शरीर में जब विषाक्त रक्त अधिक हो जाता है तो रक्त वाहिनियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और वे निर्बल हो जाती हैं। परिणामस्वरूप पेट के स्नायु केन्द्रों को रक्त की आवश्यक मात्रा प्राप्त नहीं होती है। इस अभाव एवं दूषित रक्त के सम्पर्क से स्नायु कणों में एक प्रकार की व्यग्रता या संकोचन अथवा मरोड़ होती है । इससे यह ज्ञात होता है कि शुद्ध रक्त उनके लिए विशेष रूप से आवश्यक है । इस ऐंठन या मरोड़ को शूल व्याधि (Intestinal Colic) के नाम से जाना जाता है ! अपच, अग्निमांद्य अथवा मलावरोध आदि के कारण शरीर का वातरस दूषित होकर उत्तेजित हो उठता है। इस प्रकार के विषाक्त वात के सम्पर्क में आकर रक्तवाही धमनियाँ निर्बल हो जाती हैं । रक्तवाही धमनियाँ आवश्यक रक्त नहीं पहुँचा पाती हैं अत: स्नायुकेन्द्रों में ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है ।
गरिष्ठ पदार्थों का भक्षण, संखिया, पारा, नीलाथोथा (तूतिया) आदि विषों का सेवन, तीक्ष्ण विरेचक औषधियों का सेवन, मलावरोध, उदर में कृमि होना इन कारणों से भी उदरशूल होता है । रोगी की नाभि के चारों ओर मरोड़ की भाँति रह-रहकर दर्द उठता है। पेट में वायु गुडगुड़ करती रहती है। प्राय: मलावरोध रहता है । भोजन में अरुचि हो जाती है, जी घबराता है। कभी-कभी रोगी को वमन भी हो जाया करती है। दुर्बल रोगियों को मूर्च्छा भी आ जाती है, पर ज्वर नहीं होता है। आन्त्र शूल का दर्द मल विसर्जन के बाद कम हो जाता है। कफ के शूल में मुख से पानी, भारीपन, सिर भारी इत्यादि लक्षण हुआ करते हैं ।
रोगी को पूर्ण विश्राम करने दें । अलसी या गेहूँ के चोकर की पुल्टिस बाँधे । दोनों पाँवों को भी गरम रखें । प्यास में रोगी को बर्फ के टुकड़ों को चुसवायें। रोग की प्रथमावस्था में दूध न दें । बाली, मूंग और मसूर की दाल का पानी दें ।
साबुन और अण्डी का तेल का एनिमा दें। साथ में 10 बूंद टिंक्चर ओपियम अथवा क्लोरोडीन की मिला दें। यदि मलावरोध के कारण शूल हो अथवा मलद्वार में मल शुष्क होकर अटका हो तो कैस्टर ऑयल 25 ग्राम, तारपीन तेल 20 बूंद और पिपरमेण्ट का तेल 3 बूंद 1/4 कि.ग्रा. दूध में मिलाकर एनिमा दें।
पेट दर्द में उपयोग होने वाले अंग्रेजी दवा :-
इनमें से किसी भी औषधि का रोग, आयु तथा रोगी का लक्षण, व्यवहार देखकर लाभ प्रदान किया जा सकता है – वारडेज टिकिया तथा पेय (पी. डी.कंपनी), गैसेक्स (हिमालय कंपनी), एण्ट्रेनिल टेब. और न्यूरोट्रान्सेण्टिन टेब. (सीबा कंपनी), बेलाडीनाल टेब. (सैण्डोज कंपनी), स्पास्मोसिवाल्जीन टेब. (सीबा कंपनी), बेरालगन ड्राप्स, टिकिया, इन्जे. (हैक्स्ट कंपनी), ग्लीसीट्राल गोली (कलकत्ता केमिकल्स कंपनी), बेला बार्बीटोन टेब. (डी.आर. एल कम्पनी), सीबेल्ला टेब. (जाहनवाइथ कंपनी), पेथिडीन हाइड्रो- क्लोराइड टेबलेट व इन्जे. (डेज कम्पनी कंपनी), फेलामिन (सैण्डोज कंपनी), नियोआक्टोनम डेगी (नोल कम्पनी), यूनीस्पासमीन गोली (यूनिकेम कंपनी), एवाफोरटान टेब. (खण्डेलवाल कंपनी), लार्जेक्टिल टेबलेट, इन्जे. (मे एण्ड बेकर कंपनी), स्पासमिन्डोन टेबलेट (इण्डोफार्मा कंपनी), ओसनी पेय (सिपला कंपनी), न्यो आक्टोनम पेय (नोल कंपनी), एण्ट्रेनिल पेय (सीबा कम्पनी), टाका कोम्बेक्स इलिक्जिर (पी. डी. कंपनी), सल्यूजेल पेय (यूनिकेम कंपनी), फाइसेप्ट्रान पेय (बरोज बैल्कम कंपनी), कैरिका पेप्टोल पेय औरियण्टल रि गैस्ट्रोलोन पेय (स्टैण्डर्ड कम्पनी), बेलाफोलीन इन्जेक्शन (सैण्डोज कंपनी), नोवाल्जिन इन्जेक्शन (हैक्स्ट कंपनी), ओक्टीनम इन्जे. (नोल कंपनी), एट्रोपीन सल्फेट इन्जे. (सिपला), यूनेल्जिन इन्जे. (यूनिकेम), ऐवा फोरटान इन्जे. (खण्डेलवाल), पेथीडीन हाइड्रोक्लोराइड इन्जे. (बूटस), मारफीन और ऐट्रोपीन इन्जे. (बंगाल इम्यूनिटी), विस्फार्डिन इन्जे. (बी. डी. एच. कंपनी) फाइसेप्टान इन्जे. (वरोज वेल्कम कंपनी), पेपेबरिन हाइड्रोक्लोराइड इन्जे. (बी. आई. कम्पनी), पेपाफाइलीन इन्जे. (यूनिकेम), ट्रायगान गोलीव इन्जे. (कैडिला कम्पनी) इत्यादि ।
पेट दर्द में उपयोग होने वाले घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खा :-
- मैनफल को कांजी के साथ सिल पर चन्दन की भाँति घिसकर और गरम करके नाभि पर लेप करने से हर प्रकार के शूल नष्ट हो जाते हैं ।
- पुदीना के सात ताजे पत्ते और एक छोटी इलायची। दोनों को पान में रखकर खाने से उदर पीड़ा तत्काल दूर हो जाती है। अचूक एवं सैकड़ों बार का अनुभूत है।
- करंजवा की एक कच्ची मींगी और एक भुनी हुई मोंगी दोनों को पानी में घोटकर रोगी को पिला देने से उसी समय (तत्काल) आराम हो जाता है।
- काली मूसली तीन माशा को बारीक करके थोड़ा-सा गोघृत मिलाकर खिलाने से शूल और छाती का दर्द दूर हो जाता है ।
- जामुन का सिरका एक तोला को जल के साथ मिलाकर पीने से पेट दर्द में विशेष लाभ होता है ।
- हरड़, बहेड़ा, आँवला तथा राई सभी सममात्रा में लेकर चूर्ण कर सुरक्षित रख लें । 6 माशे की मात्रा में रोगी को देकर जल पिलायें । पेट दर्द में लाभकारी है।
- धनियाँ, हरड़, हींग, पोहकर मूल, काला नमक सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छानकर चूर्ण को 6 माशे की मात्रा में लेकर गरम जल से सेवन कराने से हर प्रकार के उदर शूल में अवश्य लाभ होता है ।