1. साधारण लोग जो होम्योपैथ होने का दम भरते हैं, उन्हें उच्च पोटेंसी की औषधियों के इस्तेमाल में बहुत सतर्क रहना चाहिए क्योंकि यह दोधारी तलवार की तरह कार्य कर सकती हैं। .
2. रोगी की जांच बहुत जरूरी है। केवल रोगी द्वारा दिए गए लक्षणों के आधार पर ही रोग का निर्धारण करना पूर्णतः हास्यास्पद है। अभी हाल ही में मैंने एक रोगी देखा था जिसके कर्णमूल क्षेत्र (मास्टॉयड रिजन) में पीड़ा हो रही थी और उसका इलाज एक के बाद एक प्रख्यात होम्योपैथ कर चुके थे और उसे छः महीने तक कैप्सिकम और फास्फोरस दिया गया था। रोगी मेरे पास लंबे समय तक कैप्सिकम के इस्तेमाल से उत्पन्न लक्षणों के साथ आया था। नैदानिक जांच से पता चला कि कर्णमूलशोथ का कोई लक्षण था ही नहीं। पीड़ा कशेरुकासंधिशोथ (सर्वाइकल स्पांडिलोसिस) के कारण थी।
3. रोगी का यदि कोई शल्यचिकित्सकीय कारण हो, जैसे कान में कोई बड़ा छेद या नाक की हड्डी अपने स्थान से हटी हुई हो तो उसकी चिकित्सा शल्यक्रिया द्वारा की जानी चाहिए। इसलिए यदि आवश्यक हो तो होम्योपैथिक उपचार से पहले किसी विशेषज्ञ से जांच कराई जानी चाहिए।
4. किसी निर्णय पर पहुंचने के पहले आवश्यक नैदानिक जांचों या परीक्षणों को अवश्य कराया जाना चाहिए।
5. मैंने देखा है कि अधिकांश होम्योचिकित्सक अपने रोगियों की चिकित्सा में केवल लक्षणों पर ही जोर देते हैं। आधुनिक नैदानिक संसाधनों के उपलब्ध होने की वजह से अब जांचों व परीक्षणों के आधार पर समुचित रोग-निर्धारण किया जाना चाहिए। यदि हम केवल लक्षणों पर आश्रित हों, तो रोग के होम्योपैथिक दृष्टिकोण के अनुरूप क्या इसका अर्थ यहहै कि अनेक लक्षणरहित रोगों, जैसे-उच्चरक्तचाप, स्तन की रसौली आदि की चिकित्सा की आवश्यकता नहीं है?
6. सामान्य जन के मन में और कुछ होम्यो चिकित्सकों के मन में भी यह गलत धारणा है कि होम्योपैथी पूर्णतः सुरक्षित है। अनुपयुक्त पोटेंसी, लंबे समय तक औषध का इस्तेमाल और गलत चिकित्सा से निश्चय ही अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
नीचे दिए गए कुछ उदाहरण जनता को सर्तक करने के लिए पर्याप्त होगे :
(अ) मेरे पास एक रोगिणी आई जिसे सिर में आगे बाईं ओर तथा जबड़े से संबंधित वायुविवरशोथ हो गया था एवं उसे संधिवात पीड़ा के लिए होम्योचिकित्सक ने साइलीशिया 10एम. दिया था। एक्स-रे से सुनिश्चित हुआ कि उसे बाएं जबड़े से संबंधित तथा सिर में आगे बाईं ओर का वायुविवरशोथ था। उसे सिर में बाईं ओर नेत्रगोलक के चारों ओर यत्रणादायक पीड़ा हो रही थी और उसे मस्तिष्कावरणशोथ (मेनिनजाइटिस) का खतरा भी था। मैंने उसके वायुविवरों से आपातकालिक निकासी की। चूंकि उसे फेफड़ों की टी.बी. थी, इसलिए उसे इतनी ऊंची पोटेंसी में साइलीशिया देने से एक और खतरा उसके तपेदिक के बढ़ जाने का था ।
