प्रायः हर व्यक्ति को कभी न कभी सिरदर्द होता ही है। वास्तव में सिरदर्द अपने आप में कोई बीमारी नहीं है और शरीर के किसी अन्य हिस्से में होने वाले दर्द की तरह विभिन्न रोगों का लक्षण है। जब दर्द के प्रति संवेदनशील नसों के सिरे उत्तेजित हो जाते हैं, तो दर्द उत्पन्न होता है। तनाव, मांसपेशियों के सिकुड़ने, खून की नलिकाओं के फैलने और कुछ रासायनिक पदार्थों के कारण नसों के सिरे उत्तेजित हो सकते हैं।
प्रकार
सिरदर्द आम तौर से दो प्रकार का होता है –
1. खून की वाहिकाओं द्वारा होने वाला।
2. तनाव या मांसपेशियों के सिकुड़ने से होने वाला सिरदर्द।
आधा सीसी का दर्द या माइग्रेन सिर के आधे भाग में अधिक होता है। इसको अधकपाली सिरदर्द कहते हैं, जो सिर के आधे भाग में पाया जाता है। इस रोग की उत्पत्ति का कारण जानना बहुत मुश्किल है, किन्तु संभवत: यह सिफेलिक नर्व की विकृति के कारण ही पाया जाता है। यैह रोग अधिकतर यौवनकाल यानी 15-16 वर्ष की आयु से 50 वर्ष तक प्रबल रूप से आक्रमण करता है। 50 वर्ष बीत जाने पर अधिकतर यह रोग नहीं होता। इस रोग के आक्रमण करने का प्राय: एक निश्चित समय रहता है। किसी को 8 दिन के अंतर से, किसी को 15 दिन के अंतर से या एक महीने में एक बार होता है। सिरदर्द शुरू होने के समय साधारणतया 18 से 36 घंटे तक स्थायी होता है। कभी-कभी धीरे-धीरे प्रारम्भ होकर चरम सीमा तक पहुंच जाता है। मस्तिष्क के अतिरिक्त आंख के अंदर व नाक की जड़ में प्रबल दर्द मालूम होता है। किसी रोगी को सिरदर्द प्रारम्भ होने से पहले भयंकर ठण्ड लगती है। प्राय: यह मस्तक के दाहिने भाग की अपेक्षा बाएं भाग में अधिक होता है। यह सिरदर्द पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है। अक्सर यह सिरदर्द वंशानुगत होता है।
माइग्रेन का कारण शारीरिक और मानसिक तनाव दोनों ही हो सकते हैं। कुछ महिलाओं को केवल मासिक स्राव के समय ही माइग्रेन होता है। गर्भ निरोधक गोलियां खाने से भी माइग्रेन की शिकायत बढ़ सकती है। बहुत अधिक थकान होने पर, तेज धूप में रहने से और समय पर भोजन न मिलने से भी माइग्रैन हो सकता है।
1) अजीर्ण दोषजनित सिरदर्द खाद्य पदार्थ अच्छी तरह से न पकाए जाने के कारण होता है। इस प्रकार बदहजमी से भी बहुत सिरदर्द होता है।
2) पित्ताशय, यकृत के साथ जुड़ा होता है। इस पित्ताशय से नियमित पित्त निकलने में अथवा स्वंयं जिगर के किसी प्रकार के दोष के कारण इस श्रेणी का सिरदर्द होता है। सदैव मिचली आती रहती है, रोगी सिर के अंदर जैसे कुछ गर्मी अनुभव करता है व सदैव ठंडी हवा चाहता है। शौच साफ नहीं होती व सदैव मुख का स्वाद कड़वा रहता है। कै होती है और कै के साथ कुछ अनपचा पदार्थ निकलने से आराम मालूम देता है।
3) शरीर में छोटे-छोटे सूत जैसे कीड़े पाए जाते हैं। उस अवस्था में भी भयंकर सिरदर्द होता हैखाली पेटया उपवास करने में दर्द अधिक हो जाता है। घूमने-फिरने से या कीड़े निकल जाने से दर्द में शांति मिल जाती है।
