हृदय से प्रक्षेपित रक्त का रक्त वाहिनियों पर दबाव रक्त दोष कहलाता है । रक्त को सम्पूर्ण शरीर में अच्छे से पहुँचाने का एकमात्र साधन हृदय है । यह कार्य सम्पादित करने के लिए इसे बार-बार फैलना और सिकुड़ना पड़ता है । हृदय की फैलने की क्रिया को अनुशिथिलन (Diastole) एवं सिकुड़ने की क्रिया को प्रकुंचन (Systole) कहा जाता है । निलय के प्रकुंचन के समय अधिकतम धमनी रक्तदाब ‘प्रकुंचन दाब” तथा निलय के अनुशिथिलन के समय न्यूनतम दाब ‘अनुशिथिलन दाब’ कहलाता है । रक्तदाब का नियमन करने वाले विभिन्न कारण होते हैं, जैसे – हृदय का बल, रक्त की कुल मात्रा, धमनियों की स्थिति, वृक्क, स्वयंचालित नाड़ी तन्त्र, रक्तगत इलैक्ट्रोलाइट्स अन्य अति सूक्ष्म नियामक प्रतिवर्त्त (Reflexes) । रक्तदाब के ये कारण आयु, लिंग, अनुवांशिक, शारीरिक व मानसिक स्थिति प्रभृति कारणों से प्रभावित होते हैं। एक स्वस्थ मनुष्य का प्रकुंचन रक्तदाब 120 से 140 मि.मी. तथा अनुशिथिलन रक्तदाब 60 से 80 मि. मी. तक रहता है । जब प्रकुंचन रक्तदाब स्थायी रूप से 90-100 मि.मी. से न्यून रहता है तो उसे न्यून रक्तदाब के नाम से जाना जाता है । न्यून रक्तदाब को रक्तदाब न्यूनता, हीन रक्तदाब, अल्प रक्तदाब, लो ब्लड प्रेशर एवं हाइपो टेन्शन आदि नामों से जाना जाता है ।
लो ब्लड प्रेशर – हाई ब्लड प्रेशर की बिल्कुल विपरीत दशा है । इस रोग में दिल के सिकुड़ने पर (Systole) धमनी का दबाव वयस्क पुरुषों में 110 मिलीमीटर और वयस्क स्त्रियों में 105 मि.मी. से भी कम रहता है । कई रोगियों को अस्थायी रूप से कभी-कभी ब्लड प्रेशर स्वस्थ अवस्था से कम हो जाता है परन्तु रोग की अधिकता में हर समय ब्लड प्रेशर कम रहने लग जाता है । जब रोगी में लेटने के बाद बैठने या खड़े होने पर (अवस्था बदलने पर) ब्लड प्रेशर कम हो जाये तो इस अवस्था को उर्ध्व स्थितिज अल्प रक्तचाप कहते हैं। जब किसी मनुष्य का ब्लड प्रेशर 100 मि.मी. या इससे भी कम रहने लग जाये तो इसको अल्प रक्तचाप के नाम से जाना जाता है।
लो ब्लड प्रेशर का यह अर्थ है कि रोग ग्रस्त (पीड़ित) मनुष्य की vitality (जीवनी शक्ति) कमजोर हो चुकी है । जीवनी शक्ति घट जाने के कारण मनुष्य उत्साह-हीन हो जाता है, कोई काम करने को दिल नहीं चाहता है, थोड़ा काम करने पर थक जाता है, खड़ा होने पर आँखों में अँधेरा और बेहोशी आने जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं और रोगी गिरने से बचने के लिए बैठ अथवा लेट जाता है ।
लो ब्लड प्रेशर के कारण
लेटने, नींद, अत्यधिक थकावट, स्त्री को मासिक आने के समय ब्लड प्रेशर कम हो जाता है । बड़ी आयु, शान्त स्वभाव, गरम देशों के लोगों में ब्लड प्रेशर कम हो जाया करता है । सदमा, शोक, बेहोश हो जाना, रक्त में विषैले प्रभाव हो जाना, शरीर में कीटाणुओं के संक्रमण, कमजोर कर देने वाले पुराने रोगों, फेफड़ों की क्षय की अन्तिम स्टेज, शरीर से बहुत अधिक रक्त निकल जाने, खून बह जाने, रक्त की कमी, स्नायुओं की कमजोरी, जोड़ों की पुरानी शोथ (Arthritis), हृदय की बीमारी, हृदय की मांसपेशी की शोथ, पिट्यूटरी थायराइड और एड्रिनल ग्लैंड में हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में पैदा न