कैंसर का उपचार – गेहूं का पौधा कैंसर के उपचार में किस प्रकार सहायक है?
कैंसर भी शरीर की एक स्थिति मात्र है, जो यह बताती है कि इस अद्भुत यन्त्र में कहीं कोई खराबी है। प्रकृति सदा शरीर को सन्तुलन में रखने का प्रयत्न करती है। कुछ लोग कैंसर से पीड़ित होते हैं और कुछ को अन्य बीमारियाँ, यह इसलिए कि सबके जीवन जीने का ढंग अलग-अलग है। एक महिला की छाती में कैंसर था। सब प्रकार की चिकित्सा करा कर वह वह निराश हो चुकी थी। उसको सब प्रकार के रसों का आहार दिया गया जिससे कुछ महीनों में वह ठीक हो गई। इसी प्रकार एक ल्यूकेमिया के मरीज को पानी का एनिमा देकर पेट साफ किया और बाद में एनिमा से ही अाँतों में गेहूं के पौधे का रस पहुँचाया तो वह ठीक हो गया। नगरों में निरन्तर प्रदूषण बढ़ रहा है। गेहूं के पौधे में प्रदूषण विरोधी तत्व पाए जाते हैं, इसके सेवन से कैंसर और अन्य रोगों से बचा जा सकता है।
गेहूं के ज्वारों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल विशिष्ट है। इन ज्वारों के क्लोरोफिल से निकले रस को लोंग Green Blood की उपमा देते हैं। कहते हैं कि यह रस मनुष्य के रक्त से 40 फीसदी मेल खाता है। ऐसी अद्भुत औषधि आज तक कहीं देखने में नहीं आई थी। इसके तैयार करने की विधि बहुत ही सरल है। प्रत्येक मनुष्य घर में इसे आसानी से तैयार कर सकता है।
रस बनाने की विधि – 12 चीड़ के टूटे-फूटे बक्सों में, बाँस की टोकरी में अथवा मिट्टी के गमलों में मिट्टी भरकर उसमें प्रतिदिन बारी-बारी से आधा मुट्ठी उत्तम गेहूं के दाने बो दीजिए और छाया में अथवा कमरे या बरामदे में रखकर यदा-कदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइए, धूप न लगे तो अच्छा है। जिस मिट्टी में गेहूं बोया जाए उसमें अधिक खाद नहीं होना चाहिए। तीन-चार दिन बाद पौधे उग आयेंगे और आठ-दस दिन में 7-8 इंच के हो जायेंगे तब आप उसमें से पहले दिन बोए हुए सारे पौधे जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डण्ठल और पत्ती को (जिसे Wheat Grass कहते हैं) धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर आधे गिलास के लगभग रस छानकर तैयार कर लीजिए और रोगी को तत्काल वह ताजा रस रोज सवेरे भूखे पेट पिला दीजिए। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइए। फिर दो घण्टे तक कुछ नहीं खिलायें, गेहूं के पौधों का रस पीने के बाद भूख लगने पर सब्जियों का सूप पिला सकते हैं। भोजन सादा, बिना तला-भूना दें। आप देखेंगे कि भयंकर रोग आठ-दस या पन्द्रह-बीस दिन बाद भागने लगेंगे और दो-तीन महीने में वह प्राणी एकदम रोगमुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्टा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फुजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ दें तो अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो रोगी उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं, परन्तु उसके साथ कोई फल न मिलाए जाएँ। साग-सब्जी मिलाकर खूब शौक से खायें।
