यह संक्रामक रोग स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों को हुआ करता है । इससे कान की लौर के पास और पीछे थूक पैदा करने वाली गिल्टियाँ सूज जाती हैं और ज्वर हो जाता है । यह रोग प्राय: बसन्त ऋतु अथवा सर्दी के प्रारम्भिक मौसम में विशेष रूप से होता है । कीटाणुओं का संक्रमण हो जाने के पश्चात् 14 से 20 दिन के बाद इस रोग के ये लक्षण प्रकट होते हैं – शुरू में ज्वर 99 डिग्री फारेनहाईट से 103 डिग्री फारेनहाईट तक हो जाता है, जो 4-5 दिन तक रहता है। कई बच्चों को ज्वर नहीं होता, तब तक एक कान के पास होकर शोथ हो जाता है जो बढ़कर कान के पीछे की ओर गर्दन तक फैल जाता है। दो दिन पश्चात् दूसरे कान की ओर भी सूजन हो जाती है। गाल और गर्दन सूजकर एक हो जाता है। मुँह खोलने और खाने-पीने में कष्ट होता है। मुँह से पानी बहता है। जीभ और सिर में दर्द, साँस में दुर्गन्ध आती है । पाँच दिन के बाद ज्वर उतर जाता है। छठे दिन समस्त लक्षण कम होने लगते हैं । कभी-कभी गिल्टियों में पीप पड़ जाती है और वह बाहर या अन्दर की ओर फट जाती है । कई बार रोगी बहरा हो जाता है। रोग के आक्रमण के सातवें या आठवें दिन लड़कों को यह रोग होने पर कभी-कभी अण्डकोष और स्त्रियों के स्तन और योनि सूज जाती है। फोतों में सूजन भी इस रोग से हो जाती है। बच्चों के गालों में सूजन होने पर गले को दबाने पर दर्द होता है। बड़े बच्चों के वृषणों (टेस्टीज) की परीक्षा करें कि वह सूजे हुए तो नहीं हैं।
गलसुआ की एलोपैथिक चिकित्सा
(1) रोगी को सर्दी से बचायें। बच्चों को लिटाये रखें । चलने-फिरने से रोक दें अन्यथा लड़कों के वृषण अथवा लड़की की जननेन्द्रियों में सूजन हो जायेगी । ,
(2) सूजे हुए गले पर टिंक्चर आयोडीन दिन में तीन बार लगायें ।
(3) तीव्र पीड़ा होने पर पीड़ित स्थान पर केओलिन की पुल्टिस बाँधे ।
(4) शोथयुक्त स्थान पर गरम टकोर करके बेलाडोना पलास्टर लगायें ।
(5) सोडा-बाई-कार्ब 4 ग्राम, बोरेक्स 4 ग्राम, जल 30 मि.ली. मिलाकर सुरक्षित रख लें । रुई की फुरैरी से दिन में 3-4 बार गले में लगायें ।
(6) कैपसूल रेस्टेक्लिन (साराभाई कंपनी) रोगी को 6-6 घण्टे के अन्तराल पर जल से सेवन करायें ।
(7) सेप्ट्रान (वरोज बेल्कम कंपनी) बच्चों को पेडियाट्रिक गोली तथा बड़ों को आयु तथा रोगानुसार सेवन करायें ।
(8) टेरामायसिन कैपसूल अथवा सीरप (फाइजर कंपनी) देना भी लाभकारी है।
(9) एंटीफ्लोजेस्टिन प्लास्टर गरम करके गले पर चिपकाना लाभप्रद है ।
(10) दर्दों को दूर करने के लिए डोलोपार (माइक्रो लेबोरेट्रीज) 1 से 2 टिकिया दें । ऐसी 1 मात्रा दिन में 3 बार दें ।
(11) वृषणों में सूजन व दर्द होने पर रोगी को लिटायें रखें तथा प्रेडनी सोलान जैसे वाइसोलान (वाइथ कंपनी) या डेल्टा कार्टियल (फाइजर कंपनी) 5 मि.ग्रा की 1 टिकिया दिन में 2-3 बार तक खिलायें, फिर धीरे-धीरे मात्रा कम करके सेवन बन्द कर दें ।
• अन्य औषधियों में – क्लोरोमायसेटिन कैपसूल अथवा सस्पेंशन (पार्क डेविस कंपनी) ओरियोमायसिन कैपसूल (सायनेमिड कंपनी), डानेमोक्स किड टैबलेट (सोल कंपनी), फ्लेमीपेन ड्राई सीरप (मेजदा कंपनी), क्रिसफोर इन्जेक्शन (साराभाई कंपनी), लेमोक्सी डाई सीरप (लायका कम्पनी), लाइडोक्स कैपसूल (लाइका कंपनी), नीवामौक्स ड्राई सीरप इत्यादि का आयु तथा रोगानुसार प्रयोग भी लाभकारी है ।
कर्णमूल प्रदाह में एंटीबायोटिक चिकित्सा के साथ- साथ लाक्षणिक चिकित्सा की जाती है । यदि रोगी को तीव्र ज्वर हो तो पेरासिटामोल का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाता है । यदि सूजन अधिक हो रही हो तो सूजन कम करने वाली औषधियों का प्रयोग किया जाता है तथा यदि रोगी को तीव्र पीड़ा हो रही हो तो पीड़ानाशक औषधियों का प्रयोग अपने विवेकानुसार करें । ज्वर उतारने के लिए रोगी के सिर पर ठण्डे पानी की पट्टी कदापि न रखें, क्योंकि ठण्ड लग जाने से रोग और भी अधिक तीव्र हो सकता है ।