ऋतुधर्म सम्बन्धी अन्य प्रमुख उपसर्गों के लिए हितकर औषधियों के विषय में निम्नानुसार समझना चाहिए :-
रज:स्त्राव में समस्या का होम्योपैथिक दवा
(1) अत्यधिक मात्रा में, ढेले-ढेले जैसा स्राव होने पर – चायना 1 ।
(2) काले रंग का अनियमित स्राव तथा ऋतुस्राव के समय प्रसव जैसा तीव्र दर्द – नक्स-वोमिका 30 ।
(3) चमकीले रक्त का निरन्तर स्राव – जो सहज ही जम जाता हो तथा उसके साथ अत्यधिक मिचली – इपिकाक 30 ।
(4) चमकीले लाल खून का स्राव एवं टपक जैसे दर्द का अनुभव – बेलाडोना 30।
(5) अधिक परिमाण में, अनियमित स्राव, विशेष कर प्रात:काल प्रसव जैसे दर्द की अनुभूति – नेट्रम-म्यूर ।
(6) रज:स्राव आरम्भ होते ही हैजा जैसे लक्षण प्रकट होना – ऐमोन-कार्ब ।
(7) रज:स्राव के पूर्व तथा स्राव के समय कब्ज तथा दोनों पाँवों में ठण्डक – सिलिका।
(8) रज:स्राव अधिक परिमाण में, जल्दी-जल्दी काले रंग का थक्का-थक्का सा होना, ठण्ड का अनुभव तथा सुस्ती का लक्षण – ऐमोन-कार्ब ।
(9) रज:स्राव आरम्भ होते ही अन्य कष्टों का घट जाना, परन्तु बन्द होते ही पुन: बढ़ जाना – जिंकम।
(10) रज:स्राव की अवधि में स्वयं को स्वस्थ अनुभव करना – जिंकम ।
(11) रज:स्राव का जल्दी-जल्दी अधिक परिमाण में तथा गरम होना – बेलाडोना।
(12) रज:स्राव के कारण अत्यधिक कमजोरी तथा बोलने की शक्ति न रहना – कार्बो-ऐनिमेलिस ।
रजःस्राव का रंग
(1) स्राव का रंग भूरा – लिलियम-टिग, नाइट्रिक-एसिड, क्रियोजोट ।
(2) स्राव का रंग आभायुक्त – थ्लैस्पि, चायना ।
(3) स्राव का रंग दूध जैसा सफेद – बौरेक्स, पल्सेटिला, सल्फर, कोनियम, कैल्के-आयोड, कैलि-म्यूर, सीपिया, कैल्के-कार्ब, ग्रैफाइटिस ।
(4) स्राव का रंग हरी आभायुक्त – मर्क, पल्सेटिला, बोविस्टा, कार्बो-वेज, थूजा, सीपिया, फास्फोरस ।
(5) अण्डलाल जैसे श्लेष्मायुक्त स्राव – बैरोक्स, ऐलम, कैल्के-कार्ब, थूजा, कैलि-सल्फ, पल्स, ऐम्ब्रा ।
(6) गाढ़ा स्राव – पल्सेटिला, आयोड, नाइट्रिक-एसिड, हाइड्रेस्टिस, थूजा, सीपिया ।
(7) पानी जैसा पतला स्राव – आर्सेनिक, ऐमोन-कार्ब, ग्रैफाइटिस, सिफिलिनम, सल्फर, मर्क-कोर, नाइट्रिक-एसिड ।
रजःस्त्राव की प्रकृति
(1) रज:स्राव के साथ जननेन्द्रिय में खुजली – कैल्के-आयोड, कैल्के कार्ब, क्रियोजोट, मर्क, चायना, ऐम्बा, सीपिया ।
(2) तीखा, जलनयुक्त तथा जख्म करने वाला स्राव – ऐलम, लिलियम-टिग, नाइट्रिक-एसिड, सल्फर, सिलिका, सीपिया, आयोड, नेट्रम-म्यूर, मर्क, क्रियोजोट, कैमोमिला, बोरैक्स, कोनियम, कैल्के-कार्ब ।
(3) ढेले जैसा स्राव – ऐण्टिम क्रूड, हाइड्रेस्टिस, बेलाडोना, सोरिनम ।
(4) दुर्गन्धित स्राव – सोरिनम, मर्क, थ्लैस्पि, हिपर, क्रियोजोट, सीपिया, सिकेल, थूजा, हैलोनियस ।
(5) अधिक परिमाण में स्राव – नेट्रम-म्यूर, लैकेसिस, हाइडैस्टिस, आर्सेनिक, आर्ज-नार्ड, कैल्के-कार्ब, डलैप्स, सीपिया, पल्सेटिला, थूजा, स्टैनम ।
(6) मांस के धोवन जैसा परन्तु दुर्गन्धित स्राव – नाइट्रिक-एसिड ।
(7) यन्त्रणादायक स्राव – सल्फर, सिपिया ।
(8) पीव भरा स्राव जिसका कपड़े में पीला दाग लगता हो – चायना, पल्सेटिला, हाइडैस्टिस, कैलि-बाई, कैलि-सल्फ ।
