साइनस हमारे शरीर में स्थित अस्थिमय गुहाएं होती हैं जो नासिका में खुलती हैं। इन गुहाओं पर म्यूकस की पर्त चढ़ी होती है। इस म्यूकस की पर्त में सूजन आने का ही परिणाम होता है साइनोसाइटिस।
हमारे सिर में चार जोड़ी साइनस होते हैं, जिनमें से हर जोड़ा, सिर के प्रत्येक पाशर्व में स्थित होता है। मानव शरीर रचना विज्ञान में इसे ‘पैरानेसल साइनस’ कहते हैं।
साधारण जुकाम ही साइनोसाइटिस का एक सामान्य कारण है। साइनस झिल्ली में संक्रमण के कारण सूजन आ जाती है। साइनस में खुलने वाले छोटे छिद्रों में अस्थायी जमाव और रक्त संकुचन के कारण सिरदर्द होने लगता है। यदि वास्तव में साइनस संक्रमित हो जाता है, तो लक्षण ज्यादा गंभीर हो जाते हैं।
साइनोसाइटिस का कारण एवं लक्षण
जुकाम, सिरदर्द के साथ ही आंखों के ठीक ऊपर भी दर्द होता है। इसके अतिरिक्त गालों के आसपास भी दर्द हो सकता है। मैक्सीलरी साइनोसाइटिस यानी गालों में साइनस की सूजन के कारण छोटे बच्चों को गालों में दर्द होता है।
साइनोसाइटिस के अन्य अनेक कारणों में दांतों का संक्रमण, एलर्जी, खसरा, निमोनिया, शहरी प्रदूषण, गोताखोरी, तैरना, तापक्रम में जल्दी-जल्दी होने वाले परिवर्तन आदि जैसे रासायनिक धुएं से, नाक की दोषपूर्ण रचना से जैसे कभी-कभी सेप्टम (नाक को भीतर से विभक्त करने वाला पर्दा) ठीक जगह पर न होने से सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। संक्रमित साइनस की झिल्ली में सूजन होने से प्रत्येक साइनस से नासिका में खुलने वाले छोटे छिद्र पूर्णत: या आंशिक रूप से बंद हो जाते हैं। शुरू में तो एक या दो छिद्र ही प्रभावित होते हैं, लेकिन कभी, सभी छेद एक बार में ही एक साथ बंद हो जाते हैं। बंद साइनस के अंदर एकत्र म्यूकस साइनस की दीवारों पर दबाव डालता है जिससे दर्द होता है। इसके कारण बेचैनी, ज्वर, दर्द और सांस लेने में कठिनाई भी होती है। पहले नाक से पतला पानी आता है। फिर यह सफेद अथवा पीला और कभी-कभी हरा हो जाता है। इससे संक्रमण की अवस्थाओं का पता चलता है। पानी जैसा स्राव विषाणु संक्रमण के कारण होता है, जबकि बैक्टीरिया (जीवाणु) संक्रमण इसे हरे-पीले रंग में बदल देता है। इसके अलावा बुखार होना, सर्दी लगना, चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना आदि साइनोसाइटिस के अन्य विशिष्ट लक्षण हैं।
साइनोसाइटिस मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, एक्यूट एवं क्रॉनिक साइनोसाइटिस। साइनोसाइटिस के अन्य लक्षणों में कभी-कभी नाक से बहने वाले द्रव में खून भी आ सकता है, लेकिन बहुत कम मात्रा में, मुंह का स्वाद कसैला हो जाता है, नाक की घ्राण शक्ति (गंध सूंघने की क्षमता) क्षीण हो जाती है, आंखों की लेक्राइमल ग्रंथियों से स्राव की मात्रा बढ़ जाती है और उसी से झूठमूठ के आंसू बहने लगते हैं। चेहरे पर भी सूजन आ जाती है। मैक्सीलरी साइनस में सूजन आ जाने के कारण ऊपर के मोलर दांतों में भी दर्द रहने लगता है (खाना खाते समय अधिक दर्द होता है)।