4) मस्तिष्क की विकृति के कारण भी सिरदर्द पाया जाता है। इसमें रोगी की स्मरणशक्ति घट जाती है, बोल नहीं पाता, चेहरा पीला पड़ जाता है।
5) कभी-कभी सिरदर्द पैतृक भी होता है। रोगी अपने माता-पिता से यह दर्द ग्रहण करता है।
6) कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। जैसे – बहत अधिक चिंता करना, निरुत्साह होना। ऐसी अवस्था में सिरदर्द बहत भयंकर रूप धारणे कर लेता है। शारीरिक कारण भी इसकी उत्पत्ति में सहायक है। जैसें – बहुत अधिक कार्य करना, भोजन का संतुलन न रखना, बहत अधिक रोशनी से आंखों पर जोर पड़ना आदि।
7) तनावजन्य सिरदर्द :माइग्रेन के विपरीत, मांसपेशियों के सिकुड़ने या तनाव से होने वाला सिरदर्द हल्का भी हो सकता है और तेज भी। यह माथे में या सिर के पीछे वाले हिस्से में हो सकता है। इस दर्द में ऐसा लगता है जैसे सिर में कोई खिंचाव चल रहा हो या कोई बोझ रख दिया गया हो।
8) उच्च रक्तचाप से सिरदर्द तभी होता है, जब रक्तचाप अचानक बहत ज्यादा हो जाए। अत: इस अवस्था में उच्च रक्तचाप का इलाज आवश्यक है।
9) कई बार सिरदर्द किसी दूसरे अंग – जैसे आंख, नाक, कान, मुंह, दांत, साइनस आदि में संक्रमण, सूजन अथवा दबाव के कारण भी हो सकता है। गर्दन में दर्द एवं सरवाईकल स्पोंडिलाइटिस होने पर भी सिरदर्द बना रहता है। कभी-कभी आइसक्रीम वगैरह ठंडी वस्तु खा लेने पर भी सिर के आगे के भाग में दर्द रहने लगता है। ऐसा साफ्ट पेलेट के ठंड से उत्प्रेरण के कारण होता है।
10) सिर की नसों में संक्रमण, सूजन, खिंचाव अथवा दबाव के कारण भी भयंकर सिरदर्द रहता है।
11) सिर की टेम्पोरल हड्डी व जबड़े के जोड़ पर खिंचाव, दांतों में सूजन अथवा संक्रमण के कारण, संबंधित नस के प्रभावित होने के कारण भी सिरदर्द हो जाता है।
12) मस्तिष्कीय झिल्लियों (मेनिंजिस) के संक्रमण (मेनिनजाइटिस) एवं मस्तिष्क के संक्रमण (एनसिफेलाइटिस) रोग में भी सिरदर्द एक मुख्य लक्षण होता है।
13) सिर की रक्तवाहिकाओं के फैल जाने के कारण, जैसे शराब आदि का अत्यधिक सेवन करने के बाद भी सिरदर्द हो जाता है। तीव्र बुखार एवं रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता बढ़ जाने पर भी सिरदर्द बना रहता है।
14) क्लस्टर (गुच्छा,समूह या पिण्डीभूत) सिरदर्द – यह एक प्रकार का माइग्रेन ही होता है। इसमें दर्द लगभग 20-60 मिनट तक रहता है, किन्तु दिन में एक से अधिक बार उठता है और हफ्ता-दस दिन तक यही क्रम बना रहता है। उसके बाद यह ददं कुछ समय के लिए शांत हो जाता है। दर्द तीव्र होता है व साथ ही जलन भी रहती है। शुरुआत में दर्द माथे पर एवं आंखों पर होता है, किन्तु बाद में चेहरे एवं गर्दन तक भी फैल सकता है। यह प्रायः युवा पुरुषों में ही अधिक होता है। इसमें रोगी नीद से जाग उठता है, नाक बंद हो जाती है, त्वचा लाल पड़ जाती है, आंखों में आंसू इकट्ठे हो जाते हैं एवं आंखों को श्लेष्मा झिल्ली में चुभन होने लगती है।
