गेहूँ की रोटी अन्य अन्नों से अच्छी होती है।
पेशाब के साथ वीर्य जाना – सौ ग्राम गेहूँ को रात को पानी में भिगो दें। सवेरे उसी पानी में उन्हें पत्थर पर पीसकर लस्सी बना लें। स्वाद के लिए चीनी मिला लें। सात दिन तक पीने से आराम हो जाता है।
गर्भपात – जिनको गर्भपात होता हो वे एक मुट्ठी गेहूँ अंकुरित करके उसमें 20 किशमिश मिलाकर नित्य एक बार खायें। यह विटामिन-‘ई’ की सेवन करने की सरल विधि है। इससे गर्भपात नहीं होता।
पागल कुत्ते के काटे की पहचान – गेहूँ के आटे को पानी में गूँधकर उसकी कच्ची रोटी (बिना तवे पर सेंके) कुत्ता काटे स्थान पर रखकर बाँध दें। थोड़ी देर बाद उसे खोलकर किसी अन्य कुत्ते के पास खाने के लिए डाल दें। यदि वह कुत्ता उस आटे को नहीं खाए तो समझ लेना चाहिए कि पागल कुत्ते ने काटा है। यदि खा ले तो समझे कि जिस कुत्ते ने काटा है, वह पागल नहीं है।
फोड़ा – (1) बालतोड़ फोड़ा होने पर बीस दाने गेहूँ के मुँह में खूब चबायें। बारीक लुगदी होने पर इसे फोड़े पर लगायें। आराम होगा। (2) गेहूँ के आटे में नमक, पानी डालकर हलवे की तरह पकाकर फोड़े पर बाँधने से फोड़ा फूट जाता है।
आधे सिर में दर्द – आधे सिर में दर्द होता हो तो सूर्योदय से पहले घी में बनी हुई पूड़ी और हरी पत्तियों वाली सब्जी खायें। कुछ दिन लगातार खाने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जायेगा।
दस्त, आमातिसार – सौंफ को पीसकर पानी में मिलाकर, छानकर इस सौंफ के पानी में गेहूँ का आटा गूँधकर रोटी बनाकर खाने से लाभ होता है।
मधुमेहनाशक दलिया – 500 ग्राम छिलके वाली मूंग की दाल; 500 ग्राम चावल; 500 ग्राम बाजरा, 500 ग्राम गेहूँ – इन सबको मिलाकर भूनें और दलिया बना लें। इस दलिया में 50 ग्राम सफेद तिल तथा 20 ग्राम अजवायन मिला लें। इस दलिया में से 50 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें। स्वाद हेतु सेंधा नमक, हरीमिर्च, हरा धनिया मौसम की सब्जियाँ डालकर दलिया बनाकर सुबह-शाम दस दिन तक खायें। इसके सेवन से इन्सुलिन का इन्जेक्शन छूट जायेगा, मधुमेह ठीक होगा, मोटापा घटेगा। प्रतिमाह सात दिन खायें।
चोट – गेहूँ की राख, घी और गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाने से चोट का दर्द ठीक हो जाता है।
दर्दनाशक – 3 चम्मच गेहूँ का दलिया रात को एक कप पानी में भिगो दें। प्रात: इसमें दो चम्मच पिसा हुआ धनिया, दो चम्मच खसखस और दूध, चीनी डाल कर खीर की तरह पकायें। मात्रा आवश्यकता और स्वादानुसार घटा बढ़ा सकते हैं। यह दर्दनाशक है। यह खीर पाचनशक्ति के विकार को दूर करती है, शक्तिवर्धक है।
सूजन – गेहूँ उबालकर गर्म-गर्म पानी से सूजन वाली जगह को धोने से सूजन कम हो जाती है।
हड्डी टूटने पर 12 ग्राम गेहूँ की राख इतने ही शहद में मिलाकर चाटने से टूटी हुई हड्डियाँ जुड़ जाती हैं। कमर और जोड़ों के दर्द में भी आराम होता है।
हड्डी टूटना, चोट, मोच लगने पर – गुड़ में गेहूँ का हलवा (सीरा) बनाकर खायें। इससे दर्द में लाभ होगा, हड्डी शीघ्र जुड़ेगी।
दर्द – गेहूँ की रोटी एक ओर से सेंक लें, एक ओर कच्ची रखें। कच्ची की ओर तिल का तेल लगाकर दर्द वाले अंग पर बाँध दें। इससे दर्द दूर हो जायेगा।
कीड़े – गेहूँ के आटे में समान मात्रा में बोरिक एसिड पाउडर मिलाकर पानी डालकर गोलियाँ बना लें और गेहूँ में रखें। कीड़े, कॉकरोच नहीं रहेंगे।
फरास – गेहूँ के पौधों के रस से बालों को दस मिनट भिगोये रखें, इसके बाद धोने से फरास दूर हो जाती है।
