[ यह एक प्रकार के छोटे पौधे से टिंचर तैयार होता है ] – स्त्रियों के कष्टदायक प्रमेह-रोग में तथा पुरुष के प्रमेह में – रोगी के बैठे रहने पर ऐसा मालूम होना कि जैसे मूत्रनली से बूंद-बूंद पेशाब निकल रहा है ; और स्त्रियों के ओवेरियन ट्युमर में ( डिंबकोष का अर्बुद ) बहुत ज्यादा दर्द और तकलीफ रहने पर – इससे बहुत फायदा होता है। इसके सिवा – गला कुटकुटाकर खाँसी आना, आक्षेपिक खाँसी, हूपिंग खाँसी, कलेजे में दबाव का दर्द, शरीर के अन्य स्थानों में भी इसी तरह का दर्द, दर्द घटाने के लिए रोगी का लगातार जम्हाई लेना, मेरुदण्ड में दर्द – जो नितम्ब की हड्डी के नीचे तक फ़ैल जाता है, शरीर शोला या पर की तरह हल्का मालूम होना इत्यादि रोग व लक्षण-शुदा रोगी की भी यह उत्तम दवा है।
रोगी की सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है, सिर भारी-भारी सा महसूस होता है, हल्का दर्द भी रहता है, मुंह के अंदर गर्मी और सिर में दर्द के साथ ठंडापन महसूस होता है। सिर दर्द के साथ रोगी को स्वास लेने में कठिनाई होती हो तो ऐसे लक्षणों में लेक्टुका विरोसा अच्छा कार्य करती है।
पेट में हवा भर जाता है और पेट गुड़गुड़ करता रहता है। पेट में भारीपन के साथ हमेशा गैस निकलते रहना, पेट तन जाना और हल्का दर्द होने के लक्षण में लेक्टुका विरोसा लाभदायक सिद्ध होती है।
छाती में सूजन के साथ सांस लेने में कठिनाई होती है, गला खस-खस करता रहता है और खांसी भी आती है। छाती में दर्द जैसे लक्षण के मिलने पर लेक्टुका विरोसा का प्रयोग किया जाता है।
पीरियड के समय अगर रक्त-स्राव कम हो रहा हो और स्तन में दूध की भी कमी हो तो इस दवा को अवश्य याद करना चाहिए।
रोगी को अच्छे से नींद नहीं आती, करवट बदलते वक़्त गुजर जाता है, इसके साथ बेहोशी के लक्षण भी मिलते हों तो यह दवा उत्तम कार्य करेगा।
क्रम – Q, 1 और 30 शक्ति।