यदि पेट के धंसने जैसी अनुभूति हो तो उसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है। इस रोग को ‘खो पड़ना’ भी कहा जाता है।
सिमिसिफ्यूगा 3 – जरायु-दोष के कारण स्त्रियों को पेट धंसता हुआ सा अनुभव होता हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए। यह औषध जरायु-दोष तथा उत्त अनुभूति-दोनों को ही दूर कर देती है।
इग्नेशिया 30 – पेट में गड्ढे वाले स्थान पर कमजोरी का अनुभव, खाना खाने पर भी इस शिकायत का दूर न होना तथा विवशता के कारण रोगी के मुँह से अपने आप आहें निकलते रहना-इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग करना चाहिए।
ऐम्ब्राग्रीशिया 3 – मल-त्याग के बाद पेट के धंसने जैसी अनुभूति होने पर इसका प्रयोग करें ।
कार्बो-एनीमैलिस 3, 30 – पेट की कमजोरी के साथ ही उसके खालीपन की अनुभूति होने पर यह लाभकर है। कण्ठमाला धातु-ग्रस्त रोगियों के लिए यह विशेष हितकर है ।
सल्फर 3, 30 – दोपहर के समय पेट के धँसते जाने जैसी अनुभूति और उस समय कुछ खाये बिना न रह पाने के लक्षणों में इसका प्रयोग करें।
सीपिया 3, 200 – पेट में खालीपन का अनुभव, परन्तु खाना खा लेने के बाद भी, उस खालीपन का बने ही रहना-इन लक्षणों में हितकर है । इस औषध की रोगिणी को जरायु सम्बन्धी रोग भी हो सकता है ।
कोलोसिन्थ 30 – सिर के बाँयी ओर का दर्द-जो मुख्यत: मानसिक कारण से होता हो, किसी के साथ झगड़ते समय झुंझलाहट अथवा क्रोध से कारण उत्पन्न होने वाले सिर-दर्द में जो कि आगे की ओर झुकने अथवा पीठ के बल लेटने से बढ़ जाता हो तथा आँखें या सिर हिलाने से भी कष्ट होता हो तो इस औषध का प्रयोग हितकर सिद्ध होगा ।
नक्स-वोमिका 30 – सिर के एक हिस्से का दर्द, आँख की गोलक अथवा नाक की जड़ से जबर्दस्त सिर-दर्द के चरम सीमा पर पहुँचते समय खट्टी उल्टी आना तथा रोगी का दर्द के मारे पागल सा अथवा बेहोश हो जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।