होने, Addison’s रोग (इस रोग में एड्रिनल ग्लैंड अपना कार्य करने में असमर्थ हो जाती है ।), Grave’s इस रोग में गले की थायराइड ग्लैण्ड अधिक कार्य करने के कारण रोगी की आँखों के ढेले बाहर निकलने लग जाते हैं और रोगी को घातक गिल्हड़ रोग हो जाता है। टाइफायड, अन्तड़ियों के संक्रामक रोग, डिफ्थेरिया, निमोनिया, टॉन्सिल का संक्रमण, सुजाक, पायोरिया और अन्तड़ियों के विषैले प्रभाव शरीर में चले जाने, अत्यधिक दस्त, पसीना, रक्त के आंव और शरीर की तरल निकल जाने, बड़ी आयु में रक्त संचार भली प्रकार न हो सकने के कारण रोगी का ब्लड प्रेशर नार्मल से कम रहने लग जाता है । स्त्रियों को वर्षों तक मासिक अधिक मात्रा में आते रहने से उनका अत्यधिक रक्त व तरल निकल जाता है । हैजा के रोगी को बार-बार दस्त और कै आते रहने, पाचन शक्ति की कमजोरी से भोजन पचकर उसका रक्त न बनने अथवा शक्तिशाली विटामिन, मिनरल और प्रोटीन युक्त भोजन न मिलने से तथा शरीर में विटामिन की कमी, देर तक एक ही स्थान पर खड़ा रहने एवं ऑपरेशन के बाद की कमजोरी की अधिकता आदि से भी ब्लड प्रेशर कम हो जाया करता है ।
ब्लड ब्लड प्रेशर कम होने के लक्षण
शारीरिक या मानसिक श्रम करने या खड़ा रहने पर शीघ्र थक जाना, आँखों के सामने अन्धेरा आ जाना, बेहोशी जैसा प्रतीत होना, मानसिक कमजोरी, छाती और पेट के भीतरी अंगों का रक्त परिसंचरण रुक जाने से साँस लेने से कष्ट होना, जीवनी शक्ति कम हो जाना, अधिक सर्दी लगना, चेहरा और शरीर पीला तथा निस्तेज हो जाना, रोगी का माँस ढीला और पिलपिला हो जाना, स्मण शक्ति का अभाव, सोचने की शक्ति घट जाना, नींद न आना, सिर दर्द होना, पाचनांगों में दोष और भोजन का न पचना – ये लक्षण लो ब्लड प्रेशर के रोगी के हुआ करते हैं। रोगी लेटा होने पर उसके पेट को दबाने पर गर्दन की शिरा में तनाव आ जाने से फूल जाती है। कई मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो हर प्रकार से स्वस्थ होते हैं परन्तु उनका ब्लड प्रेशर नार्मल से कम होता है उनको किसी भी प्रकार के कष्ट या अन्य लक्षण पैदा नहीं होते हैं, ऐसी अवस्था में चिन्ता अथवा चिकित्सा करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।
लो ब्लड प्रेशर का उपचार
ब्लड प्रेशर बहुत गिर जाने और मूर्च्छा जैसे लक्षण पैदा हो जाने पर रोगी को आराम से बिस्तर पर लिटा दें । गले के (कमीज के) बटन खोल दें । तंग और कसा हुआ कपड़ा बदन से उतार दें । रोगी के सिर को बाकी (अन्य) शरीर से नीची कर दें । रोगी की चारपाई के पाँवों की ओर ईटें रखकर 1-2 फुट ऊँचा कर दें। ताकि तमाम शरीर का रक्त मस्तिष्क में पहुँच जाये । शरीर को गर्मी पहुँचायें । दिल में शक्ति और उसमें उत्तेजना उत्पन्न करने के लिए स्प्रिट ऐरोमेटिक अमोनिया 4 मि. ली. पानी में मिलाकर पिला दें । छाती और पेट के अंगों का रक्त संचार रुक आने और सांस लेने में कठिनाई होने पर पट्टी कस कर बाँध देने से कष्ट कम हो जाता है ।
दिल को ताकत देने के लिए कुचला (नक्सवोमिका) और उससे निर्मित औषधियों का प्रयोग परम लाभकारी सिद्ध होता है । निकेथामाइड के 1 एम्पुल को इन्जेक्शन लगा देने से भी रोगी का दिल मिनटों में शक्तिशाली हो जाता है और ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।
