पित्ताशय (Gall Bladder) में पित्त (Bile) के कई अंशों से यह पथरियां बन जाती हैं। इन पथरियों को पित्त पथरी (Gall Stones) कहा जाता है । जो मनुष्य कम व्यायाम करते हैं (जिनको सारा दिन बैठकर काम करना पड़ता है) तथा माँस अधिक खाने और अधिक चिन्ता करने वालों को यह पथरियाँ हो जाती हैं। यह पथरियाँ पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होती हैं । पचास वर्ष से कम आयु वालों को यह रोग बहुत कम होता है । जब तक ये पथरियाँ पित्ताशय में रहती हैं रोगी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है और न ही इस रोग का सन्देह होता है। कभी-कभी कंकरी या कंकर पित्त के साथ निकलकर अन्तड़ियों को जाने वाली नलिका में चला जाता है (ऐसा बहुत अधिक खा लेने या अन्य शारीरिक कार्य करने से होता है) यदि पथरी बहुत छोटी हो तो कोई कष्ट नहीं होता है अथवा मामूली दर्द होता है । कई बार इस प्रकार की पथरियाँ रोगी के मल में निकलती है । परन्तु बड़ी पथरी बन जाने पर रोगी को बहुत कम्पन होती है और कष्टदायक दर्द होता है जिसको पित्ताशय-शूल (Biliary Colic) कहा जाता है। यह दर्द आमाशय के दाँए ओर से शुरू होकर कमर की ओर जाता है। पहले आमाशय में पेडू की नलिकों का मार्ग इस पथरी के कारण बिल्कुल बन्द हो जाता है तो रोगी का चेहरा पीला हो जाता है और उसको पाण्डु रोग हो जाता है । पाखाने में पित्त न आने के कारण उसका रंग मिट्टी के रंग जैसा हो जाता है । बड़ी पथरी के फँस जाने से आक्रान्त भाग सूज सकता है, फोड़ा या घाव भी उत्पन्न हो सकता है जो अन्तड़ी या आमाशय में फट सकता है । 10% वयस्कों के पित्तों में यह कंकरिया पाई जाती हैं । बार-बार गर्भ धारण हो जाने और मोटी स्त्रियों को भी यह रोग हो सकता है।
ऐसे रोग जिससे रक्त के कण टूट-फूटकर घुल जाते हैं । गर्भ के समय पित्त रुका रहना और रक्त के अंशों में कोलेस्ट्रोल की अधिकता से ये कंकरियाँ उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि धीरे-धीरे पित्त की रेत के अनेक कण मिलते और जमते चले जाने से छोटी-छोटी पथरियाँ बन जाती हैं ।
किडनी और पित्ताशय की पथरियों के लक्षणों में मुख्य अन्तर
किडनी की पथरी | पित्ताशय की पथरी |
पीठ के निचले भाग में जिस वृक्क में पथरी होती है उस ओर दर्द होता है। | दर्द नहीं होता है । |
टीस वाली तीव्र दर्द कमरे से अण्डकोष और जाँघों में जाता है। | आमाशय के दाँयी ओर के गड्ढे से दर्द शुरू होकर कमर को जाता है। |
यह दर्द प्रायः कमर की एक ओर होता है। (कभी-कभी दोनों ओर भी होता है और इस दर्द का होता है) | यह दर्द हमेशा दाँयी ओर होता है और इस दर्द का प्रभाव ये कन्धे की हँसली तक पहुँचता है। |
जाँघ या पैर संज्ञाहीन हो जाते हैं। | यह कष्ट नहीं होता है। |
अण्डकोष की गोलियाँ ऊपर चढ़ जाती हैं। | ऐसा नहीं होता है । |
बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होती है और मूत्र करते समय दर्द होता है । | ऐसा नहीं होता है । |
मूत्र बहुत थोड़ा, बहुत गहरे रंग या रक्त मिश्रित आता है । | मूत्र का रंग तेज हल्दी के रंग का हो जाता है । |
छोटे जोड़ों का दर्द तथा कष्ट रोगी को रह चुका होता है। | पाण्डु रोग, मिट्टी के सदृश मल आना, पाखाना आना |
यह रोग पुरुषों को अधिक होता है। | यह रोग स्त्रियों को अधिक होता है। |
मध्य आयु में यह रोग होता है । | 50 वर्ष की आयु के बाद प्रायः यह रोग होता है । |
इन रोगों को पूर्ण निरीक्षण एक्स-रे तथा अल्ट्रा साउण्ड से कराने पर ही अच्छी सहायता मिल जाती है ।
पित्त पथरी की अंग्रेजी दवा
पित्ताशय की पथरी के कारण दर्द होने पर रोगी को ‘एमाईल नाइट्रेट‘ का एक एम्पूल तोड़कर सुंघाने से कष्ट कम हो जाता है ।
एट्रोपीन सल्फेट 0.65 मि.ग्रा. का चर्म में इन्जेक्शन लगाना लाभकारी है ।
इस चिकित्सा से आराम न आने पर 15 मि.ग्रा. मॉर्फिन की चर्म में इन्जेक्शन लगा देने से भी दर्द दूर होकर रोगी सो जाता है ।
यूपेको (Eupaco) निर्माता ई. मर्क – यह टिकिया पित्ताशय की पथरी और दर्द वृक्क-शूल आदि में परम लाभकारी है । मात्रा 1 से 2 टिकिया । रोग अधिक होने पर इस दवा के एम्पूल को 1 मि.ली. का मांस में इन्जेक्शन लगायें ।
स्पास्मो प्रोक्सीवान (वाकहर्डट) यह कैप्सूल पित्ताशय की पथरी और पित्ताशय शूल में बहुत ही हितकर है । एक कैप्सूल दिन में तीन बार भोजन से पूर्व खिलायें।
रोगी को गरम जल के टब में बैठायें । जल कमर तक रहे या दर्द के स्थान पर काफी गरम जल की टकोर करने से आराम आ जाता है ।
यदि भोजन करने के बाद कष्ट हो जाये तो रोगी को कै करायें । परन्तु यदि खाना खाने के बहुत देर बाद पित्ताशय-शूल पथरी के कारण हो जाये तो एक गिलास गरम जल में एक छोटा चम्मच ‘कार्बोनेट ऑफ सोडा’ घोल कर पिलायें ।
कब्ज होने पर रोगी को दवा देकर 1-2 पाखाने लायें । दर्द का दौरा खत्म होने पर पाखाने को छलनी से छानकर धोकर पथरी को देखें ।
बेरालगन (हैक्स्ट कंपनी) – टेबलेट दें । तीव्र दशा में बेरालगन इन्जेक्शन लगायें ।
नोट – पित्ताशय में फोड़ा या घाव हो जाने और पित्ताशय प्रणाली पूर्ण बन्द हो आने पर आप्रेशन कराना आवश्यक होता है ।
रोगी के भोजन में – घी और चिकनाई कम होनी चाहिए । मांस और निशास्ता भोजन में अधिक दें । परन्तु भोजन की कैलोरी शक्ति कम होनी जरूरी है, ताकि रोगी का मोटापा और वजन कम हो जाये । वजन और चर्बी घट जाने से रोग कम हो जाता है । सादा जीवन जीना एवं हल्का व्यायाम करना लाभप्रद है । चर्बी पैदा करने वाले भोजनों से परहेज और मद्यपान को निषेध आवश्यक है ।