नेजा के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Naja Tripudians uses in hindi )
किन्हीं विशेष-लक्षणों के न होने पर हृदय के रोग में – नेजा कोब्रा के विष का नाम है। विषों में क्रोटेलस और लैकेसिस का विशेष प्रयोग होता है, इलैप्स और नेजा का कम। क्रोटेलस और लैकेसिस के विषय में हम इनके प्रकरण में इनके लक्षणों के संबंध में लिख आये हैं। इलैप्स के लक्षणों में दो लक्षण मुख्य हैं: एक है बच्चों का नाक बन्द हो जाना; दूसरा है किसी अंग से काला खून बहना। जब जरायु से लगातार काला खून बहता है, रोगिणी समझती है कि भीतर कोई अंग फट गया है, तब प्राय: जरायु का कैंसर होता है और उसमें इलैप्स लाभ करता है। नेजा के सब लक्षण लैकेसिस की तरह के हैं। इसका बायें अंग पर प्रभाव है, नींद के बाद रोग बढ़ जाता है, रोगी गले में कॉलर नहीं पहन सकता, गले में कोई वस्तु लपेटी जाय तो गला घुटता-सा लगता है, नम मौसम में रोग बढ़ जाता है, परन्तु इसकी एक विशेषता यह है कि रोगी की सारी परेशानी उसके हृदय में केन्द्रित होती है, वहीं आकर जम जाती है। स्कूली लड़के-लड़कियों में जिनमें कोई विशेष सूचक-लक्षण न मिले, और रोगी कहे कि उसका दिल घबराता है, तो नेजा ही देना चाहिये। नेजा के लक्षण विशेष रूप से ‘स्नायु-प्रधान’ (Nervous) होते हैं। लैकेसिस और क्रोटेलस की तरह नेजा रक्त-स्राव की औषधि नहीं है, इसका प्रधान-क्षेत्र हृदय का स्नायविक-रोग है। रोगी आत्म-हत्या करना चाहता है। 6 से 30 शक्ति दी जाती है।
हृदय के रोग की भिन्न-भिन्न औषधियां
एकोनाइट – खुश्क, ठंडी हवा से यकायक तथा तेज हृदय में पीड़ा जिसमें बेचैनी, परेशानी तथा मृत्यु का भय हो।
बेलाडोना – हृदय की सूजन जिसमे रुधिर का सिर में संचय हो जाय, सिर गर्म हो, सिर-दर्द हो, चेहरा लाल हो जाय, फूल जाय, गर्दन की नसें फड़कती दीखें, आंखें सुख हो जायें।
कोलिनसोनिया – बवासीर की वजह से हृदय धड़कने लगे।
डिजिटेलिस – रोगी अनुभव करे कि अगर वह हिले-डुलेगा तो हृदय चलना बन्द हो जायेगा। जेलसीमियम से उल्टा। नाड़ी बहुत धीमी, बेहोशी की-सी हालत, अत्यंत कमजोरी, पेट में बैठता-सा अनुभव। आंखें, होंठ, जीभ, नाखून नीले पड़ जायें। रात को सांस घुटता-सा महसूस हो। पेशाब रुक जाय।
जेलसीमियम – रोगी अनुभव करे कि अगर वह हिले-डुलेगा नहीं तो हृदय चलना बन्द हो जायगा। डिजिटेलिस से उल्टा। नाड़ी अति मन्द।
ग्लोनॉयन – रोगी अनुभव करे कि हृदय तथा सिर की तरफ रुधिर दौड़ रहा है। जबर्दस्त धड़कन।
कैलमिया – गठिया या वात-रोग के कारण हृदय-रोग। हृदय तेजी से धड़कता है, धड़कता दीखता है, धड़कने की आवाज होती है। इस रोगी में वात-रोग होना आवश्यक है।
लैकेसिस – तरुण या जीर्ण हृदय-रोग जिसमें सांस घुटता-सा प्रतीत हो और छाती में ‘जकड़न’ (Constriction) की अनुभूति हो।
नेजा – हृदय-रोग के कारण खुश्क, सताने वाली खांसी, सांस घुटता-सा, हृदय-प्रदेश में घबराहट, वात-रोग के कारण ज्वर, सूजन, मन्द तथा अनियमित नाड़ी।
स्पाइजेलिया – वात-रोग के कारण हृदय का रोग, हृदय में अत्यंत दर्द, तेज धड़कन, सारी छाती हिलती दीखती है, धड़कन बिना स्टैथोस्कोप के भी सुनाई पड़ती है।
स्पंजिया – ऐंजाइना पेक्टोरिस जो रात को भयंकर, जोरदार खांसी के साथ आक्रमण करे, साथ ही बड़ी घबराहट हो। ऐंजाइना पैक्टोरिस के लिये लैट्रोडेक्टस 6 शक्ति अत्युत्तम है।