यह विटामिन भी बी-कॉम्प्लेक्स समूह का सदस्य है । यकृत में वसा (चर्बी) एकत्र होने के कार्य पर इसका एक विशिष्ट प्रभाव पड़ता है और शरीर को उत्तम लाभ पहुँचाता है । यही कारण है कि यकृत रोगों में इनोसिटोल (inositol) के साथ इसका प्रयोग गुणकारी होता है ।
आहार में कोलीन का महत्त्व सर्वप्रथम ‘बैस्ट’ ने 1932 में प्रस्ताविक किया। उसने प्रयोगों के द्वारा यह दिखलाया कि अधिक वसायुक्त आहार के साथ यदि कोलीन भी दी जाये तो चूहों के यकृत में वसा अधिक मात्रा में एकत्रित नहीं हो पाती है। इसी आधार पर ‘कोलीन’ को लाइपो-ट्रॉपिक फैक्टर (lipotropic factor ) कहा गया । आहार पदार्थों में कोलीन मुख्यत: अण्डों, माँस, दालों और अन्न तथा दुग्धवर्ग में पाया जाता है। कोलीन की उपस्थिति यकृत कोषों में वसा का संचय नहीं होने देती है। आहार में कोलीन की कमी होने पर यकृत कोषों में वसा का अधिक मात्रा में संचय होने लगता है । यह स्थिति दीर्घकालीन होने पर यकृत में फाइब्रोसिस और सिरोसिस के परिवर्तन होने लगते हैं । कोलीन का उपयोग विषाक्त दशाओं में यकृत की रक्षा के निमित्त किया जा सकता है। यकृत रोगों में विटामिन ‘इ’ व बी कॉम्प्लेक्स (विशेषकर बी-12) के साथ इसका प्रयोग अधिक लाभकारी सिद्ध होता है ।