एक्यूट साइनोसाइटिस के रोगी को सामान्य उपायों से ही काफी आराम मिलता है। बुखार होने या सर्दी लगने पर घर में ही आराम करना चाहिए। अगर बुखार न हो, तब भी घर में ही ठीक रहता है। इसके अलावा ठण्डी चीजें भी नहीं खानी चाहिए। ठण्डा पानी (फ्रीज अथवा बर्फ का), आइसक्रीम, ठण्डे पेय पदार्थ आदि का परहेज करना चाहिए। एक्यूट साइनोसाइटिस के आक्रमण से बचाव के लिए तम्बाकू के धुएं से बचना चाहिए। धुआं नाक और साइनस की परत में क्षोभ उत्पन्न करता है। जुकाम के समय बार-बार या जल्दी जल्दी नाक साफ नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे संक्रमण साइनस तक पहुंच जाता है।
चिरकालिक साइनोसाइटिस के बारे में भी थोड़ी जानकारी आवश्यक है। यह लंबे समय तक साइनस में रहने वाली सूजन है। भारत में बहुत-से रोगी इससे पीड़ित है। उनकी नाक बार-बार बंद हो जाती है। बाकी अन्य लक्षण एक्यूट साइनोसाइटिस जैसे ही होते हैं।
यदि ठीक से उपचार न किया जाए, तो रोगी को कई वर्षों तक परेशान होना पड़ता है। इसलिए हमें इसके आक्रमण के प्रति सावधान रहना चाहिए और इसे मामूली जुकाम समझकर अनदेखा नहीं करना चाहिए।
साइनसाइटिस का होमियोपैथिक उपचार
फेरमफॉस : सिरदर्द, आंखें लाल, दुखन,बार-बार जुकाम होना, नाक के स्राव में हल्का लाल रक्त (मामूली-सा) मिलने पर उसके लिए 12 शक्ति तक उपयोगी है।
साइलेशिया : जब जुकाम के बाद नाक में पपड़ी जमने लगे, आंखें ऊपर करने पर चक्कर आते हों, सिरदर्द हो, जिसे कपड़े से बांधने पर आराम मिले, सिर पर अधिक पसीना, आंखों में दर्द, लेक्राइमल ग्रंथियों में सूजन की वजह से झूठमूठ के आंसू, नाक में खुजली, नाक की हड्डी में दर्द, क्षीण घ्राण, नाक को अंदर से विभाजित करने वाली झिल्ली (सेप्टम) में छेद, सुबह के वक्त एवं नाक धोने से अधिक परेशानी आदि लक्षण मिलने पर उक्त औषधि 6 से 30 शक्ति में हितकर रहती है।
फॉस्फोरस : नथुने हिलते रहते हैं (पंखे की तरह), स्त्रियों एवं युवतियों में मासिक ऋतु स्राव की जगह नाक से खून आ जाता है, अत्यधिक तीव्र घ्राण शक्ति, भिन्न-भिन्न प्रकार की बदबूदार काल्पनिक गंध महसूस करना, जुकाम, नाक के स्राव में हल्का रक्त, नाक में पालिप बन जाना, सिरदर्द, प्यास अधिक, किन्तु पानी पीने के थोड़ी देर बाद उल्टी, मौसम परिवर्तन एवं बाई अथवा दर्द वाली करवट लेटने पर अधिक परेशानी, दाई करवट लेटने पर एवं ठंडी हवा में आराम मिलना आदि लक्षण मिलने पर यह दवा 30 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए।
काली बाई क्रोम : बच्चों में नाक से बोलने की आदत, मोटे बच्चे की नाक की जड़ में दर्द एवं दबाव, सेप्टम में घाव, बुरी गंध, नाक से गाढ़ा स्राव, लसदार (खिंचनेवाला) स्राव, पीला-हरा स्राव, फ्रेंटल साइनस की सूजन, घ्राण शक्ति कमजोर, नाक से सांस लेना, मुश्किल बंद नाक, अत्यधिक छींके, आंखों में दर्द, किसी एक निश्चित बिंदु पर ही दर्द होना, सुबह के वक्त एवं गर्मी में अधिक परेशानी आदि लक्षण परिलक्षित होने पर रोगी को उक्त औषधि 30 एवं 200 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए।
• ‘नेट्रमम्यूर‘ भी उत्तम औषधि है। लक्षणों की समानता मिलने पर 200 शक्ति में लें।