(ब) मैंने टॉसिलशोथ में हीपरसल्फ दिए जाने अथवा स्वयं लेने के अनेक केसेज़ देखे हैं। उच्च पोटेंसी दिए जाने के कारण इन केसेज़ में औषध की पूविंग’ उत्पन्न होना अथवा अक्सर टॉसिल का फोड़ा निकल आना स्वाभाविक होता है। बाजार में अनेक टॉसिल की औषधियां उपलब्ध हैं और यह दावा किया जाता है कि वे हानिरहित हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। पुरानी टी.बी. केसेज़ में हीपरसल्फ बड़ी ही सतर्कता से दिया जाना चाहिए।
(स) ट्युबरकुलिनम एक ऐसी औषध है जिसे व्यावसायिक चिकित्सक और सामान्यजन बड़े ही अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल करते हैं। इसके विवेकहीन उपयोग से तपेदिकीय फोड़े उत्पन्न होने के अनेक केसेज़ मैंने देखे हैं।
(द) उपर्युक्त लक्षणों को जान लेने के बाद यदि यूजा का इस्तेमाल किया जाय तो यह एक आश्चर्यजनक औषध है। मैंने एक ऐसा केस देखा है जिसमें एक प्रख्यात होम्योचिकित्सक ने बिना नाक देखे ही ‘नाक की पालिप’ के लिए थूजा उच्च या निम्न पोटेंसी में दिया था जिसके अनेक अतिरिक्त-परिणाम (साइड-इफेक्ट्स) उत्पन्न हुए।
सावधानी
लोगों के मन में यह एक गलत धारणा है कि होम्योपैथी पूरी तरह सुरक्षित है। हां, चिकित्सा की दूसरी विधाओं, जैसे एलोपैथी या आयुर्वेद की तुलना में होम्योपैथी अधिक सुरक्षित है।
परंतु जब यह अनुभवहीन नवसिखुओं द्वारा इस्तेमाल की जाती है तो अनेक समस्याएं खड़ी होती हैं। मैंने होम्योपैथिक के द्वारा उत्पन्न किए गए निम्न प्रकार के कसेज देखे हैं :
औषध के लंबे समय तक इस्तेमाल
लम्बे समय तक औषध लेने से सिद्धिकरण के दौरान उत्पन्न हुए लक्षण रोगी में विस्तृत रूप से प्रकट हो जाते हैं। अनेक अनुभवहीन होम्योचिकित्सक और स्वयं रोगी भी इस आशा से दवा लेते रहते हैं कि कुछ समय बाद लाभकारी प्रभाव उत्पन्न हो जाएगा।
उच्च पोटेंसी
यह एक अनुभवी होम्योपैथ द्वारा ही दिया जाना चाहिए। यदि सर्तकता से उपयोग न किया गया तो उच्च पोटेंसी की औषध दोहरी धार वाले चाकू की तरह कार्य कर सकती है। यह रोग के लक्षणों को इतना अधिक बढ़ा सकती है कि फिर से नियंत्रित करना संभव न होगा।
मेरा मतलब यह नहीं है कि उच्च पोटेंसी का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कुछ रोगों से निरोग होने के लिए उच्च पोटेंसी की औषधियों का उपयोग करना पड़ता है, किंतु यह अनुभवी होम्यो चिकित्सक द्वारा ही किया जाना चाहिए।
गलत औषध
कुछ परिस्थितियों में कुछ औषधियां निषिद्ध होती हैं। सिर्फ लक्षण ही नहीं, बल्कि पूर्ण रोग-निर्धारण किया जाना चाहिए और शारीरिक जांच अच्छी तरह की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए :
1. टी.बी. के पुराने केसेज़ में हीपर सल्फ बड़ी सतर्कता से दिया जाना चाहिए।
2. साइलीशिया भी पुराने टी.बी. के केसेज़ में नहीं दिया जाना चाहिए।
3. टी.बी. के केसेज़ में फासफोरस का इस्तेमाल भी बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए।
