[ एक अंश ब्रोमाइड ऑफ पोटास को 99 अंश डिस्टिल्ड वाटर में गलाने से – 2x क्रम; डाइल्युट अलकॉहल से 3x क्रम और उसके बाद से सब अलकॉहल से तैयार होती है। इसका ट्राइटयूरेशन भी उपयोग होता है ] – मस्तिष्क और स्नायुमंडल के ऊपर इसकी प्रधान क्रिया होती है। युवकों की अपेक्षा बच्चों की बीमारी में – इसकी क्रिया जल्दी प्रकट होती है।
चरित्रगत लक्षण :-
- स्नायुप्रधान और चंचल-स्वभाव; स्थिर होकर एक पल भी बैठ नहीं सकना, हाथ और हाथ की उँगलियाँ लगातार हिलाया करना, दोनों हाथ बराबर हिलाया करना।
- बच्चो का सोते-सोते भूत के डर से चिल्ला उठना, दाँत कड़कड़ाना।
- याददाश्त घट जाना, कहते-कहते भूल जाना कि क्या कह रहा था।
- धन-सम्पत्ति, मान-मर्यादा या व्यापार नष्ट हो जाने के बाद दुख की वजह से बेचैनी ओर नींद न आना।
- भय, क्रोध या बहुत अधिक आनन्द की वजह से तथा प्रसव होने या दाँत निकलने के समय हूपिंग-खाँसी इत्यादि में अकड़न ( spasm )
- वंश-परम्परा से चले आये उपदंश से उत्पन्न यक्ष्मा-रोग, ऋतु के दो-एक दिन पहले और शुक्लपक्ष के पहले – मिर्गी-रोग।
- तुतलाकर बोलना, धीरे और बड़े कष्ट से बोल सकना।
- शिशु-हैजा में मस्तिष्क में जल-संचय होने के पहले मस्तिष्क का उपदाह ; मस्तिष्क में जल-संचय का रोग की पहली अवस्था।
- बच्चों की हर रोज सवेरे 6 बजे के लगभग शूल का दर्द होना ( तीसरे पहर 4 बजे – कोलोसिन्थ, लाइको )
- उन्मत्तता
- समस्त शरीर में ऐसा अनुभव होना जैसे कुछ गड़ रहा हो
- गर्भावस्था में लगातार आनेवाली जोर की सूखी खाँसी।
- गर्भस्त्राव होने की नौवत आ पहुँचना।
- बहुत बेचैनी, किसी तरह भी एक जगह स्थिर नहीं रह सकना, हरवक्त किसी-न-किसी काम में लगे ही रहना।
बकवास – इस बीमारी के साथ रोगी को नींद बिलकुल नहीं आती, सपने में भूत-प्रेत आदि देखता रहता है, दांत पर दांत रगड़ता है, गोंगों ( खुर्राटे ) करता है। समझता है कि कोई उसे विष खिला देगा।
मस्तिष्क की दुर्बलता – हमेशा उदास और हतोत्साह-सा रहना, स्मरण-शक्ति गायब, बहुत ज्यादा इन्द्रिय सेवन और शुक्रक्षय की वजह से यह रोग हो जाये तो ‘कैलि ब्रोम‘ लाभदायक है। बहुत ज़्यादा परिश्रम करने और नाना प्रकार की चिन्ता करते रहने से मस्तिष्क की दुर्बलता और माथे में दर्द, हाथ-पैर का काँपना इत्यादि।
कॉलेरा – कॉलेरा में लगातार कै-दस्त होने से रोगी का अत्यन्त दुर्बल हो जाना ; बदन ठण्डा, हाथ की कलाई बरफ-सी ठण्डी, सो नहीं सकना, लगातार छटपटाना तथा विकार के सब लक्षण दिखाई दें तो – यह दवा विशेष फायदा करती है। इसमें पेशी का लगातार कम्पन, हरे रंग का बदबूदार पाखाना, बहुत प्यास और वमन इत्यादि रहता है । युरिमिया की-वज़ह से ज्वर-विकार में कभी-कभी बेहीशी का भाव, श्वास में कष्ट, पेशाब बन्द इत्यादि लक्षण रहने पर भी यह फायदा करती है।
हाइड्रोकेफालस – लगातार कै दस्त हो कर या बार-बार अतिसार भोगने के कारण यह बीमारी होने पर कैलि ब्रोम फायदा करती है। मस्तिष्क का प्रदाह, आँख की पुतली फैल जाना, हाथ-पैर ठण्डे हो जाना।
मस्तिष्क की रक्तशून्यता – हाथ-पैर हमेशा ठण्डे रहना, आच्छन्न-भाव या बिलकुल बेहोशी (complete coma ), आँख की पुतली फैली ( pupil dilated ) रहना।