पुराने रोगी जिनके टखने और पाँव सूख जायें उसे बिस्तर पर लिटाएं रखें । ऐसे रोगी के पैर बाकी शरीर से ऊँचा रखें । जिन रोगियों के शरीर में खून की कमी हो, उनके रक्त में लाल कण कम संख्या में हो, उनको लीवर एक्सट्रेक्ट और फोलिक एसिड का प्रयोग करने से बहुत लाभ होता है। नोट – भली प्रकार निरीक्षण करें कि दाँतों, गले, मसूढ़ों अथवा अन्तड़ियों में कोई संक्रामक रोग तो नहीं है क्योंकि संक्रमण के विष से ब्लड प्रेशर कम हो जाया करता है ।
यह रोग शरीर में रक्त की कमी और कमजोरी से होता है इसलिए रोगी को प्रोटीन युक्त भोजन जैसे – दूध, पनीर, अण्डे, मक्खन, सूरजमुखी के फूलों की गिरी, बादाम, मांस का पकाया हुआ रस इत्यादि अधिक मात्रा में दें ।
यदि रोगी को दस्त या कै अधिक आने से अथवा रक्त निकल जाने से उनके शरीर का तरल कम हो चुका हो तो उसको बार-बार पानी, दूध, फलों का रस पीने को दें।
लो ब्लड प्रेशर के रोगी की मालिश करने, उसकी अंगों तथा शरीर को दबाने और भीगे तौलिया से शरीर को रगड़ने से रक्त का दौरा भली प्रकार होने लग जाता है ।
रक्त का दौरा दबाव कम हो जाने पर – एड्रेनालीन, पी. पिट्यूटरी एक्सट्रेक्ट और स्ट्रिक्नीन बहुत ही सफल दवायें है। रोगी को स्ट्रिक्नीन और कैल्शियम की दवायें खिलाना बहुत गुणकारी है ।
Levophed : निर्माता बायर – यह एड्रेनालीन सॉल्यूशन है । इसे इन्जेक्शन ऑफ एड्रेनालीन भी कहते हैं । यह सॉल्यूशन 1 में 1000 शक्ति का मिलता है। इसे बोहरिंगर नाल कम्पनी भी निर्मित कर अपने पेटेण्ट नाम से बाजार में बिक्री कर रही है । यह दवा दिल को शक्ति देती है। बेहोश हो जाते या सदमा लगने से रोगी का दिल बहुतं कमजोर हो जाये, ब्लड प्रेशर बहुत कम रह जाये, डूब जाने या अन्य किसी कारण दिल की गति बन्द होकर रोगी की मृत्यु का डर हो तो इस दवा का इन्जेक्शन सीधा हृदय में (इन्ट्राकार्डियक इन्जेक्शन) लगाया जाता है। शरीर के किसी भी भाग से रक्त बहने जैसे – बवासीर नाक या गर्भाशय से रक्त बहना आदि में इसके प्रयोग से धमनियां सिकुड़ कर रक्त आना बन्द हो जाता है । श्वास रोग (दमा) में जब फेफड़ों की वायु प्रणालियों में गाढी बलगम जम जाने से साँस आना कठिन हो जाये तो इसका चर्म में इन्जेक्शन लगा देने से मिनटों में कष्ट दूर हो जाता है।
नोट – दिल फेल हो जाने से, साँस कठिनाई से आने पर इसका प्रयोग कदापि न करें ।
Ephedrine hydrochloride : इससे लाभ उपर्युक्त औषधि एड्रेनालीन से मिलते-जुलते हैं। यह औषधि भी लो ब्लड प्रेशर को तुरन्त नार्मल बना देती है । साँस आने-जाने में कष्ट होने पर, दिल बहुत कमजोर हो जाने पर यह दवा दिल की गति को तेज करती है। इसे 15 से 60 मि.ग्रा. की मात्रा में खिलाते ही दिल की कमजोरी दूर होकर गिरा हुआ ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।
नोट – वे सब दवाएँ जो दिल को शक्ति देती हैं, शरीर में रक्त की कमी, पुराने और लम्बे रोगों के बाद की शारीरिक और मानसिक कमजोरी को दूर करती हैं, विटामिन, मिनरल और टॉनिक जो शरीर की कमजोरी को दूर करके दिल को ताकतवर बनाती है, वही दवाएँ लो ब्लड प्रेशर के रोग को भी दूर करती हैं।