गेहूं के पौधे 8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पाएँ, तभी उन्हें काम में लाया जाए। इसी कारण12 गमले या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी (प्राय: प्रतिदिन दो-एक गमलों में) चले जाइए। इस प्रकार प्राय: बारहों मास गेहूं उगाया जा सकता है। उक्त महिला डॉक्टर ने अपनी प्रयोगशाला में हजारों रोगियों पर इस Wheat Grass Juice का प्रयोग किया है और इसका कारण यह है कि उसे किसी एक मामले में भी असफलता नहीं मिली। रस निकालकर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए। ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रखकर छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है। डण्ठल और पते इतनी जल्दी खराब नहीं होते। वे गमलों में हिफाजत से रखे जायें तो विशेष हानि नहीं पहुँच सकती है।
मात्रा – गेहूं के पौधों (ज्वारों) का रस धीरे-धीरे घूंट-घूंट कर पियें। रोगियों को गेहूं के ज्वारों का रस प्रात: व शाम को पीना चाहिए। एक बार में रस की मात्रा 50 मि.ली. पियें। प्रारम्भ में ज्वारों का रस 30 मि.ली.पियें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते जायें। पुराने असाध्य या गम्भीर रोगों में रस की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 300 मिली. तक दे सकते हैं। ज्वारों के रस में किसी भी फल का रस मिला कर नहीं पियें। फलों का रस मिलाने से ज्वारों के रस का प्रभाव कम हो जाता है। पोदीने के पते गेहूं के ज्वारों के साथ पीसकर ले सकते हैं। किसी भी तरह के मसाले, नमक, नीबू नहीं डालें। इसके साथ-साथ आप एक काम और कर सकते हैं, वह यह है कि आप आधा कप गेहूं लेकर धो लीजिए और किसी बर्तन में डालकर उसमें दो कप पानी भर दीजिए। बारह घण्टे बाद वह पानी निकालकर सुबह-शाम पी लीजिए। वह आपके रोग को निर्मूल करने में अधिक सहायता करेगा। बचे गेहूं आप नमक-मिर्च डालकर वैसे भी खा सकते हैं अथवा पीसकर, हलुआ बनाकर सेवन कर सकते हैं अथवा सुखाकर आटा पिसवा सकते हैं। सब प्रकार लाभ-ही-लाभ हैं।
ऐसा है यह गेहूं के पौधों में भरा हुआ ईश्वर प्रदत अमृत ! लोगों को चाहिए कि वे इस अमृत का सेवन कर स्वयं सुखी हों और लाभ मालूम हो तो परोपकार के विचार से इसका यथाशक्ति प्रचार करके अन्य लोगों का कल्याण करें और महान पुण्य के भागी हों। गेहूं के पौधे का रस पीने से बाल भी कुछ समय के बाद काले हो जाते हैं। शरीर में तो ताकत बढ़ती है, मूत्राशय की पथरी भी ठीक हो जाती है। भूख खूब लगती है। आँखों की ज्योति बढ़ती है। विद्यार्थियों का शारीरिक व मानसिक विकास खूब होता है और स्मरणशक्ति बढ़ती है। छोटे बच्चों को भी यह रस दिया जा सकता है। छोटे बच्चों को पाँच-पाँच बूंद देना चाहिए। रस धीरे-धीरे घूंट-घूंट पीना चाहिए। रस बनने पर तुरन्त पी लेना चाहिए। तीन घण्टे में उसके पोषक गुण दूर हो जाते हैं। रस लेने के पूर्व तथा बाद में एक घण्टे तक कुछ भी नहीं खाया जाए। शुरू में कइयों को उल्टी होगी और दस्त होने लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दी, उल्टी या दस्त से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरूरत नहीं है। रस में अदरक अथवा खाने का पान मिला सकते हैं, इससे स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है। रस में नीबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
गेहूं के पौधे का रस कम-से-कम 40 दिन और आगे जब तक चाहें कई महीनों तक पी सकते हैं। लम्बे समय तक पीते रहने से कोई हानि नहीं होती है। यह रस पीने वालों का अनुभव है कि इससे आँखें, दाँत और बालों को बहुत फायदा होता है और कब्ज भी नहीं रहती। इस रस के सेवन से कोई हानि नहीं होती। इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएँ नहीं खानी चाहिए।