50 वर्षीय महिला का मैं एक ऐसा केस जानता हूं जिसमें साधारण टॉसिलशोथ के लिए एक उच्चकोटि के होम्यापैथ प्रोफेसर ने ऊची पोटेंसी में इस आशा से साइलीशिया दे दिया कि वह फूट जायेगा। रोगिणी मेरे पास उग्र श्वासकष्ट के साथ उस समय आई जब सपूय टॉसिल ग्रसनी के बगल वाले स्थान में फूटकर बह निकला था।
उसे प्रोफेसर ने जो औषध दी थी उसका नाम पता करना वास्तव में एक समस्या थी। मैंने रोगिणी की निम्न चिकित्सा दी :
1. साइलीशिया की प्रतिषेधक औषध।
2. ग्रसनी के बगल के फोड़े से दूषित पदार्थों की निकासी ।
3. खाने के लिए कैलेंडुला 30 दिन में 4 बार।
सल्फर का इस्तेमाल भी बड़े अविवेकपूर्ण तरीके से किया जा रहा है। अनुभवहीन होम्यो चिकित्सकों द्वारा इसके उपयोग से अनेक तीव्र प्रतिक्रियाएं हुई हैं।
एकोनाइट
1. मलेरिया बुखार, ज्वर की चढ़ती हुई दशा में और बुखार जब उभर रहा हो के साथ ही तो इसका इस्तेमाल न करें।
2. यदि मानसिक लक्षण, जैसे- मानसिक चिंता, शारीरिक और मानसिक बेचैनी न हो तो इस औषध का उपयोग न करें।
एलो सोकोष्ट्रिना
मलाशय संबंधी रोग में इसे बार-बार नहीं देना चाहिए, कुछ खुराकें देकर परिणाम की प्रतीक्षा करें।
एल्युमिना
इसे जल्दी मत बदलिए क्योंकि इस औषध की क्रिया धीरे-धीरे विकसित होती है।
अमोनियम कार्ब
1. निम्न पोटेंसी में उपयोग न करें।
2. लैकेसिस के पहले या बाद में इस्तेमाल न करें।
एनाकार्डियम
रक्त के अत्यधिक जमने (कॉंगुलेबिलिटी) की स्थिति में इस्तेमाल न करें।
एंटिम टार्ट
जहां एंटिम टार्ट इंगित प्रतीत होता हो और विफल हो गया हो, वहां हीपर सल्फ को मत भलिए।
एपिस मेल
1. निम्न पोटेंसी में, बार-बार अथवा गर्भावस्था में विशेषकर तीसरे महीने के आसपास इस्तेमाल न करें। उन दिनों में इसे देने पर गर्भपात हो सकता है।
2. जल्दीबाजी में इस औषध को न बदलें क्योंकि कभी-कभी इसकी क्रिया धीमी होती है, विशेषरूप से जब अधिक मूत्रण के क्रिया की अपेक्षा हो।
3. इसे रसटाक्स के पहले या बाद में इस्तेमाल न करें।
अर्निका मांट
1. जहां त्वचा छिली या फटी हुई हो वहां इसको कभी त्वचा पर न लगाएं। यह तीव्र विसर्प (एरीसिपेलास) उत्पन्न कर सकती है और उस स्थिति से निबटने में ‘कैफर’ सहायक है।
2. पागल कुते के काटने पर बाहय या आंतरिक रूप से इस औषध का इस्तेमाल न करें।
बरायटा कार्बं
1. सर्दीजनित दमा में इसका प्रयोग न करें।
2. निम्न पोटेंसी में न दें। टॉसिलशोथ की प्रवणता दूर करने के लिए उच्चतम पोटेंसी में इस्तेमाल करें।
बेलाडोना
1. उग्र उपांत्रशोथ (अपेंडिसाइटिस) में इस्तेमाल न करें।
2. ऊंची पोटेंसीज़ में उपयोग न करें, यह रोगी को मार सकता है।
3. टायफायड या निरंतर बने रहने वाले बुखार में उपयोग न करें।
बेलिस पेरेनिस
रात में सोते समय न दें। इससे अनिद्रा हो सकती है।
बेंजोइक एसिड
इसे लेने के बाद शराब न लें। यह जननांगों, आमवात एवं मूत्र संबंधी संक्रमण को बढ़ा सकती है।
ब्लाटा ओरि.
