नारी सुलभ संकोच और शील तथा कुछ लापरवाही, इन्हीं के मिले-जुले कारणों से प्राय: महिलाएं अपने गुप्तांग संबंधी रोगों की ओर ध्यान नहीं देतीं, जबकि स्वास्थ्य संबंधी कुछेक नियमों का पालन मात्र करके ही वे गुप्त रोगों से बच सकती हैं। इन्हीं गुप्तांग संबंधी रोगों का एक प्रमुख लक्षण है ‘प्रदर’। लगभग 80% महिलाओं में ‘प्रदर’ होता है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य, बल्कि सौंदर्य का भी शत्रु है, जबकि सौन्दर्य स्त्री का आभूषण है।
साधारणतया योनिमार्ग में कुछ गीलापन और स्वच्छ जलीय श्यान द्रव रहता ही है, जो योनिमार्ग में ग्रंथियों के कारण होता है। साधारण स्थिति में यह द्रव कुछ दूषित सा लैक्टिक अम्ल के कारण कुछ खट्टा द्रव होता है और योनिमार्ग को शुष्क होने से और जीवाणुओं के प्रकोप से बचाता है। स्वस्थ नारी की योनि के सुरक्षातंत्र के लिए यह गीलापन आवश्यक होता है। जब कभी यह द्रव आवश्यकता से अधिक मात्रा में स्रावित होने लगता है और योनिमार्ग से बाहर टपकने लगता है, तो यह स्थिति प्रदर कहलाती है। इसे ल्यूकेरिया भी कहते हैं। इसे सफ़ेद पानी आना भी कहा जाता है।
स्पष्टत: प्रदर योनिमार्ग का आवश्यकता से अधिक स्राव है, जो 11-12 साल की आयु से 50-52 वर्ष की आयु तक होता है।
खराब सेहत, रक्तहीनता, लम्बी कब्जियत, यौनांगों की अस्वच्छता, यकृत अथवा फेफड़ों की पुरानी बीमारी, रक्त-संचालन में गड़बड़ी, सर्दी, गर्भाशय भ्रंश, पाचनतंत्र में विकार आदि कारण मुख्य रूप से ‘प्रदर’ के साथ जुड़े रहते हैं।
अत्यधिक कामोत्तेजना, उत्तेजक पदार्थों का प्रयोग, गर्भाशय मुख या ग्रीवा की सूजन, गर्भपात, अधिक संतानोत्पत्ति, श्रम की अधिकता और कमजोरी, अधिक मैथुन, अनियमित ऋतु स्राव आदि वे कारण हैं, जो यौनांगों अथवा यौन से संबंधित है।
अत्यधिक चिंता, प्रेम में असफलता, कामवेग का तीव्र संचार, तनावग्रस्त पारिवारिक पृष्ठभूमि, यौनावेग अधिक होने पर भी यौन-संतुष्टि न मिलना आदि मनोवैज्ञानिक कारण कालान्तर में मनोवैज्ञानिक रूप से मनोदैहिक रूप में परिवर्तित होकर प्रदर के रूप में योनिस्राव करते हैं।
नमकीन, चटपटे, खटाई आदि तैलीय पदार्थों का प्रयोग, शराब या धूम्रपान का प्रयोग, अधिक निद्रा आदि के कारण भी प्रदर रोग होता है।
कुछ नवजात शिशु बालिकाओं में, पैदा होने के एक हफ्ते बाद तक ल्युकोरिया जैसा स्राव हो सकता है। ऐसा मां के अस्ट्रिोजन नामक हारमोन का बच्ची के ऊपर प्रभाव के कारण होता है। यह स्वयं ठीक हो जाता है।
किशोरावस्था में शरीर में विभिन्न हारमोन स्रावों के प्रारम्भ होने के कारण भी यह होता है तथा स्वयं ही ठीक भी हो जाता है। कम उम्र में गर्भवती होने अथवा ‘ओव्यूलेशन’ के दौरान भी ऐसा हो सकता है। किशोरावस्था में या 11-12 साल की लड़कियों में प्रदर प्राय: कृमियों के कारण भी हो जाता है। इसी तरह वृद्धावस्था में गुप्तांग की झिल्लियों के पतलेपन या हारमोन की कमी के कारण प्रदर हो जाता है।
प्रदर के बड़े कारणों में सूजाक या सिफिलिस की बीमारियां आती हैं। कभी-कभी गर्भनिरोधक औषधियों का प्रयोग, लूप, पेसरी आदि के व्यवहार से भी योनिस्राव होने लगता है।
ल्यूकेरिया का लक्षण
प्रदर रोग का सामान्य लक्षण योनिस्राव तो है ही, जिसका आरम्भ कमर दर्द, जांघों में दर्द, जोड़ों में दर्द, पेडू में भारीपन, पेडू में दबाव मात्र से दर्द आदि प्रमुख लक्षण हैं।