15) चाय, कॉफी न मिलने के कारण या हृदय रोग संबंधी (सोरबिट्रेट आदि) अंग्रेजी औषधियां लेने पर भी सिरदर्द हो जाता है। यह गंभीर नहीं होता। कुछ लोगों को चाइनीज भोजन करने के बाद सिरदर्द हो जाता है। इसके लिए चीनी भोजन में सुगंध बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मोनो सोडियम ग्लूटामेट जिम्मेदार है। सिरदर्द के साथ यदि बुखार व उल्टी भी हो, तो ‘मैनिनजाइटिस’ जैसा संक्रमण भी हो सकता है। इसके अन्य लक्षण हैं, निद्रालु बने रहना, गर्दन का अकड़ना या रोगी के संवेदना तंत्र में परिवर्तन होना। इस तरह के सिरदर्द पर तुरंत ध्यान देना चाहिए। एक या दो दिन की देर करने के भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
बचाव
मामूली किस्म के सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए आहार,व्यायाम व भ्रमण की तरफ ध्यान देना होगा। आबोहवा बदलने व नदी किनारे भ्रमण करने से रोगी सहज में आरोग्य हो जाता है। अधिक चाय, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट का इस्तेमाल करने से जल्दी लाभ नहीं मिलता।
उपचार
- अत्यधिक थकान एवं शारीरिक श्रम के बाद होने वाले सिरदर्द में ‘एपिफेगस’ औषधि अत्यंत कारगर रहती है।
- सिरदर्द सिर के पिछले हिस्से में शुरू होता है और ऊपर की ओर फैलते हुएदाहिनी आंख में स्थिर हो जाता है, जो मिचलाने लगता है,उल्टी हो जाती है, रोगी अंधेरे कमरे में रहना पसंद करता है, तो ‘सैंग्युनेरिया’ औषधि 200 शक्ति तक प्रयोग करनी चाहिए। यदि सिर दर्द बाई आँख में हो तो ‘स्पाइजेलिया’ औषधि लेनी चाहिए।
- यदि दर्द सिर के पिछले भाग से शुरू होकर बाई आंख में स्थिर हो जाए, तो ‘स्पाइजेलिया’ औषधि 200 शक्ति में कारगर रहती है।
- पेट अथवा यकृत की गड़बड़ी के कारण सिरदर्द रहता हो जिसमें आंखों के सामने धब्बे भी पड़ने लगें, तो ‘आइरिस वरसीकोलर’ औषधि उच्च शक्ति में (200 से 1000) प्रयोग करनी चाहिए।
- स्कूल जाने वाली लड़कियों में आंखों परजोर पड़ने के कारण सिर दर्द हो, तो ‘फॉस्फोरिक एसिड’ 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयोग करें।• यदि स्कूल जाने वाली रक्तहीनता (एनीमिया) से ग्रस्त लड़कियों को सिरदर्द की शिकायत हो, तो ‘कैल्केरिया फॉस’ एवं ‘नेट्रमम्यूर’ औषधियां 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयुक्त करनी चाहिए।• यदि रोगी स्त्री हो और मूछ (बेहोशी,वातोन्माद) की शिकायत रहती हो, तो‘मैगम्यूर’ औषधि 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयोग कराएं।
- जैसे किसी को सिर के किसी हिस्से (किनारे) में ऐसा अहसास हो कि कोई नाखून चुभा रहा है और उसी हिस्से की तरफ लेटने पर आराम मिल रहा हो एवं मूछा और घबराहट की वजह से सिरदर्द रहता हो एवं सिर के एक तरफ ही दर्द रहता हो, तो ‘इग्नेशिया’ दवं 200 शक्ति में प्रयोग करवाएं।
- आधा सीसी का दर्द, ऐसा महसूस होना-जैसे सिर अपने आकार से बहुत अधिक बड़ा हो गया है, खिंच गया है एवं तेज दबाने पर आराम मिलता हो, तो ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’ औषधि 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए।
- मस्तक के पिछले भाग में दर्द एवं भारीपन, जैसे सीसा भरा हो, चक्कर भी आ रहे हों, तो ‘पेट्रोलियम’ 30 में देना हितकर है।
