क्या होता है यूरिन टेस्ट ?
यूरिन टेस्ट के सामान्य प्रक्रिया है जिससे पेशाब की जांच की जाती है। नियमित यूरिन टेस्ट करने की एक प्रकिया होती है। इस टेस्ट को सामान्य बीमारियों की जांच के हेतु किया जाता है। बता दें कि यूरिन टेस्ट को मूत्र विश्लेषण ( Urine Analysis) के नाम से भी जाना जाता है। नियमित रूप से स्वास्थ्य की जांच करने के लिए भी इस टेस्ट का उपयोग किया जाता है।
यूरिन टेस्ट के दौरान मरीज के यूरिन को एक डिब्बी में स्टोर कर जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। आम तौर पर पेशाब की जांच करने के लिए कम मात्रा में (40-50 ml) मूत्र का ही इस्तेमाल किया जाता है। पेशाब के सैम्पल का विश्लेषण मेडिकल लैब्स में ही किया जाता है। आपको यह भी जानना ज़रूरी है कि पेशाब शरीर में मौजूद कई पदार्थों के मिश्रण से बनता है जिसे नियमित रूप से शरीर से बाहर निकलना बहुत ज़रूरी होता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो बहुत सारी बीमारियां शरीर में फैल सकती हैं जिससे इंसान की मौत भी हो सकती है। यह पदार्थ सामान्य या असामान्य मेटाबोलिज्म के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होते हैं। मूत्र का स्वभाव क्षारीय या तेजाबी होता है । मूत्र की परीक्षा प्रतिदिन की जानी चाहिए ।
थोड़े से मूत्र में लिटमस पेपर का छोटा सा टुकड़ा डुबोयें । मूत्र अम्ल होने पर नीला लिटमस पेपर लाल हो जाता है । मूत्र, क्षारीय होने पर लाल लिटमस पेपर डालने पर उसका रंग नीला हो जाता है ।
यूरिन टेस्ट कब करवाना चाहिए ?
यूरिन टेस्ट को निम्न समस्याओं के आधार पर किया जाता है:-
- यदि आप शरीर के किसी भी अंग की सर्जरी कराने जा रहे हैं तो आपको यूरिन टेस्ट करवाने के लिए कहा जायेगा।
- यदि आप किसी बीमारी के पता चलने पर अस्पताल में भर्ती होने वाले हैं तो आपको यूरिन टेस्ट करवाने के लिए कहा जाएगा।
- आम तौर पर महिलाओं को गर्भावस्था की जांच कराने से पहले यूरिन टेस्ट करवा लेने की सलाह दी जाती है।
- अगर आपको किडनी संबंधी रोग है तो आपको नियमित रूप से यूरिन टेस्ट करवाने के लिए कहा जाएगा।
कुछ ऐसे भी लक्षण होते हैं जिसमें डॉक्टर यूरिन टेस्ट जल्द से जल्द करवाने की सलाह देते हैं। जैसे:-
- पेशाब में खुन का आना
- पेशाब का धुंधला पड़ जाना
- रोज-रोज बुखार आना
- पीठ में दर्द की शिकायत रहना
- हाई ब्लड प्रेशर
- शरीर कहीं सूजन का होना
- खाने से अरुचि हो जाना
- बार बार उल्टियां होना
- थकान महसूस होना
- नींद आना
- बार बार शरीर में खुजली होना
- मुंह से धातु या लाड़ का निकलना
यूरिन टेस्ट क्यों किया जाता है?
यूरिन टेस्ट भौतिक एवं कैमिकल टेस्टों का एक ग्रुप होता है जिससे मूत्र में कुछ विशेष तरह के पदार्थों का पता लगता है। साथ ही साथ उनकी मात्रा का पता भी चलता है। जैसे की कोशिकाएं, कोशिकाओं के टुकड़े, बैक्टरिया इत्यादि।
यूरिन टेस्ट कराने की राय डॉक्टर निम्न कंडीशन्स में दे सकते हैं। जैसे:-
- (Routine Medical Evaluation) यानि नियमित चिकित्सा मूल्यांकन, सर्जरी से पहले की मूल्यांकन, गुर्दा की बीमारी के लिए जांच, हृदय की बीमार के लिए जांच, लिवर के रोग के लिए जांच इत्यादि।
- कई विशेष रोगों के उपचार कराने से पहले, जैसे – पेट में दर्द, फ्लेंक (Flank) में दर्द, पेशाब करने के दौरान दर्द, तेज बुखार, पेशाब में रक्त संबंधी लक्षण लगने पर।
- कई मेडिकल स्थितियों के परीक्षण के दौरान, जैसे – मूत्र में अधिक मात्रा में प्रोटीन पाए जाने पर, गुर्दे में पथरी होने पर, अनियंत्रित मधुमेह होने पर, मूत्र पथ में संक्रमण होने पर, गुर्दों में सूजन हो जाने पर, मांशपेशियों के टूटने पर इत्यादि।
- महिलाओं के गर्भवती होने पर भी यूरिन टेस्ट किया जाता है।
कम्पलीट यूरिन टेस्ट के तीन चरण
प्रथम चरण में मूत्र के रंग एवं शुद्धता आदि की जांच की जाती है।
द्वितीय परीक्षण में मूत्र में ग्लूकोज एवं प्रोटीन आदि की जांच की जाती है। यह इसलिए भी किया जाता है क्योंकि मूत्र में उपस्थित पदार्थ शरीर के स्वास्थ्य एवं अन्य रोगों की जानकारियां देता है।
तीसरे चरण में माइक्रोस्कोपिक जांच की जाती है। इस जांच की मदद से कोशिकाओं की मात्रा एवं उनके प्रकार की जानकारी ली जाती है। मूत्र में पाए जाने वाले अन्य घातक जैसे बैक्टीरिया आदि की भी जानकारी इसी जांच की मदद से मिलती है।
यूरिन टेस्ट से पहले क्या किया जाता है ?