स्राव पहले पतला, स्वच्छ और गोंद जैसा लसदार, गंधहीन होता है, जिससे अधोवस्त्र पर सफेद दाग पड़ जाया करते हैं। इस अवस्था में कमजोरी, बेचैनी, सिरदर्द, जंभाई आना, मुख-तालु का सूखना, होंठों पर पपड़ी, त्वचा का रूखापन आदि लक्षण दिखते हैं। इसे ‘सोरा’ रोग भी कहते हैं।
कालांतर में योनिस्राव अधिक गाढ़ा दुर्गन्धयुक्त सफेद दूधिया रंग का या पीले, हरे रंग का हो जाता है।
प्रदर के कारण बेचैनी, आलस्य और चिड़चिड़ापन आ जाता है और चेहरे की रौनक और सौंदर्य खत्म होने लगता है। चेहरे और शरीर की त्वचा रूखी होने से झाई, झुर्रियां आदि सौंदर्य सम्बंधी समस्याओं का जन्म होने लगता है। इसीलिए ‘प्रदर’ को स्त्री रूप का चोर अथवा सौंदर्य का दुश्मन कहा गया है।
प्रदर स्वयं एक रोग ही नहीं, बल्कि कई रोगों का लक्षण भी है। इसे छोटी-मोटी बीमारी समझना या संकोचवश चिकित्सा न कराना, कालांतर में किसी भयंकर गुप्त रोग का कारण भी बन सकता है।
ल्यूकेरिया का रोकथाम
• ‘प्रदर’ से बचने के लिए यौनांगों की सफाई रखना विशेष रूप से आवश्यक है।
• उत्तेजक विचारों से बचना चाहिए।
• तैलीय अथवा खट्टे पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।
• गर्भाशय अथवा योनिमार्ग के किसी संक्रमण अथवा सूजन की फौरन जांच करानी चाहिए।
• गर्भपात नहीं कराना चाहिए।
• महिलाओं को अपने पौष्टिक आहार का ध्यान रखते हुए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा व विटामिनयुक्त संतुलित भोजन नियमित रूप से करना चाहिए।
• यकृत, फेफड़ों, पाचन तंत्र के विकारों से बचना चाहिए। रक्तहीनता, कमजोरी आदि से भी बचाव आवश्यक है।
• चिंता, परिवार में कलह, अधिक निद्रा पर भी काबू रखना हितकर रहता है।
• महिलाओं को शराब व धूम्रपान से बचना चाहिए।
• ऋतुस्राव की अनियमितता, गर्भाशय अथवा योनि विकार अथवा कोई अन्य बीमारी होने पर योग्य चिकित्सक से उचित सलाह आवश्यक है। नित्यप्रति नहाना आवश्यक है।
श्वेत प्रदर का इलाज
एल्युमिना : प्रदर गाढ़ा, अत्यधिक चिपचिपा, पारदर्शी, जलन, दिन में अधिक ऋतुस्राव के बाद भी अधिक प्रदर ठंड़े पानी से धोने पर आराम, कब्ज के साथ लसदार प्रदर। पेट में बाई तरफ दर्द, आलू खाने की तीव्र इच्छा, किन्तु खाने के बाद परेशानियां बढ़ जाना, जल्दबाजी, बिस्तर पर पहुंचते ही त्वचा में अत्यधिक जलन एवं खुजली आदि लक्षण मिलने पर 30 अथवा 200 शक्ति में दवा प्रयुक्त करनी चाहिए।
कैल्केरिया कार्ब : सफेद गाढ़ा प्रदर, अधिक मात्रा में अधिक समय तक ऋतुस्राव के पहले व बाद में योनि में जलन एवं खुजली, छोटी बच्चियों में सफेद पानी की शिकायत, चॉक, खड़िया, पेंसिल जैसी वस्तुएं खाने की प्रबल इच्छा, मीट एवं दूध और तली वस्तुओं के प्रति अनिच्छा, गोरी, मोटी सुंदर स्त्री को जरा-सी मानसिक या शारीरिक कार्य करने पर परेशानियां लौट आती हैं, यौनांगों पर अधिक पसीना, ऋतुस्राव से पूर्व स्तनों में दर्द आदि लक्षण मिलने पर 200 शक्ति में कुछ ही खुराक लेना श्रेयस्कर रहता है।
पल्सेटिला : प्रदर चुभने वाला, चिपचिपा, जलन, चिकना, कमर में दर्द, ऋतुस्राव कम मात्रा में, प्रदर का रंग परिवर्तनीय (कभी हरा, कभी पीला), रोगिणी अपनी परेशानियों का ब्योरा देते-देते रोने लगती है और चुप कराने पर शांत हो जाती है, गर्म एवं चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ पचा नहीं पाती, जी मचलाना, जीभ सूखी किन्तु प्यास नहीं, रोगिणी बहुत भावनात्मक होती है, रोगिणी खुली हवा में व ठंड़े पेय पदार्थ पीने पर ठंडी वस्तुओं के प्रयोग से ठीक रहती है, गर्मी से परेशानियां बढ़ जाती है। 30 एवं 200 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।
