[ ‘कैमोमेल’ ( क्लोराइड ऑफ मर्करी : एक तरह का पारद ) का लैटिन नाम है – मर्क्यूरियस डलसिस ] – हैजा की पहली और दूसरी अवस्था में – इस दवा का इस्तेमाल करने से पित्त निकलने की क्रिया में मदद पहुँचती है और यह बहुत ही जल्द रोगी को आरोग्य की और ले आती है। हिमांग अवस्था अर्थात शीत आ जाने पर – जब हृत्पिण्ड और शिराओं में खून जम जाने से रक्त-संचालन की क्रिया बन्द हो जाती है, नाड़ी का पता नहीं चलता, रोगी बहुत हांफने लगता है, श्वास लेने और छोड़ने में बहुत तकलीफ होती है, मृत्यु नजदीक आ जाती है, तब – लक्षणों को अच्छी तरह समझकर, यथासमय इसका प्रयोग किया जाए तो – अनेक संकटों से रोगियों को पुनर्जीवन दिया जा सकता है।
हैजा में – कैलोमेल का प्रयोग करने के लिये निम्नलिखित लक्षणों का ख्याल रखना चाहिये। इसे अधिक मात्रा में व बार-बार न दें।
मुरदे-जैसा बदरंग चेहरा, तेज प्यास, बहुत ज्यादा परिमाण में दस्त और कै, पेट में ऐंठन का दर्द, पेट भरा हुआ, नाभि की जगह और छाती में जलन ; पहले बहुत ज़्यादा परिमाण में पानी-सा-दस्त होना, फिर 7-8 घण्टे के अन्दर दस्त की मात्रा क्रमशः घटकर कै होना, जी मिचलाना, खून की पेचिश और साथ ही कूथन या हरे रंग के दस्त इत्यादि होना; पेशाब पहले बहुत ज्यादा होना, फिर धीरे-धीरे उसका घटता जाना, इन सब लक्षणों में – मर्क्यूरियस डलसिस 3x चूर्ण – एक या आधी ग्रेन की मात्रा में, प्रतिबार उपयोग करना चाहिये। स्व० डाक्टर जी० मानुक, एम० बी०, सी० एम० – हैजा की पहली अवस्था में चावल के धोवन की तरह बहुत ज्यादा परिमाण में दस्त-कै होते रहने पर, दूसरी कोई दवा देने के पहले – कैलोमेल 3x चूर्ण से लेकर 6 शक्ति तक 5-7 बार प्रयोग करने का उपदेश देते हैं। उनके मत से इससे पित्त निकलने की क्रिया बढ जाने से मल पित्त-संयुक्त हो जाता है, जिससे अन्यान्य उपसर्ग भी घट जाते हैं। कैलोमेल की 3-4 मात्रा देने पर भी अगर कोई लाभ न हो तो – लक्षणों के अनुसार, दूसरी दवाओं का प्रयोग करना चाहिये।
क्रोटेलस – खुन-शुदा दस्त वाले ( hemorrhagic variety ) हैजे में इस दवा की जरूरत पडती है। जहाँ हैजे की पहली अवस्था से ही मल के साथ खून निकले या बीच-बीच में खून के दस्त हों, मसूढ़े, मुँह और नाक से खून का स्राव होता हो, पेट फूलता हो, वहाँ-इस दवा से फायदा होता है । एकाएक शीत आ जाना, शरीर नीला पड़ जाना, ऐंठन, कै, दस्त, श्वास-प्रश्वास में तकलीफ, नाड़ी अत्यंत क्षीण, पेशाब बन्द, ज्वर तुरन्त मृत्यु हो जाने की-सी अवस्था इत्यादि में ~ क्रोटेलस फायदा करती है।
अतिसार – मल का रंग घास की तरह हरा ; मलद्वार की खाल गल जाना। कैलोमेल में – मर्क्यूरियस सॉल की तरह शरीर की किसी न-किसी जगह की गाँठ फूलना, मुँह में छाले या घाव, मुँह से बदबूदार लार निकलना इत्यादि कितने ही लक्षण रह सकते हैं; किन्तु दस्त के साथ – मर्क्यूरियस का वेग या कूथन और शूल का दर्द बिलकुल नहीं रहता, अगर रहता भी है तो बहुत थोड़ा – यही मर्क्यूरियस सॉल के साथ मर्क्यूरियस डलसिस का प्रभेद चुनने का सहज उपाय है। बच्चो के अतिसार में – मल का रंग हरा हो, मलद्वार की खाल गल जाय और थोड़ी-सी भी कूथन रहे तो पहले मर्क्यूरियस डलसिस का स्मरण करना चाहिये।
कब्ज – इसकी 1x विचूर्ण शक्ति, 2-3 ग्रेन की मात्रा में पानी के साथ घण्टे में कई मात्रायें देने से जुलाब की क्रिया होती है।
कान की बीमारी – बहुत दिनों तक पीब निकलने की वजह से आंशिक या सम्पूर्ण बहरेपन में – कैलोमेल या मर्क्यूरियस डलसिस फायदा करती है।
मुँह की बीमारी – मुँह में बहुत बदबू आना, बदबूदार लार बहना, मसूढ़ों और गले में घाव। जीभ काले रंग की, कभी-कभी लार भी काले रंग का।
क्रियानाशक (antidote) – हिपर।
क्रम – 3x से 6 शक्ति।