विवरण – इस रोग का प्रारम्भ पाकाशय की गड़बड़ी से होता है। बाद में पानी भर जाने के कारण नगाड़े की तरह फूल जाता है तथा शरीर में शोथ, जलन, पीड़ा एवं पेशाब रुक जाना आदि उपसर्ग प्रकट होते हैं ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
एपिस Q, 1x, 6 – पेट में पानी भर आना, प्यास न लगना, पेशाब बहुत कम होना, गर्मी से रोग-कष्ट का बढ़ना, मस्तिष्क, हृदय तथा पेट की आवरक झिल्ली तथा उसके अन्य अंगों के बीच पानी रिंस आना, जलन तथा डंक लगने जैसी पीड़ा आदि लक्षणों में लाभकर है ।
आर्सेनिक एल्बम 30 – डॉ० फेरिंगटन के मतानुसार पेट में जल-संचय होने पर यह बहुत लाभ करती है । इस औषध के रोगी को बेहद प्यास लगती है, परन्तु वह घूंट-घूंट करके थोड़ा ही पानी पीता हैं ।
ऐसेटिक-एसिड 3, 30 – जलोदर में यह औषध भी लाभ करती है । इस औषध को रोगी को बहुत तेज प्यास लगती है और वह कुछ अधिक पानी पीता भी है । खट्टी डकारें, मुँह में पेट से खट्टा पानी उछल आना तथा दस्त आदि के लक्षणों में हितकर है। इसे अधिक दुहराना नहीं चाहिए।
ऐपोसाइनम कैनेबिनम Q – जलोदर तथा सम्पूर्ण शरीर में शोथ होने पर यह लाभकर है । इसके रोगी को प्यास भी लगती है ।
लियेट्रिस स्पाइकेटा Q – सम्पूर्ण शरीर के शोथयुक्त जलोदर में हितकर है । इसके मूल-अर्क की 10 बूंदें दिन में कई बार देनी चाहिए। इस औषध के प्रयोग से पेशाब खुलकर आता है, दिन भर में एक या आधा गैलन पेशाब निकल जाता है।
औक्सीडेण्ड्रोन Q – जलोदर रोग में जब किसी भी औषध से लाभ न हो तथा पेशाब बिल्कुल भी न हो, बैठने पर साँस कठिनाई से आये तथा लेटना भी असंभव हो जाय, तब इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।