यदि सुधार जारी हो तो रोग के आक्रमण के बाद औषध न दुहराएं। ऐसी स्थिति में यह अनावश्यक रोगवृद्धि उत्पन्न कर सकती है।
ब्रायोनिया
मत भूलिए कि अल्युमिना इसकी क्रानिक है।
कैलेडियम
मत भूलिए कि यह तंबाकू खाने की इच्छा का दमन कर देती है।
कैल्केरिया कार्ब
1. इसे बरायटा कार्ब या कैली बाई क्रोम के पहले इस्तेमाल न करें।
2. कैली कार्ब के बाद उपयोग न करें।
3. मत भूलिए कि यह बेलाडोना का क्रानिक है।
कैफर
1. रोगी के कमरे में इसे अपरिष्कृत (क्रूड) रूप में न रखें क्योंकि यह अधिकांश वनस्पतिजनित औषधियों का प्रभावनाशक है।
2. इसे पानी में इस्तेमाल न करें क्योंकि तब यह रोगवृद्धि करती है।
3. जब पसीना हुआ हो तब इसे उपयोग न करें। पसीना उत्पन्न होने पर इसे तुरंत बंद कर दें।
कर्बोवेज
किसी भी रोग की आरंभिक अवस्था में, विशेषकर अतिसार में इसका उपयोग न करें।
कास्टिकम
पक्षाघात के रोग में इसे बहुत जल्दी-जल्दी न दें। सप्ताह में केवल एक या दो बार दें।
कैमोमिला
यदि रोगी स्थिर और शांत हो तो इस्तेमाल न करें।
चायना
1. नर्वस और चिड़चिड़े बच्चों में 200 पोटेंसी से नीचे इस्तेमाल न करें।
2. यदि चायना विफल होती है तो मत भूलिए कि सैंटोनिनम कीड़ियों से निरोग कर सकती है।
3. ठंड के कारण उत्पन्न स्वरलोप को निरोग करने में एकोनाइट और फास के विफल होने पर, मत भूलिए कि चायना ने इसे निरोग किया है। कोचिकम मत भूलिए कि यह एपिस के विफल होने पर सूजन समाप्त करती है।
कैलिसोनिया
1. जहां हृदय का आगिक रोग हो वहां इसे मत इस्तेमाल कीजिए।
2. जब कोलोसिंथ और नक्स उदरशूल दूर करने में विफल हो तो इसे मत भूलिए।
क्रेटेगस
जल्दीबाजी में इस औषध को मत बदलिए। अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए इसे कुछ दिनों तक उपयोग करना चाहिए।
हीपर सल्फ
सर्दी-जुकाम के प्रारंभ में इसे उपयोग न करें, क्योंकि यह कष्ट को सीने तक पहुंचा सकती है।
इग्नेशिया
रात में सोते समय इसे न लें। इससे अनिद्रा हो सकती है।
कैली बाई क्रोम
कैल्केरियाकार्ब के बाद इस्तेमाल न करें।
कैली कार्ब
1. बहुत जल्दी-जल्दी न दुहराएं।
2. जीर्णकालिक गठिया, टी.बी. या बढ़े हुए वृक्कशोथ (ब्राइट्स डिजीज़) में उच्च पोटेंसी से उपचार प्रारंभ न करें।
लैकेसिस
1. बार-बार औषध न दुहराएं।
2. ऊंची पोटेंसी में सतर्कताविहीन होकर उपयोग न करें।
लाइकोपोडियम
सल्फर के बाद इस्तेमाल न करें।
मेढोरिनम
1. 200 पोटेंसी से नीचे इस्तेमाल न करें। ऊंची पोटेंसियों में अधिक अच्छी है और उन्हें चुना जा सकता है।