इग्नेशियाः लगातार बदलने वाले एवं एक-दूसरे के विरोधी लक्षण प्रकट होते हैं। सिर का दर्द अपनी जगह बदलता रहता है। धीरे-धीरे प्रकट होना शुरू होता है और अचानक ही समाप्त हो जाता है। (बेलाडोना और सल्फ्यूरिक एसिड औषधियों में भी सिरदर्द धीरे-धीरे शुरू होता है और अचानक ही समाप्त हो जाता है।) इसकी स्त्री में प्राय:घबराहट और मूर्छा (वातोन्माद) की शिकायत रहती है। इसके रोगी को भी एकोनाइट’, ‘जेलसीमियम’,’ साइलेशिया’ एवं ‘वेरेट्रमएल्बम’ के रोगी की तरह खुलकर पेशाब हो जाने के बाद सिरदर्द में आराम मिल जाता है। प्राय: 200 शक्ति में उक्त औषधि को प्रयोग करना लाभप्रद रहता है।
जेलसीमियमः मस्तिष्क की जड़ में (गर्दन और सिर के जोड़ पर) मंद-मंद, थका-थका दर्द रहता है। रोगी ऊंचे तकिए पर सिर रखने में आराम महसूस करता है, दिमागी काम करने पर थकावट महसूस करता है, सिगरेट से, तम्बाकू से, सिर नीचा करके (बिना तकिए के) सोने पर एवं सूर्य की गर्मी से सिरदर्द बढ़ जाता है। कभी-कभी मस्तक के पिछले भाग (आक्सीपुट) में रक्त के संचय के कारण दर्द शुरू होता है और सारे सिर में फैल जाता है। सिरदर्द में, कभी-कभी खुलकर पेशाब होने के बाद आराम मिल जाता है।
ग्लोनाइनः अत्यधिक सिरदर्द, धड़कना, सिर भरा-भरा अहसास एवं भारीपन और खिंचाव (गर्दन की रक्तवाहिकाओं में), सिर को पीछे की तरफ मोड़ना अत्यधिक कष्टप्रद, शांतिपूर्वक लेटे रहने पर आराम, जरा से झटके से सिर की पीड़ा तीव्रतम हो जाती है, दिल की धड़कन और घबराहट भी बढ़ जाती है। 30 अथवा 200 शक्ति में दवा उपयुक्त रहती है।
मेलीलोटस: सिरदर्द, अत्यधिक खिंचाव, भारीपन, चेहरे पर अत्यधिक चमक और लाली आ जाती है और नाक से खून बह जाने के बाद आराम मिलता है। मूल अर्क से लेकर 30 शक्ति तक की औषधि कारगर रहती है।
लेकेसिस: सिरदर्द, चेहरा पीला, रोगी सिरदर्द में ही सोता है, किन्तु उठने पर तीव्र सिरदर्द बना रहता है। पेशाब-पाखाने-वीर्य के स्राव के बाद कुछ आराम मिलता है। 200 शक्ति में औषधि प्रयोग करनी चाहिए। दर्द सिर से नाक तक बना रहता है, सोने के बाद अथवा जुकाम में स्राव के स्रावित हो पाने की स्थिति में सिरदर्द बढ़ जाता है। सोकर उठने के बाद छींक आने लगे, तो सिरदर्द बढ़ जाता है। सिरदर्द के साथ गर्मी के कारण बुखार भी बना रहता है।
इपिकॉक : जी मिचलाना, सिर की हड्डियों से लेकर जीभ की जड़ तक दर्द, पेट की गड़बड़ की वजह से सिरदर्द, दर्द से पहले जी मिचलाना। 30 शक्ति में देना पर्याप्त रहता है।
ब्रायोनियाः सिर फटा जाता है, अन्दर जलन रहती है, प्यास तीव्र लगती है, चलने-फिरने अथवा सिर झुकाकर बैठने पर दर्द बढ़ जाता है। 30 अथवा 200 शक्ति में औषधि का सेवन करना चाहिए।
नेट्रमकार्बः दिमागी कार्य करने से दर्द बढ़ जाता है, रोगी कुछ भी सोचता है या जरा भी दिमाग पर जोर डालता है, सिरदर्द से पीड़ित हो जाता है।
