सर्दी के दिनों में ठण्ड लगने से शरीर के किसी भाग की त्वचा के फटने को बिवाई कहा जाता है। ठण्ड लगने के कारण हाथ, पाँव तथा मुंह आदि पर सूजन आ जाती है, त्वचा फट जाती है तथा जलन एवं खुजली के लक्षण प्रकट होते हैं। विशेषकर होंठ, गाल तथा पाँव – इस रोग के मुख्य शिकार बनते हैं।
बिवाई की चिकित्सा
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
ऐगैरिकस 3, 6, 30, 200 – यह बिवाई फटने की मुख्य औषध है। डॉ० नैश के मतानुसार रोगी के कान, चेहरा, नाक, अँगुलियाँ, अंगूठा, चमड़ी अथवा शरीर के किसी भी अंग का ठण्ड लगने से प्रदाहित होना, त्वचा का लाल हो जाना एवं जलन तथा खुजली मचना – इन लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है। इसकी उच्चशक्ति अधिक हितकर होती हैं ।
पेट्रोलियम 200 – ठण्ड लगने के कारण त्वचा के फट जाने, उससे रक्तस्राव होने, अँगुलियों के सिरों तथा हाथ के पृष्ठभाग के फट जाने, त्वचा के तन्तुओं के कठोर हो जाने एवं त्वचा के खुरदरी हो जाने – इन सब लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है। गर्मी में लुप्त तथा सर्दी में प्रकट होने वाले ‘एक्जिमा’ की भी यह श्रेष्ठ दवा है ।
फास्फोरस 30 – डॉ० ज्हार के मतानुसार ठण्ड लगने के कारण त्वचा में कहीं भी बिवाई फटने की शिकायत हो तो इस औषध की केवल एक मात्रा देने से ही रोग दूर हो जाता है।
रस टाक्स 30 – यदि बिवाई फटने का स्थान कालापन लिए हुए, लाल हो और वहाँ अत्यधिक खुजली भी हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए।
पल्सेटिला 3 – यदि लड़कियों को मासिक-धर्म देर में होने के कारण बिवाई फटने की शिकायत हो तो इस औषध को कुछ दिनों तक प्रति 8 घण्टे के अन्तर से देते रहना चाहिए ।
कैल्केरिया-कार्ब 3 – थुलथुल शरीर वाले तथा बढ़े हुए ग्लैण्डस वाले व्यक्ति को इस रोग की प्रवृत्ति हो तो यह औषध 8 घण्टे के अन्तर से कुछ दिनों तक देते रहने से लाभ होता है ।
सल्फर 3 – यदि बिवाई फटने के रोगी में स्पर्श-असहिष्णुता के लक्षण हों तो इस औषध को कुछ दिनों तक आठ घण्टे के अन्तर से सेवन कराना चाहिए।
थाइराडीन 3 – यदि रोगी का थाइराइड ग्लैण्ड बढ़ा हुआ हो, शरीर भारी भरकम हो, वह ठण्ड सहन न कर पाता हो तथा उसमें बिवाई फटने की प्रवृत्ति भी पाई जाती हो तो उस प्रवृत्ति को रोकने के लिए यह औषध 5 ग्रेन की मात्रा में आठ-आठ घण्टे के अन्तर से कुछ दिनों तक देकर देखना चाहिए ।
विशेष – उत्त औषधियों के अतिरिक्त लक्षणानुसार इन औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है – पल्सेटिला, सल्फर, रस-टाक्स ।
बिवाई फटे स्थान पर ‘टैक्सस’ मदर-टिंक्चर को समभाग ‘ग्लीसरीन’ में मिलाकर लगाने से लाभ होता है ।