2. जल्दी-जल्दी न दुहराएं।
मक्र्युरियस
टॉसिलशोथ की प्रारंभिक अवस्था में इस्तेमाल न करें।
नेट्रम म्यूर
इंगित होने पर भी सिरदर्द के आक्रमण के दौरान इस्तेमाल न करें। इसकी तरुण (एक्यूट) औषध ब्रायोनिया और नक्सवोमिका से पहले सिरदर्द दूर करें। इसके बाद नेट्रम म्यूर देकर रोग को स्थाई रूप से निरोग करें।
नाइट्रिक एसिड
1. यदि किसी जीर्णकालिक रोग में इसे देने के बाद त्वचा के रोग उत्पन्न होते हैं तो इस औषध को मत बदलिए। यह एक शुभ लक्षण है।
2. मत भूलिए कि यह मर्कसाल के दुरुपयोग से उत्पन्न रोगों को दूर करती है।
नक्सबोमिका
1. इसे सुबह मत दीजिए, रोगवृद्धि करती है।
2. जब सभी औषधियां विफल हो तो इसे इस्तेमाल करना मत लिए। यह विकृत संवेदनशीलता और अन्य अव्याख्येय कष्टों को दूर कर देगी।
पैसीफ्लौरा
1. कंजूसी मत कीजिए, मूलार्क की बड़ी खुराकें दें।
2. टी.बी. में उच्च पोटेंसी न इस्तेमाल करें। इससे रक्तअपघटन (हेमोलाइसिस) हो सकता है।
पल्साटिला
1. मत भूलिए कि इसका क्रानिक’ साइलीशिया है।
2. मत भूलिए कि यह रक्ताल्पता और हरित्पाण्डुरता के रोगिणियों के लिए लाभकारी है। यह लौह और अन्य टानिकों की अत्यधिक मात्रा लेने के बाद, यहां तक कि वर्षों पहले ली गई हो तब भी, उत्पन्न कुपरिणामों को दूर करने के लिए सर्वोत्तम औषध है। अधिक चाय पीने के कारण उत्पन्न रोगों में भी यह लाभकारी है।
रसटाकस
1. एपिस के पहले या बाद में न दें।
2. गर्म रोगी को, लक्षणों के पूर्णतः मिलने पर भी, न दें।
सेलेनियम
1. न तो इसे बहुत निम्न पोटेंसी में इस्तेमाल करें और न ही बार-बार दुहराएं।
2. प्रातः काल न दें।
साइलीशिया
1. टी.बी. के रोगी को बहुत निम्न या बहुत ऊंची पोटेंसी में न दें।
2. मकसाल के पहले या बाद में न दें।
सल्फ़र
1. नूतन (एक्यूट) उदर-पीड़ा में न दें।
2. जल्दी-जल्दी न दुहराएं।
3. लाइकोपोडियम से पहले इसे न दें।
4. मत भूलिये कि यह एकोनाइट का ‘क्रानिक’ है।
थूजा
1. बार-बार न दुहराएं। एक खुराक या कभी-कभार ही इसकी और खुराक की आवश्यकता पड़ती है।
2. टीका लगने के कारण उत्पन्न बुरे प्रभावों को दूर करने में जब थूजा विफल हो तो मत भूलिए कि साइलीशिया निषिद्ध (कॉन्ट्रा-इंडिकेटेड) है।
थायरायडिनियम
टी.बी. के रोगियों को न दें।
ट्युबरकुलिनम
1. 200 पोटेंसी से नीचे न दें।
2. हृदय और फेफड़ों की सावधानी पूर्वक जांच किए बिना इसे न दें।
वेराट्रम अल्बा
अतिसार में इसे 6 पोटेंसी से नीचे न दें।