एड्रीनो स्ट्रिकनीन कम्पाउण्ड : यह एड्रेनालीन हाइड्रोक्लाराइड तथा स्ट्रिक्नीन सल्फेट का मिश्रण है जो बाजार में 1 एम.एल. के एम्पूल में प्राप्य है । लो ब्लड प्रेशर और दिल की कमजोरी से पैदा बेहोशी, हैजा, टायफायड, निमोनिया, सदमा (Collapse तथा दूसरे भयानक रोगों में नाड़ी को शक्ति बनाये रखने के लिए इसका इन्जेक्शन लगाया जाता है । इसके 1 मि.ली. के इन्जेक्शन को माँस में लगायें ।
एनाकार्डिन : निर्माता-एलेन बरीज । यह निकेथामाइड दवा है । यह हृदय को शक्ति एवं उत्तेजना देती है । बेहोशी, दिल की कमजोरी, रोगों के बाद की कमजोरी और ब्लड प्रेशर को दूर करती है। साँस रुक जाने पर इसका प्रयोग बहुत लाभ पहुँचाता है । इसके एम्पूल इंजेक्शन के लिए और तरल पिलाने के लिए बाजार में उपलब्ध है । इसका इन्ट्रामस्कुलर और इन्ट्राविनस इंजेक्शन लगाया जाता है और मुख द्वारा 15 से 30 बूंद तक दवा थोड़े से पानी में मिलाकर दिन में आवश्यकतानुसार तीन बार पिलाया जाता है ।
मेफिन्टीन : निर्माता-जोहन वाइथ। इसकी एक टैबलेट में डी. एल. मिथियोनिन 0.5 मि.ग्रा. की मात्रा में रहता है । यह लो ब्लड प्रेशर की प्रमाणिक औषधि है। इस दवा की 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें । इसका इन्जे, भी दिया जा सकता है ।
कार्वासिम्टोन : निर्माता-डूफार। इस दवा का इन्जेक्शन, गोली तथा ड्रॉप्स में उपलब्ध है । इसमें ऑक्सीड्रीन टार्टरेट मुख्य औषधि सम्मिलित रहती है । मात्रा – आधी से एक टैबलेट दिन में 3-4 बार, इन्जेक्शन 1-3 मि.ली. माँसपेशी में प्रतिदिन तथा ड्रॉप्स 4-6 बूंद दिन में 2-3 बार प्रयोग करें ।
कोरामिन इफेड्रीन : निर्माता-सीबा । यह औषधि भी गोली, इन्जेक्शन तथा ड्राप्स के रूप में उपलब्ध है। इसमें निकेथा माइड तथा इफेड्रीन हाइड्रोक्लोराइड का मिश्रण होता है । इसकी मात्रा उपर्युक्त औषधि के समान ही है ।
इनके अतिरिक्त निम्नलिखित शक्तिवर्द्धक विटामिन योग भी देने चाहिए :-
थेराग्रान कैपसूल (रिक्यूव कम्पनी), अल्बाइट (एलेम्बिक कम्पनी), बीकाडेक्स (ग्लैक्सो), बीकोसूल (फाईजर), वाईमैग्ना (लेडरले), बीजेक्टाल इन्जेक्शन (अब्बट), बीकोजाइम (रोश), ट्राइरेडीसोल (मर्क शार्प डोहम), औट्रिन (सायनेमिड), बेनोजेन (रैल्जि सिक्सैप्प (गिफ्रान), नर्विटोन (एलेम्बिक) इत्यादि ।
ये औषधियाँ टैबलेट, कैपसूल अथवा सीरप और इन्जेक्शनों के रूप में उपलब्ध है । डॉक्टर के पत्रक के अनुसार आयु के तथा मात्रा का निर्धारण कर प्रयोग करायें।
लो ब्लड प्रेशर की कुछ अन्य पेटेण्ट औषधियाँ
कार्डियाजोल (बोहरिंगर नाल), कोरासोल (सिपला), नोरर्डिन इत्यादि ।
नोट – रोगी को उपवास कभी न करायें । ताजे फल पके हुए जैसे – आम, खजूर, सेब, मौसम्मी, सन्तरा खूब खिलायें ।
लो ब्लड प्रेशर नाशक आयुर्वेदिक पेटेण्ट दवा
अश्वगन्धा चूर्ण और मिश्री 50-50 ग्राम, गाय का घी 100 ग्राम तथा गाय का (उबाला हुआ) दूध 250 मि.ली. लें । सर्वप्रथम अश्वगन्धा चूर्ण और दूध को भली-भाँति मिलाकर देर तक पकायें । इसके बाद इसे छानकर इसमें मिश्री और घी खूब गरम करके मिलायें । मात्रा 10 ग्राम सुबह-शाम रोगी को गरम-गरम ही पिलायें ।
इस दिव्य औषधि के निरन्तर 1 मास तक सेवन करने से दुर्बलता, रक्ताल्पता एवं अल्प रक्तदाब दूर होकर शरीर खूब हृष्ट-पुष्ट और बलवान बन जाता है ।