बेलाडोनाः चेहरा लाल, गर्दन की कैरोटिड धमनी में फड़कन, सिर (मस्तिष्क) में रक्त संचय, आगे की तरफ झुकना, सिर को नीचे की तरफ मोड़ना अधिक पीड़ादायक हो, तो उक्त औषधि उच्च शक्ति में एक – दो खुराक लेना ही पीड़ाहरण में कारगर है।
साइलेशिया: गर्दन से शुरू होकर आगे मस्तक तक दर्द पहुंचता है। ऐसा लगता है जैसे रोगी आगे की तरफ गिर पड़ेगा। रोगी सिर को कसकर बांधेना पसंद करता है, ऊपर की ओर देखने पर रोगी को चक्कर आने लगते हैं और ऐसा लगता है, जैसे वह आगे को गिर पड़ेगा, तो उच्च शक्ति में औषधि अधिक कारगर रहती है।
कालीबाईक्रोमः अंधा सिरदर्द, सिरदर्द प्रारम्भ हो, तो ही अंधत्व समाप्त हो जाता है, सिरदर्द अचानक होता है और शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है, तो 30 अथवा 200 शक्ति में दवा देना कारगर रहता है।
सारसापेरिलाः दबे हुए सूजाक रोग के कारण एक निश्चित समय पर सिरदर्द उठता है।
फॉस्फोरिक एसिड : मस्तक के पिछले भाग (आक्सीपुट) का दर्द, प्राय: लड़कियों को आंखों का प्रयोग अधिक करने के कारण। दवा निम्न शक्ति में ही प्रयोग की जानी चाहिए। चिकित्सकीय परामर्श से उच्च शक्ति भी प्रयोग में लाई जा सकती है।
नेट्रमम्यूरः स्कूल जाने वाली लड़कियों में, जो रक्तहीनता से पीड़ित होती हैं और पढ़ाई सिलाई-कढ़ाई आदि के कारण आंखों का अधिक प्रयोग करती हैं उन्हें सिरदर्द की शिकायत हो जाती है। ऐसी दशा में 30 से 200 शक्ति में दवा का प्रयोग लाभदायक रहता है (उक्त प्रकार की परेशानियों के आधार पर ‘कैल्केरिया फॉस’ औषधि भी प्रयुक्त की जाती है।)
नक्सवोमिका : उच्च रहन-सहन वाला रोगी, तूफानी मौसम में, खांसने पर, अत्यधिक अंग्रेजी दवाओं के सेवन के कारण, हस्तमैथुन के कारण, सिर के किसी भी भाग में दर्द होने पर 30 से 200, कभी-कभी अधिक शक्ति में भी प्रयोग की जानी चाहिए। इसमें रोगी को शौच साफ नहीं होती, जिस कारण भी सिरदर्द बना रह सकता है।
• अधिक ऊंचाई (पहाड़ों आदि) पर सिरदर्द – ‘कोका’ 30 शक्ति में लें ।
• नहाने के बाद सिरदर्द – ‘एण्टिमकूड’ 30 शक्ति में लें।
• बीयर पीने के बाद सिरदर्द – ‘रसटॉक्स’ 30 शक्ति में लें।
• मिठाई खाने के बाद (कोई मीठी चीज खाने के बाद) सिरदर्द – ‘एण्टिमकूड’ 30 शक्ति में लें।
• जुकाम (श्लेष्मा झिल्ली के संक्रमण के कारण स्राव) के कारण –‘सीपा’, ‘पल्सेटिला’, ‘हाइड्रेस्टिस’, ‘मरक्यूरियस’।
• जुकाम के दौरान नाक के स्रावके स्रावित न हो पाने के कारण – ‘कालीबाई’, ‘बेलाडोना’, लेकेसिस’ 200 शक्ति में लें ।
• कॉफी पीने के बाद सिरदर्द – ‘नक्सवोमिका’, ‘इग्नेशिया’, ‘ओरम’ 30 शक्ति में लें ।
• कब्ज रहने के कारण सिरदर्द – ‘एलो’, ‘एलुमिना’, ‘ब्रायोनिया’, ‘नक्सवोमिका’, ‘ओपियम ‘ 200 शक्ति में लें ।
• दस्त के कारण सिरदर्द – ‘एलो’, ‘पोडोफाइलम’, 30 शक्ति में लें ।
• नाचने के बाद सिरदर्द – ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’ 30 शक्ति में लें ।
• भावनात्मक कारणों से सिरदर्द – ‘जेलसीमियम’, ‘इग्नेशिया’, ‘कॉफिया’, ‘कैमोमिला’, ‘पिकरिक एसिड’, अर्जेण्टमनाइट’, ‘प्लेटिना’, ‘एपीफेगस’ 30 या 200 शक्ति में लें।