(9) रक्ताधिक्य – क्रियोजोट, मर्क-बाइवस, नाइट्रिक-एसिड, कार्बो वेज, कैल्के-कार्ब, थ्लैस्पि, सीपिया, चायना, मर्क-कोर ।
(10) यन्त्रणारिहत स्राव – पल्सेटिला, ऐमोन-म्यूर ।
(11) डोरी जैसा कड़ा तथा लसदार स्राव – ग्रैफाइटिस, ऐलम, ऐसिड नाइट्रिक, हाइड्रैस्टिस, कैलि-म्यूर, कैलि-बाई, इस्क्युलस ।
(12) रुक-रुक कर होने वाला स्राव – कोनियम, सल्फर ।
(13) देर से होने वाला थोड़े परिमाण वाला एवं तीखा स्राव – कैलि-बाई।
(14) अनुत्तेजक अथवा स्निग्ध स्राव – पल्सेटिला, स्टैनम, कैल्के-फॉस, फ्रैकि-सिनम, अमेरिकाना, बोरैक्स ।
(15) आशा से अधिक पहले होने वाला स्राव – कैल्के-कार्ब ।
(16) केवल प्रात:काल होने वाला स्राव – सीपिया ।
(17) केवल रात में होने वाला स्राव – बोविस्टा ।
(18) प्रात: तथा सन्ध्या समय होने वाला स्नाव – फैलेण्ड्रियम ।
(19) केवल दिन में होने वाला स्राव – हैमामेलिस, कास्टिकम ।
(20) प्रात:काल बड़ी झोंक (तेजी) से होने वाला स्राव – बोविस्टा ।
(21) तीसरे प्रहर बन्द हो जाने वाला स्राव – मैग्ने-कार्ब।
(22) लेटने पर रुक जाने वाला स्राव – लिलियम-टिग, कास्टिकम, कैक्टस ।
(23) केवल रात में (या सबेरे ही) होने वाला स्राव – बोविस्टा ।
(24) सिर्फ दिन में होने वाला तथा सोने पर रुक जाने वाला स्राव – लिलियमटिग, कास्टिकम, कैक्टस ।
(25) हिलने-डुलने से होने वाला स्राव – लिलियम-टिग ।
(26) समय पर होने वाला, परन्तु थोड़ी देर तक धीमा रहने वाला स्राव – लैकेसिस ।
(27) सोने पर होने वाला, परन्तु बैठने या चलने पर रुक जाने वाला स्राव – क्रियोजोट ।
रज:स्त्राव के समय अन्य कष्ट
(1) स्राव से पूर्व शरीर के निम्न भाग में भार का अनुभव तथा ऋतु का जल्दी-जल्दी एवं अधिक परिमाण में होना – मस्कस ।
(2) जल्दी-जल्दी होने वाला तथा बहुत दिनों तक जारी रहने पर भी पेट में ऐंठन करने वाला – नक्स-वोमिका 3x ।
(3) अधिक परिमाण में, जल्दी-जल्दी काले थक्के के रूप में होने वाल, रात में बढ़ना तथा पाँवों में दर्द होना – एमोन-म्यूर।
(4) स्राव आरम्भ होने से पूर्व दोनों स्तनों में दर्द तथा सूजन हो जाना – कोनियम ।
(5) स्राव आरम्भ होने से पूर्व तथा बाद में अत्यधिक रक्तस्राव, जिसका रंग भिन्न प्रकार का हो – आस्टिलैगो ।
(6) काला, डोरी जैसा, उदर में किसी जीवित पदार्थ के घूमने जैसी अनुभूति देने वाला – लिलियम-टिग ।
(7) काला, डोरी जैसा, उदर में किसी जीवित पदार्थ के घूमने जैसी अनुभूति देने वाला – क्रोकस ।
(8) काला थक्का-थक्का जैसा, जिसके साथ कामोन्माद के लक्षण भी हो – प्लैटिनम ।
(9) काला, बहुत जल्दी-जल्दी होने वाला, झिल्ली जैसा और जिसके साथ डिम्बाशय का दर्द भी हो – मैग्नेशिया-फॉस ।
(10) दिन में ऋतुस्त्राव तथा रात में प्रदर का स्राव – कास्टिकम ।
(11) दो सप्ताह के अन्तर से अधिक परिमाण में स्त्राव होना, जो एक सप्ताह तक अथवा अधिक दिनों तक होता रहे – लिलियम ।
(12) अधिक परिमाण में तथा तीखा – रस-टाक्स ।
(13) अधिक परिमाण में, काले थक्के जैसा और जिसके साथ दृष्टि-क्षीणता अथवा बेहोशी के उपसर्ग भी हों – साइक्लेमेन ।
(14) अधिक परिमाण में, काला-तीखा, कुछ देर बन्द रहकर फिर होने – क्रियोजोट ।