चर्म रोग – विशेषत: खर्रा, दुष्ट अकौता तथा दाद की तरह कठिन, गुप्त एवं सूखे चर्म रोगों में-गेहूँ को गर्म तवे पर खूब अच्छी तरह भूनकर, जब वह बिल्कुल ही राख की तरह हो जाए तो उसे खरल में खूब अच्छी तरह पीसकर शुद्ध सरसों के तेल में मिलाकर सम्बन्धित स्थान पर लगाने से कई वर्षों के असाध्य एवं पुराने चर्म रोग आरोग्य हुए हैं।
अँगुलियों में खुजली – सर्दी व बरसात में हाथों व पैरों की औगुलियों में खुजली होने लगती है व सूजन आ जाती है। इसको ठीक करने के लिए जानवरों को डाला जाने वाला भूसा (गेहूँ की कुट्टी) एक मुट्ठी भर व एक चम्मच नमक 2 लीटर पानी में डालकर उबाल कर जब पानी गर्म व गुनगुना हो तब हाथ व पैर डुबो कर सेंक करें, आराम मिलेगा। पैरों की बिवाई फटने पर भी यह उपाय लाभप्रद है।
खुजली – गेहूँ के आटे में पानी मिलाकर लेप करने से चर्म को दाह, खुजली, टीसयुक्त फोड़े, फुंसी और अग्नि से जले हुए पर लगाने से लाभ होता है।
दाद, खुजली, पुराने त्वचा रोग – लोहे के बर्तन में गेहूँ भूनकर जलाकर पीस लें। इसमें सरसों का तेल मिलाकर मरहम बनाकर लगायें।
खाँसी – 20 ग्राम गेहूँ या गेहूँ का दलिया और 5 ग्राम सेंधे नमक को पाव भर पानी में औटाकर एक तिहाई पानी रहने पर छानकर नित्य दो बार पीने से खाँसी मिट जाती है।
पेशाब की जलन – रात को 12 ग्राम गेहूँ 250 ग्राम पानी में भिगो दें। प्रात: छानकर उस पानी में 25 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है।
पथरी – गेहूँ और चनों को औटाकर उसका पानी पीने से गुर्दा और मूत्राशय की पथरी गल जाती है।
शक्तिवर्धक – आधा कप गेहूँ रात को पानी में भिगो दें। प्रात: गेहूँ और स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पीसकर एक गिलास पानी में घोलकर पियें। कमजोरी दूर होगी, धातु विकार दूर हो जायेंगे।
नपुंसकता, बाँझपन – आधा कप गेहूँ को बारह घण्टे पानी में भिगोयें, फिर गीले मोटे कपड़े में बाँधकर चौबीस घण्टे रखें। इस तरह छतीस घण्टे में अंकुर निकल आयेंगे। इन अंकुरित गेहुँओं को बिना पकाए ही खायें। स्वाद के लिए गुड़ या किशमिश मिलाकर खा सकते हैं। इन अंकुरित गेहुँओं में विटामिन ई (E) भरपूर मिलता है। यह स्वास्थ्य एवं शक्ति का भण्डार है। नपुंसकता एवं बाँझपन में यह लाभकारी है। केवल सन्तानोत्पति के लिए 25 ग्राम अंकुरित गेहूँ तीन दिन और फिर तीन दिन इतने ही अंकुरित उड़द पर्यायक्रम से खाने चाहिए। यह प्रयोग कुछ महीने करें। गेहूँ के अंकुर अमृत हैं। इनमें शरीर की रक्षा के लिए आवश्यक सभी विटामिन प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। गेहूँ के अंकुर खाने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।
हिपोक्रेट्स के कथनानुसार ‘आपका आहार ही आपकी औषधि है। गेहूँ के ज्वारे का रस उत्तम कोटि का पोषक तो है ही, बल्कि विशुद्ध-निर्मल-प्राकृतिक क्लोरीफिल युक्त स्वास्थ्यप्रद आहार भी है। अमेरिका के बोस्टन नगर के अधिकांश चिकित्सकों ने अपने रोगियों को गेहूँ के ज्वारे के रस पर रखा और उसके चमत्कारिक परिणाम मिले। आप चर्मरोग, मधुमेह, अस्थमा, सर्दी, एलर्जी तथा सन्धिवात से पीड़ित हैं, तो ज्वारे का रस पीना शुरू कर दें। गेहूँ के ज्वारे के रस से रक्त-शुद्धि होती है। इससे कई रोग स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। शरीर के प्रत्येक अवयव को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध रक्त आवश्यक है। कई अमरीकनों ने कैंसर जैसे रोग से भी केवल एक महीने तक गेहूँ के ज्वारे के रस का सेवन करके मुक्ति पायी है। गेहूँ के ज्वारे के रस में ‘लेट्राइल’ पाया जाता है जो कैंसर के कोशों को नष्ट करता है। मधुमेह में ‘इन्सुलिन’ जो काम करता है वही काम कैंसर के लिए ‘लेट्राइल’ करता है।