• आंखों पर दबाव के कारण सिरदर्द – ‘सिमिसीफ्यूगा’, ‘एपीफेगस’, ‘जेलसीमियम’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘ओनोसमोडियम’, ‘रुटा’ 200 शक्ति में लें।
• व्रत रखने के बाद सिरदर्द – ‘लाइकोपोडियम’, ‘आर्सेनिक’, ‘साइलेशिया’,’ लेकेसिस’।
• पेट (आमाशय एवं आंत) की गड़बड़ियों के कारण सिरदर्द – ‘एण्टिमकूड’, ‘सिनकोना’, ‘आइरिस वर्स’, ‘पल्सेटिला’, ‘ब्रायोनिया’, ‘नक्समॉशज’।
• बाल कटवाने के बाद सिरदर्द – ‘बेलाडोना’, ‘ब्रायोनिया’।
• सिर पर रखी टोपी के दबाव से सिरदर्द – ‘हिपर सल्फ’, ‘नाइट्रिक एसिड’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘काबॉवेज’, ‘कैल्केरिया फॉस’।
• बवासीर के कारण – ‘कोलिनसोनिया’, ‘नक्सवोमिका’।
• ठंडे पानी से सिरदर्द – ‘डिजिटेलिस’, ‘आसेंनिक’।
• नीबू,चाय या शराब के कारण – ‘सेलेनियम’, ‘नक्सवोम’, ‘एण्टिमक्रूड’, ‘जिंकममेट’।
• यकृत रोगों के कारण – ‘नक्सवोम’, ‘लेप्टेण्डरा’।
• कमर दर्द के बाद सिरदर्द – फिर कमर दर्द – ‘एलोस’।
• मलेरिया बुखार में सिरदर्द – ‘आर्सेनिक’, ‘चिनिनमसल्फ’, ‘यूपेटोरियम पर्फ’, ‘नेट्रमम्यूर’।
• दिमागी कार्य करने अथवा कमजोरी के कारण सिरदर्द – ‘एनाकार्डियम’, ‘अर्जेण्टम’,’ नाइट्रिकम’, ‘एपीफेगस’, ‘जेलसीमिअम’ ।
• मादक पदार्थों के सेवन के कारण सिरदर्द – ‘एसिटिक एसिड’।
• अत्यधिक बोझ उठाने के बाद सिरदर्द – ‘कैल्केरिया कार्ब’।
• हवा के बहाव के विपरीत चलने पर सिरदर्द – ‘कालीकार्ब’, ‘कैल्केरिया’।
• कार में चलने पर सिरदर्द – ‘कॉक्युलस’, ‘नाइट्रिक एसिड’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘मेडोराइनम’।
• कामोत्तेजना की कमजोरी के कारण सिरदर्द – ‘फॉस्फोरिक एसिड’, ‘साइलेशिया’, ‘ओनोसमोडियम’, ‘सिनकोना’, ‘नक्सवोम’।
• ठण्डे कमरे में सोने के बाद सिरदर्द – ‘ब्रायोनिया’।
• नीद न आने के कारण सिरदर्द – ‘नक्सवोम’, ‘कॉक्युलस’, ‘सिमिसीफ्यूगा’ ।
• रीढ़ के रोगों के कारण सिरदर्द – ‘एगेरिकस’।
• सूरज की रोशनी अथवा गर्मी से – ‘बेलाडोना’, ‘जेलसीमियम’, ‘ग्लोनाइन’, ‘नेट्रमकार्ब’।
• सिफिलिस (उपदंश या गमीं का रोग) के कारण सिरदर्द – ‘ओरम’, ‘आर्सेनिक’, ‘सारसापेरिला’, ‘सिफिलाइनम’।
• तम्बाकू के सेवन से सिरदर्द – ‘इग्नेशिया’, ‘केलेडियम’, ‘एसिड फॉस’।
• शरीर पर चोट लगने या घाव बनने के कारण – ‘आर्निका’,’हाइपेरिकम’,’नेट्रम सल्फ’।
• गर्भाशय सम्बन्धी गड़बड़ियों के कारण – ‘सिमिसीफ्यूगा’, ‘सीपिया’, ‘इग्नेशिया’, ‘पल्सेटिला’ ।
• मौसम परिवर्तन के कारण सिरदर्द – ‘कैल्केरिया फाँस’, ‘डल्कामारा’, ‘फाइटोलक्का’, ‘रसटॉक्स’, ‘एकोनाइट’ ।
• एक निश्चित समय के बाद होने वाले सिरदर्द – ‘आसेंनिक , ‘बेलाडोना’, ‘सिड्रान’।
• एक दिन छोड़कर होने वाला सिरदर्द – ‘सिनकोना’, ‘एनहेलोनियम’ ।
• हर तीसरे दिन होने वाला सिरदर्द – ‘यूपेटोरियम पर्फ’।
• हर आठवें दिन होने वाला सिरदर्द – ‘आइरिस’।
• हर हपते अथवा पन्द्रह दिन में होने वाला सिरदर्द – ‘सल्फर’।
• हर दूसरे अथवा तीसरे हफ्ते होने वाला सिरदर्द- ‘फेरममेट’।
• हर छठे हफ्ते होने वाला सिरदर्द – ‘मैगम्यूर’।