(15) अधिक परिमाण में, श्वेत-प्रदरयुक्त, कपड़े को भिगोने वाला तथा पैर तक टपकने वाला – सिफिलिनम ।
(16) काले रंग के श्लेष्मा के साथ अल्प परिमाण में तथा प्रसव-वेदना जैसे दर्द से युक्त – एपिस ।
(17) देर से, थोड़ा, एकदम बन्द होने वाला, कुटकुटाने वाला तथा कष्टकर स्त्राव – सल्फर I
(18) रक्त की अधिकता चमकीले लाल रंग का स्राव – इपिकाक ।
(19) रात में अथवा सोते समय स्राव जारी रहना, परन्तु चलते समय बन्द हो जाना – मैग्नेशिया-कार्ब ।
(20) रुक-रुक कर अत्यधिक परिमाण में, मैले पानी अथवा काले थक्के-थक्के जैसा स्राव – फेरम ।
(21) थोड़ा बिलम्व से होने वाला, स्राव के समय पसीना आदि शरीर का सम्पूर्ण रस स्निग्ध हो जाना अथवा अनुत्तेजक स्राव होना – पल्सेटिला ।
(22) अलकतरे जैसा काला स्राव, सोते समय न होना, डिम्बाशय अथवा जरायु में दबाव का अनुभव तथा टपक जैसा दर्द – कैक्टस ।
(23) हृत्पिण्ड के चारों ओर शूल के साथ बाधक दर्दयुक्त स्राव – कोनियम ।
मासिक धर्म के अन्य कष्ट
(1) स्राव का रुकना, हिस्टीरिया एवं स्नायु-दौर्बल्य – सिनिसियो 1x ।
(2) स्राव रुकने के कारण नाक से खून गिरना – ब्रायोनिया ।
(3) कष्टरज:, तलपेट में टपकन जैसी वेदना, पेट में शूल का दर्द तथा प्रसव वेदना जैसी तकलीफ – कैमोमिला ।
(4) कष्टरज:, डरपोक तथा शान्त स्वभाव वाली स्त्रियों का काले रंग का थक्का-थक्का स्राव – पल्स।
(5) शरीर में फुन्सियाँ होने के बाद ही रज:स्राव होना – डल्कामारा ।
(6) जख्म, पेट में दर्द, योनि-प्रदाह, भार का अनुभव – हेलोनियस Q, (5 बूंद पानी के साथ)।
(7) आँखों के समीप काले चकत्ते जैसे दाग, शरीर का रंग पीला, नासिकाग्र पर घोड़े की जीन जैसा पीला दाग, पेट में शूल-वेदना जैसा दर्द, श्वेत-प्रदर, कम अथवा अधिक परिमाण में रज:स्राव, प्रसव-वेदना, जैसा तलपेट में दर्द – इन लक्षणों वाली साँवली अथवा काली स्त्रियों के ऋतु-रोग में – सीपिया 6 ।
(8) हर बार ऋतुकाल में पेट से खून गिरना – ऐमोन-कार्ब।
(9) वात के साथ ऋतुधर्म की गड़बड़ी होना – सिमिसिफ्यूगा 3 ।
(10) हर बार पाखाने के साथ जरायु से रक्तस्राव, साथ ही तलपेट, कमर तथा पीठ में दर्द – आयोड ।
(11) जरायु की वृद्धि – फ्रैक्सिनस अमेरिकाना Q ।
(12) जरायु-भ्रन्श, योनि-प्रदाह तथा जख्म – निम्फिया आडोरेटा ।
(13) सर्दी लगने के कारण रज:स्राव रुक जाना – पल्सेटिला ।
(14) मैला, चर्बी लगा हुआ तथा अनियमित ऋतुस्राव – नेट्रम-म्यूर ।
(15) योनि-रोग के कारण स्नायुओं में सुस्ती – बेलाडोना 6, जिंकम ।
(16) सड़ा, दुर्गन्धयुक्त, तीखा, जलन तथा कमजोरी करने वाला प्रदर – क्रियोजोट ।
(17) अधिक स्राव, काला थक्का-थक्का जैसा तथा प्रसव-वेदना जैसी पीड़ा – कैमोमिला।
(18) अधिक स्राव, काला, पीठ में दर्द, दोनों स्तनों में काँटे चुभने जैसा दर्द तथा मानसिक-विषण्णता – सिमिसिफ्यूगा ।
(19) दस्त, वमन तथा ठण्डे पसीने के कारण ऋतुशूल एवं हिमांग – विरेट्रम ऐल्बम ।
(20) रजोरोध के समय शरीर में ताप अथवा रह-रह कर गरम हो जाना – लैकेसिस ।
(21) पानी से सम्पर्क अथवा स्नान करने के कारण रज:स्राव बन्द ही जाना – लैकेसिस ।
(22) स्राव रुकना तथा सर्दी लगने के कारण देर से होना – पल्सेटिला ।