परिचय : 1. इसे ज्योतिष्मती (संस्कृत), मालकांगनी (हिन्दी), मालकागोणी (मराठी), मालकांगणी (गुजराती), बालुलवे (तमिल), तैलान (अरबी) तथा सिलेक्ट्रस पैनिक्यूलेटा (लैटिन) कहते हैं।
2. मालकांगनी ऊपर चढ़नेवाली लता है। मालकांगनी के पत्ते अण्डाकार, नुकीले, पुष्प नीलापन लिये पीले, फल मटर के समान गोल और पीले होते हैं। फल के तीन खण्डों में 1-1 बीज होता है।
3. मालकांगनी समस्त भारत में, विशेषत: पंजाब, कश्मीर तथा अन्य पर्वतीय प्रदेशों में पायी जाती हैं।
रासायनिक संघटन : मालकांगनी के बीज में 30 प्रतिशत गाढ़ा, लाल, पीला, कड़वा और गन्धयुक्त तेल, कषाय द्रव्य तथा क्षार 5 प्रतिशत की मात्रा में निकलता है।
मालकांगनी के गुण : यह कटु, तित्त, तीक्ष्ण, स्निग्ध तथा उष्ण है। इसका नाड़ी-संस्थान पर मेध्य रूप में मुख्य प्रभाव पड़ता है। यह स्मरणशक्ति-वर्धक, मूत्रल, वेदनास्थापक, चर्मरोगहर तथा उत्तेजक है।
मालकांगनी के फायदे
1. वायुरोग : औषधि के लिए इसके बीजों का तेल निकाला जाता है। व्यापार की दृष्टि से अधिक बीज लेकर कोल्हू या मशीन से तेल निकाल लेते हैं। इसके तेल की मालिश से सन्धियों की वेदना, पक्षाघात (लकवा), अर्दित, गृध्रसी (साइटिका) और कमर का दर्द दूर हो जाता है।
2. मस्तिष्क-दौर्बल्य : मस्तिष्क की दुर्बलता या दिमाग की सुस्ती में इसके तेल की 2 से 10 बूंदें गोघृत में मिलाकर दें। इससे स्मरण-शक्ति और मेधा-शक्ति बढ़ती है।
3. मासिक स्त्राव में कष्ट : जिस स्त्री को मासिक स्राव अल्प अथवा कष्ट से होता हो, उसे 1 तोला मालकांगनी के पत्तों का शाक घी में भूनकर दें, इससे मासिक-धर्म खुलकर एवं वेदनारहित होगा।
4. श्वास-खाँसी : इसके बीजों के चूर्ण का नस्य देने से संचित कफ निकल जाता है। और कफज तथा सर्दी से हुए श्वासकास में लाभ पहुँचता है।