नक्स-वोमिका 3x, 6, 30 – कब्ज तथा पेट की खराबी के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ता, खिन्नता, मानसिक-अवसाद, स्वभाव में चिड़चिड़ापन तथा नर्वस हो जाना, सिर में चक्कर आना, नींद न आना, श्वास-कष्ट तथा शारीरिक-दुर्बलता – इन लक्षणों में हितकर है ।
नेट्रम-कार्ब 30 – भोजन करने के बाद, मानसिक-खिन्नता का प्रभाव होना तथा भोजन के क्रमश: पाकाशय तथा आँतों में पहुँच जाने पर खिन्नता का कम होते जाना – इस प्रकार के स्वास्थ्य सम्बन्धी मानसिक-अवसाद तथा चिड़चिड़ेपन में इसका प्रयोग हितकर सिद्ध होता है ।
नेट्रम-म्यूर 30 – कब्ज बढ़ने के साथ मानसिक-खिन्नता का बढ़ना तथा कब्ज घटने के साथ घटना, चिड़चिड़ापन, एकान्त में रहने की इच्छा, सहानुभूति प्रदर्शित करने पर गुस्सा हो उठना एवं अपने मन में अवास्तविक अथवा काल्पनिक शिकायतों के ढेर को जमा करते रहना, भोजन के बाद अथवा रात में सोते समय कलेजा धड़कना – इन लक्षणों में हितकर है ।
स्टैनम 3, 6, 30 – पेट में दर्द उठना, जिसमें चलने-फिरने से राहत मिलती हो, परन्तु थक जाने पर जब आराम करने लगें – तब दर्द का फिर लौट आना, सिर-दर्द माथे का गरम तथा नीचे के अंगों का ठण्डा रहना – इन लक्षणों में हितकर है।
अर्जेण्टम नाइट्रिकम 3, 30 – डॉ० गुएरेन्सी के कथनानुसार बीमारी के कारण शरीर का एकदम सूख जाना, विशेष कर बच्चों का बाल्यावस्था में सूख जाना तथा वृद्ध जैसा दिखाई देना, ऊँचे मकानों को देखकर टाँगों का लड़खड़ा जाना तथा भय होना कि दोनों ओर के मकान मिलकर उसे पीस देंगे, सड़क पार करते समय किसी मकान के समीप से निकलने में भय की अनुभूति एवं किसी सभा सोसायटी में जाने की तैयारी करते समय घबराहट के कारण शौच की हाजत हो जाना – इस प्रकार मानसिक स्तर की विचित्रता के लक्षणों में यह औषध लाभकर है ।
ऐनाकार्डियम 30, 200 – खिन्नता, उत्तेजना एवं स्वाभाविक-दुर्बलता के लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है। इस औषध के रोगी का व्यवहार उद्दण्डता एवं मूर्खता से भरा होता है। उसे अपना मन शरीर से अलग प्रतीत होता है तथा ऐसा लगा रहता है, जैसे कोई अजनबी व्यक्ति इसके साथ रहता हो । स्त्रियों में प्राय: प्रसव के बाद पुरुषों में अजीर्ण रोग होने पर ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं । किसी-किसी स्त्री को तो यहाँ तक भ्रम होता है कि बालक उसका नहीं है अथवा यह कि उसका वास्तविक पति कोई दूसरा है – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है।
सल्फर 30 – रोगी द्वारा कभी अपने को राजा के समान अत्यधिक समृद्ध समझना और कभी नितान्त-दरिद्र समझना, निराशा और खिन्नता के साथ निठल्लापन, उदासी के कारण अरुचि, दोपहर के समय पेट के धंसने जैसा अनुभव तथा शक्ल से हताशा का भाव प्रकट होना, स्वास्थ्य के विषय में हर समय चिन्ता, अनमनापन तथा स्वयं को हमेशा बीमार समझते रहना इन लक्षणों में हितकर है ।
कोनियम 30, 200 – यौन-सम्बन्धों की अधिकता अथवा अभाव के फलस्वरूप चित्त की खिन्नता में यह औषध लाभ करती है। बाध्य होकर बहुत दिन बाद मैथुन करने के कारण उत्पन्न हुई खिन्नता एवं उदासी में भी हितकर है।
स्टैफिसेग्रिया 6, 30 – हस्त-मैथुन अथवा यौन सम्बन्धों की अति के कारण जीवन अन्धकारमय दिखाई देना, एकान्त में बैठे रहना, विपरीत सेक्स वालों को देख कर शर्माना और उससे आंखें न मिला पाना, ध्वजभंग तथा किसी बात में मन न लगना – इन लक्षणों में हितकर है।
ऐक्टिया रेसिमोसा 1x – वीर्य-क्षय के कारण होने वाली हताशा एवं खिन्नता में हितकर है । इसे दिन में चार बार देना चाहिए ।
जिंकम मेट 3, 6 – जननेन्द्रिय के दुरुपयोग के कारण होने वाला स्वप्रदोष, वीर्य-क्षय के परिणाम-स्वरूप खिन्नता एवं जीवन के प्रति निराशा के लक्षणों में हितकर है । इस औषध का रोगी अपने पाँवों को लगातार हिलाता रहता है ।
वैलेरियाना 6, 30 – उत्तेजना तथा स्नायविक-दुर्बलता में हितकर है।
कैल्के-कार्ब 30, 200 – रोगी का यह समझना कि उसका इन्द्रिय ज्ञान लुप्त हो गया है, मानसिक-शान्ति में कमी, थकान का अनुभव, बेहोश करने वाला सिरदर्द, हमेशा डरते रहना, खट्टे पानी की वमन तथा कलेजे में दर्द न रहने पर भी यह समझना कि कलेजे में दर्द हो रहा है इन लक्षणों में हितकर है ।
हायोसायमस 3 – किसी एक ही प्रकार की व्याधि होने की कल्पना करके उन्मादी जैसा प्रवृत्ति हो जाने के लक्षणों में हितकर है।
आरम-म्यूर 2x वि० 30 – आत्महत्या करने की इच्छा, हर काम में जल्दबाजी, चीखना-चिल्लाना, विलाप करना, निराशा, सिर-दर्द, नींद न आना तथा बेहोश हो जाना – इन लक्षणों में हितकर हैं । उपदंश रोगी के व्याधि कल्पना रोग में विशेष लाभ करती है ।
रोगी को कोई व्याधि नहीं है – यह समझने की चेष्टा करते रहना, आवश्यकतानुसार रोगी को अलग, एकान्त में या सबके साथ रखना, नित्य स्नान करना, स्नान कराने से पूर्व थोड़ा व्यायाम अथवा परिश्रम करना तथा सुपच्य एवं पौष्टिक भोजन-ये सब उपचार लाभकर हैं ।