बोरैक्स : ल्युकोरिया, अत्यधिक मात्रा में ऐसा आभास, जैसे योनि से गर्म पानी रिस-रिसकर पैर की एड़ियों तक पहुंच गया है, चिपचिपा, गाढ़ा, अण्डे जैसा सफेद प्रदर, शिशु जन्म के बाद स्त्रियों में अधिक दूध बनना, स्तनों से दूध टपकना, बच्चे को एक स्तन से दूध पिलाने पर दूसरे स्तन में दर्द, ऋतुस्राव अनियमित, दर्द के साथ स्राव आदि लक्षण मिलने पर 3 × अथवा 30 शक्कि में दवा प्रयोग करनी चाहिए।
सीपिया : यौनांग शिथिल, ऐसा लगता है, जैसे योनि से गर्भाशय आदि बाहर निकल आएंगे, रोगिणी टांग पर टांग रखकर बैठती है। अनियमित मासिक, हरा, पीला अत्यंत खुजलीदार प्रदर, मैथुन कष्टप्रद। 30 एवं 200 शक्ति में लेनी चाहिए।
सफेद पानी की दवा
● काला प्रदर – ‘सिनकोना’ 30
● लाल (रक्त) प्रदर – ‘सिनकोना’ 30, ‘क्रियोजोट’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘थेलस्पी’ मूल अर्क में।
● भूरा प्रदर होने पर – ‘लिलियमटिग’ 30, ‘सीपिया’ 30
● मांस के धोवन जैसा प्रदर – ‘नाइट्रिक एसिड’ 30
● दूध जैसा सफेद प्रदर – ‘बोरैक्स’ 30, ‘कैल्केरिया’ 30, ‘साइलेशिया’ 30
● हरा प्रदर – ‘बोविस्टा’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘काली सल्फ 3 x, ‘म्यूरेक्स’ 30, ‘पल्सेटिला’ 30
● खुजली रहने पर – ‘एम्ब्राग्रीसिया’ 30, ‘क्रियोजोट’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘सीपिया’ 30
● अत्यधिक गाढ़ा प्रदर – ‘बोविस्टा’ 30, ‘ग्रेफाइटिस’ 30
● कपड़ा पीला रंग दे – ‘एनसकैस्टस’ 30, ‘काली सल्फ’ 3 x, ‘हाइड्रेस्टिस’ मूल अर्क
● एलबूमिन (अंडे की सफेदी जैसा) प्रदर – ‘एलूमिना’ 30, ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200, ‘अमोनमूर’ 30, “बोरैक्स’ 30
● लसलसा, खिंचने वाला प्रदर – ‘कालीबाई’ 30, ‘सैबाइना’ 30
● माहवारी के बाद अथवा बीच में – ‘क्रियोजोट’ 30, ‘बोरेक्स’ 30
● पेशाब के बाद प्रदर – ‘क्रियोजोट’ 30, ‘अमोनमूर’ 30, ‘सीपिया’ 30
● पाखाने के बाद प्रदर – ‘मैगमूर’ 30
● रात में प्रदर – ‘मरक्यूरियस’ 30
● ठंडे पानी से धोने पर प्रदर में लाभ – ‘एलूमिना’ 30
चलने-फिरने से प्रदर बढ़ता है – ‘बोविस्टा’ 30, ‘मैगमूर’ 30
● आराम करने पर प्रदर बढ़ता है – ‘फैगोपाइरियम’ 6 ×
● बैठने पर बढ़ता है, चलने पर ठीक रहता है – ‘काक्युलस’ 30
● दिन में ही रहता है – ‘एलूमिना’ 30, ‘प्लेटिना’ 30
● बच्चियों में प्रदर रहने पर – ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200, ‘क्यूबेबा’ 30, ‘पल्सेटिला’ 30
● बुढ़िया व कमजोर औरतों में – ‘हेलोनियास’ 30
● नीला प्रदर – ‘एम्ब्राग्रीसिया’ 30
● माहवारी के स्थान पर प्रदर – ‘काक्युलस’30, ‘आयोडियम’ 30, ‘नक्समॉशचेटा’ 30, ‘सीपिया’ 30
● प्रदर के साथ पेट में दर्द रहने पर – ‘अमोनमूर’ 30, ‘मैगमूर’ 30, ‘सीपिया” 30
● कमर दर्द रहने पर – ‘एस्कुलस’ 30, ‘म्यूरेक्स’ 30
● प्रदर के साथ दस्त होने पर – ‘पल्सेटिला’ 30
● प्रदर के साथ पेशाब में जलन एवं दर्द – ‘एरिजेरोन’ मूल अर्क में एवं ‘क्रियोजोट’ 30
●छीलने वाला, जलन करने वाला प्रदर – ‘एण्टिमकूड’ 30, ‘कोनियम मैक’ 30, ‘यूकेलिप्टस’ मूल अर्क, ‘क्रियोजोट’ 30
● प्रदर के साथ तेज दर्द – ‘मैग कार्ब’ 30
● स्लेटी प्रदर – ‘बरबेरिस वल्गेरिस’ मूल अर्क।