स्वप्नदोष या घातुदौर्बल्य – जहाँ काम-प्रवृत्ति क्रमश: घटती जाती है, लिंग में कड़ापन आये बिना ही वीर्य-स्खलन हो जाता है और स्वप्नदोष के साथ हाथ पैर में झुनझुनी, कमजोरी और उदासी आ जाती हैं, वहाँ कैलि ब्रोम अन्य दवाओं की अपेक्षा ज्यादा फायदा करती है।
बहुत ज्यादा स्त्री-संसर्ग अथवा हस्तमैथुन आदि की वज़ह से धातु दौर्बल्य होना, स्मरण-शक्ति का घट जाना, हाथ-पैर और अन्य अंगों का सुन्न हो जाना इत्यादि उपसर्ग प्रकट हो तो – इससे फायदा होगा।
स्नायु-दौर्बल्य – पहले ही कहा जा चुका है कि स्नायु मण्डल पर ब्रोमाइड की प्रधान क्रिया होती है। ब्रोमाइड-पेरिफेरैल नर्व में उपवाह पैदा करती है, इसलिये दाँत निकलने की वजह से पैदा हुए परिवर्तित उपदाह के कारण अकड़न, खींचना इत्यादि हो तो – इससे ज़्यादा फायदा होता हैं।
मस्तिष्क-क्लान्ति – लिखना-पढ़ना या व्यवसाय की चिन्ता इत्यादि से बहुत ज्यादा मानसिक परिश्रम होने के कारण जल्दी-जल्दी मस्तिष्क नष्ट हो जाना ; रोगी का क्रमश: चिड़चिड़ा हो जाना, जरा-सी बात में रो देना, सिर-दर्द, कलेजा धड़कना, पीठ में कीड़े चलने की तरह सुरसुरी होना, स्मरणशक्ति घट जाना, शरीर और पैर में बल नहीं रहना, भूख मन्द हो जाना, नींद न आना इत्यादि कितने ही लक्षण और स्नायु-दौर्बल्य के अन्यान्य लक्षण प्रकट होना।स्मरणशक्ति घट जाना, बात करते-करते भूल जाना इत्यादि लक्षणों में – कैलि ब्रोम लाभ करती है।
एक्जिमा और व्रण – मुँह और शरीर पर व्रण और एक्जिमा के साथ छोटे-छाटे फ़ोड़े, जो पकते है और जिनके भीतर पीब पैदा हो जाती है। उमर बढ़ने पर, अर्थात् जवानी में बहुतों के चेहरे पर एक तरह के व्रण या फोड़े निकलते है, जिन्हें मुँहासा कहते हैं – कैलि ब्रोम उसकी भी एक उत्तम दवा है।
स्त्री-रोग – डिम्बकोष ( ओवेरी ) या ब्रॉड़ लिगामेण्ट ( जरायु- बन्धनी), सिस्टिक-टियुमर (कोमल अर्बुद ) डिम्बकोष का स्नायुशूल और उसके साथ ही रोगिणी को बहुत स्नायविक सुस्ती रहना।
नींद में डर जाना ( night terrors ) – सोते हुए बच्चे का एकाएक चिल्ला कर रो उठना, थरथर काँपा करना, उस समय होश नहीं रहना, आस-पास क्या हो रहा है कुछ समझ में नहीं आना।
खाँसी – गर्भावस्था में प्रत्यावृत क्रिया की वजह से खाँसी ( reflex cough ) आती हो और रात के समय हूपिंग-खाँसी के समान एक तरह की सूखी कष्टकर आक्षेपिक धमक जैसी आती हो तो कैलि ब्रोम फायदा करती है।
हिचकी – लगातार हिचकी किसी तरह हिचकी रुकना ही नहीं।
पेशाब की बीमारी – बहुमूत्र, प्यास के साथ बहुत ज़्यादा परिमाण में पेशाब, पेशाब के साथ चीनी या फॉस्फेट निकलना, पेशाब का वेग रोक नहीं सकना, लगातार रोगी का कमजोर और रक्तहीन हो जाना।
इसके अलावा कैलि ब्रोम – नयी उन्मत्तता, प्रसव के बाद उन्माद होना, नींद न आना, गति-शक्ति-राहित्य, पक्षाघात, वीर्य-नाश, ध्वजभंग, प्रसव के बाद 11 दिनों के अन्दर जरायु का स्वाभाविक अवस्था में नहीं आना, मलद्वार अवरोधक पेशी का पक्षाघात इत्यादि बीमारियों में भी इसका व्यवहार होता है।
रोग में वृद्धि – गर्मी के दिनों में; रात में 2 बजे; और बच्चों का अम्लशूल – रोज रात के 5 बजे । कैलि ब्रोम में – सोने के बाद खाँसी और माथा झुकाने पर चक्कर आना बढ़ता है ।
रोग में कमी – काम में व्यस्त रहने से, ठण्डी हवा से।
क्रियानाशक – कैम्फर, हेलोनि, नक्स ।
क्रम – मूल विचूर्ण 5 ग्रेन 3x से 200 शक्ति।