गेहूं-घास-रस के अन्य लाभ
1. सम्भव हो तो गेहूं-घास-रस का ‘एनिमा’ भी लें। इससे पेट में यदि कीड़े हों तो बाहर निकल आते हैं। पेट साफ रहता है तथा पेट से उठने वाली अन्य बीमारियों में भी लाभप्रद है, जैसे-कब्ज़, गैस ट्रबल, अल्सर आदि।
2. भूख खूब लगती है तथा शारीरिक शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है व हीमोग्लोबिन बढ़कर शुद्ध रक्त का निर्माण होता है और चेहरा सुन्दर तथा लावण्यमय हो जाता है।
3. मूत्राशय व गुर्दे सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। पथरी भी दूर होती है। दाँत मजबूत होते हैं तथा बालों को भी लाभ होता है। अाँखों की ज्योति बढ़ती है। चर्मरोग नहीं होते।
4. विद्यार्थियों का शारीरिक-मानसिक विकास खूब होता है और स्मरण-शक्ति बढ़ती है। नशे की आदत छूट जाती है।
5. रक्तचाप, हृदय-रोग, लकवा व पोलियो की सम्भावना नहीं रहती।
6. गेहूं-घास की पत्तियों को पानी में डालकर रखने से उसके कीटाणु नष्ट होकर पत्तियों से चिपक जाते हैं व पानी अत्यधिक शुद्ध हो जाता है।
7. व्हीट ग्रास (गेहूं के कोमल पौधे) रस में 103 तत्व, आवश्यक विटामिनों की पूरी श्रेणी (जिसमें विटामिन-‘सी’, ‘ए’, ‘बी’ और ‘ई’ बहुतायत से हैं)
8. गेहूं-घास का रस हीमोग्लोबीन बढ़ाता है और हृदय के कार्य को सुधारता है। यह उत्कृष्ट विकार निवारक और कायाकल्प कारक है, पाचनशक्ति बढ़ाता है और कब्ज़ से बचाता है। मानसिक संतुलन सुधारता है और मस्तिष्क व तंत्रिका के क्रियाकलापों को उत्प्रेरित करता है। मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायता करता है। सभी प्रकार के त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने में सहायक है। विष-निवारक और नुकसानकर्ता सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकता है। बालों का सफेद होना रोकता है। टिश्यूज़ (ऊतकों) में प्रवेश कर उन्हें चुस्त-दुरुस्त करता है। लीवर (यकृत) को शुद्ध करता है और फेफड़ों के घाव भर देता है। दाँत दर्द, दाँतों का सड़ना, पायोरिया और गले की बीमारियों में आराम देता है। शरीर में भारी धातुओं और विषैले औषधों का जमाव दूर करता है। कैंसर ट्यूमर को दूर करने में सहायता करता है।
9. गेहूं के पौधे के रस से रक्त साफ होता है। हर प्रकार के चर्म रोग में यह रस पियें, रस से रोग-ग्रस्त चर्म को धोयें और बार-बार रस ही लगायें। लाभ होगा।
10. बाल गिरना, बाल सफेद होना तथा महिलाओं को रसौली में लाभदायक है।
11. गेहूं के पौधों का रस पीने से शारीरिक शक्ति इतनी बढ़ती है कि वह सभी बीमारियों के विष और कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। फिर शरीर में कोई रोग नहीं रह सक्रता |
‘चोकर-कॉफी’ एक प्रयोग यह भी – गेहूं के आटे को मैदे की छलनी से छान लीजिए और जो चोकर यानि चापड़ या भूसी निकले उसे तवे पर सेंक लें। उसे इतना सेंकें कि वह लाल हो जाये, परन्तु कच्ची न रहे और जले भी नहीं। फिर इस सिकी हुई चोकर को दूध-शक्कर-पानी में डालकर खूब उबालें व छानकर पियें। इसका स्वाद कॉफी के समान होगा और तुरन्त स्फूर्ति मालूम होगी क्योंकि इसमें प्रोटीन अधिक होता है। इससे ‘ब्लडप्रेशर’, हार्ट-अटैक, कब्ज़ व गैस, में लाभ होगा और शारीरिक दुर्बलता दूर करने में इसका कोई जवाब ही नहीं।