को; क्षेत्र दोनों का स्नायु पर लगी चोट है।
(5) लीडम होम्योपैथी की एन्टी-टिटनेस औषधि है (Anti-tetanus) – चोट लगने पर अगर उसी समय लीडम नहीं दिया गया, तो टिटनेस हो सकता है, जबड़ा बैठ सकता है जिसे लौक-जॉ कहते हैं। घोड़े के पांव में कील चुभ जाय, और चुभे उसके स्नायु-स्थान में, तो उसे भी टिटनेस हो सकता है। अगर इस समय लीडम दे दिया जाय, तो पशुओं को भी टिटनेस से बचाया जा सकता है। अगर लीडम का क्षेत्र निकल गया, और कील आदि चुभने के बाद जिस स्थान पर स्नायुओं पर चोट पड़ी है वहां से स्नायु-मार्ग में दर्द चढ़ने उतरने लगा, तो हाइपेरिकम देना पड़ता है। चोट लग जाने से जबड़ा बैठना आदि भयंकर तकलीफों का हो जाना हाइपेरिकम से बचाया जा सकता है। इन उपद्रवों में लोग चोट लगी है – यह सुनकर आर्निका दे दिया करते हैं, परन्तु उस से कोई लाभ नहीं होगा। ‘लॉक-जॉ’ के एक रोगी का उल्लेख क्लाक की ‘डिक्शनरी ऑफ प्रेक्टिल मेटीरिया मैडिका’ में करते हुए लिखा है कि एक लड़के को घर के चूहे ने अंगुली में काट खाया। कुछ देर बाद लड़के का जबड़ा अकड़ गया, वह बोल भी नहीं सकता था, गर्दन भी अकड़ गई। उसे 500 शक्ति की हाइपेरिकम पानी में डाल कर पहले हर 15 मिनट बाद दी जाती रही, फिर दो-दो घंटे के बाद। अगले दिन तक लड़का रोग-मुक्त हो गया। एस्पिरीन और मौरफिया से स्नायु के चोट का दर्द शांत हो जाता है, परन्तु हाइपेरिकम जिस प्रकार चोट खाये हुए स्नायु-मंडल को शांत कर देता है, दर्द दूर कर देता है, उसका कोई मुकाबला नहीं है।
(6) गिरने आदि से मेरु-दंड के निचले भाग में चोट (Injury in the coccyx) के लिये हाइपेरिकम – कभी-कभी लोग सीढ़ी पर चढ़ते हुए गिर जाते हैं, अन्य किसी अवस्था में भी गिर सकते हैं। उसमें मेरु-दंड के निचले भाग (Coccyx) में चोट लगने से शरीर में दर्द होने लगता है। इस समय हाइपेरिकम का लक्षण यह है कि चोट के स्थान से दर्द उठ कर शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में होने लगे। ऐसे दर्द में आर्निका या रस टॉक्स से लाभ नहीं होगा। रस टॉक्स से लाभ तब होगा जब पीठ का दर्द बैठती हुई हालत से उठने के समय हो। बैठे हुए दर्द नहीं होता, उठ कर चलने पर दर्द नहीं होता, बैठी हालत में से उठते समय दर्द होता है। तब रस टॉक्स देना चाहिये, और कुछ दिन बाद कैलकेरिया कार्ब।
(7) सर्जरी के ऑपरेशन के बाद स्टैफिसैग्रिया या स्ट्रौन्टियम देना चाहिये – सर्जरी के ऑपरेशन के बाद शुद्ध शल्य-क्रिया की गई हो, सफाई के औजारों से कांट-छांट की गई हो, तब स्टैफिसैग्रिया देने से जख्म जल्दी ठीक हो जाता है, जब सर्जन ने बहुत ज्यादा काट-छांट की हो, रोगी कमजोर हो गया हो, खून बहुत बहा हो, तब कई लोग कार्बो वेज देने की सोच सकते हैं, परन्तु डॉ० कैन्ट का कहना है कि इस समय सर्जन के लिये स्ट्रौन्टियम ही कार्बो वेज का काम करता है। स्ट्रौन्टियम का काम काट-छांट से रोगी को जो आघात पहुंचा है उसका प्रतीकार कर देना है।
(8) हड्डी पर लगी चोट का रूटा उपयोगी है – अगर चोट का असर हड्डी पर, अस्थि-परिवेष्टन (Periosteum) पर हुआ है, तब रूटा उपयोगी है।
(9) जख्म को सड़ने से रोकने के लिये कैलेंडुला ‘विष-दोष-नाशक’ (Antiseptic) है – कैलेंडुला गेंदे की पत्तियों से बनती है। जब शरीर का कोई स्थान चोट लगने से छितर-बितर जाता है, तब कैलेंडुला के मूल-अर्क को पानी में घोल कर उससे धोना चाहिये। घाव सड़ने नहीं पाता। इसके साथ शक्तिकृत कैलेंडुला भी देना चाहिये। इसे होम्योपैथी का ‘एंटी सेप्टिक’ यह नाम दिया गया है। इसकी मरहम भी बनती है जिसे सड़ने वाले घाव पर लगाया जाता है।
(10) रक्त-विकार के लिये गन-पाउडर 3x उपयोगी है, इस से दो दिन पहले हिप्पर 200 दे देना चाहिये – कभी-कभी रक्त में विकार हो जाता है, जिस से त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती हैं, रक्त-विकार के कारण कुछ जख्म से हो जाते हैं, जो ठीक होने में नहीं आते, सड़ने लगते हैं। ऐसी हालत में कैनन उपचेर के कथनानुसार हिपर सल्फ़ 200 की एक मात्रा देकर दो दिन बाद गन पाउडर 3x की चार-चार घंटे के बाद एक-एक मात्रा प्रतिदिन देने से 8-10 दिन में त्वचा साफ हो जाती है। एक स्त्री को टीका लेने के बाद चेहरे पर लाल-लाल दाने निकल आये थे। जो गन पाउडर से ठीक हो गये, एक स्त्री की टांग गिट्टों से घुटनों तक जख्मों से भर गई थी जिनमें से पीब रिसता रहता था। वह बेचारी चल फिर भी नहीं सकती थी। वह भी गन पाउडर से ठीक हो गई।
शक्ति – मूल-अर्क को पानी के साथ मिलाकर उसका बाहरी प्रयोग करना चाहिये; भीतर 3, 6, 30, 200 शक्ति की औषधि देनी चाहिये।