यूरिन टेस्ट से पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि आप भरपूर मात्रा में पानी पी रहे हैं या नहीं। ताकि आप पर्याप्त मात्रा में यूरिन टेस्ट के लिए दे सकेंगे या नहीं। यूरिन टेस्ट के लिए आप पर खाने पीने के पाबंदी नहीं लगेगी न ही आपके रूटीन में कोई बदलाव करने को कहा जायेगा।
यदि आप कोई अन्य सप्लीमेंट लेते हैं तो डॉक्टर को इस बारे में ज़रूर बताएं। रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ सप्लीमेंट्स ऐसे भी होते हैं जो यूरिन टेस्ट को प्रभवित करते हैं। जैसे:-
- विटामिन सी के सप्लीमेंट्स
- मेट्रोनिडाजोल (Metronidazole)
- रिबोफ्लेविन (Riboflavin)
- एंथ्रोक्विनोन लैक्सेटिव (Anthraquinone laxatives)
- मेथोकार्बेमोल (Methocarbamol)
यूरिन टेस्ट के दौरान
यूरिन टेस्ट के लिए डॉक्टर आपको पेशाब का सैम्पल देने को कहेंगे। यह सैम्पल आप घर आकर या क्लिनिक में भी दे सकते हैं। डॉक्टर इसके लिए आपको एक कंटेनर देंगे।
बेहतर परिणाम के लिए ‘क्लीन चीट’ का प्रयोग किया जाता है। इस विधि के स्टेप्स निम्न हैं:-
- मूत्र द्वार के जगह को अच्छे से साफ करें
- उसके बाद टॉयलेट में जाकर पेशाब करें
- डॉक्टर द्वारा दिए गए कंटेनर को पेशाब से भरें
- यदि पेशाब पेडू में अधिक मात्रा में हो तो पेशाब अच्छे से करें।
- डॉक्टर के दिए गए दिशानुसार सैम्पल को डॉक्टर को सौंपे
यूरिन टेस्ट के बाद
यूरिन टेस्ट में सामान्य रूप से पेशाब का सैम्पल दिया जाता है इसलिए इसमें बाद में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है।
क्या है जोखिम ?
यूरिन टेस्ट में सामान्य रूप से पेशाब का सैम्पल दिया जाता है इसलिए इसमें बाद में किसी भी प्रकार का जोखिम नही होता है। अगर कैथेराइजेड स्पेसिमेन (catheterized specimen) की आवश्यकता पड़ती है तो कुछ समय के लिए थोड़ी परेशानी हो सकती है।
यूरिन टेस्ट के रिजल्ट का क्या मतलब होता है ?
यूरिन टेस्ट कई प्रकार के मापदंड प्रदान करता है जिससे यूरिन में मिलने वाली कमियों की जांच की जाती है।
विजुअल जांच प्रक्रिया (Visual Checkup process)
आमतौर पर डॉक्टर जांच के दौरान पेशाब में पाए जाने वाले निम्न असमानताओं को देखने के लिए भी करते हैं:-
- पेशाब धुंधला दिखाई देने पर, जो संक्रमण का संदेश भी देता है।
- पेशाब का रंग लाल या भूरे रंग का हो जाने पर, जो पेशाब में खून की मात्रा बढ़ जाने का संकेत देता है।
- पेशाब से गंध (बदबू) आने पर।
केमिकल टेस्ट (Dipstick test)
केमिकल टेस्ट की प्रक्रिया में डॉक्टर पेशाब के सैंपल में एक प्रकार के केमिकल की स्टिक डालते हैं। इसके बाद कैमिकल पेशाब में घुल जाता है और रंग बदलने लगता है। यह टेस्ट मूत्र में कई चीजों का पता लगाने में मददगार साबित होता है। जैसे:-
- खून
- प्रोटीन
- शुगर
- एसिडिटी
- पीएच ( PH ) स्तर
नोट – आपको बता दें कि अगर पेशाब में कणों की मात्रा ज़्यादा हो तो इसका एक कारण शरीर में पानी की कमी भी हो सकती है। आपको यह भी बता दें कि पीएच का स्तर मूत्र स्तर और किडनी से जुड़ी समस्याओं का संकेत भी देता है। साथ ही साथ पेशाब में शुगर की मात्रा (डायबिटीज) का भी संदेश देता है।
विशेष – पथरी या रेत आने वाले रोगी को अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। एक गिलास जल प्रात: दोपहर और सायं को घूँट-घूँट करके पीना चाहिए । इससे वृक्कों (किडनी) की सफाई होती रहती है । पथरी के रोगी को पहला भोजन खिलाने के बहुत लम्बे समय बाद भोजन खिलाने से मूत्र अधिक अम्ल हो जाता है । भोजन शीघ्र खा लेने से मूत्र की अम्लता घट जाती है । पथरी का रोगी बहुत समय तक बिस्तर में न लेटे, क्योंकि ऐसी अवस्था में काफी समय तक मूत्र वृक्कों और मूत्राशय में पड़ा रहता है और मूत्र की रेत, गाद, वृक्कों और मूत्राशय में जमकर एकत्रित हो जाती है । इस रोग में गरम जल से स्नान, खुरदरे तौलिए से शरीर को रगड़ना, हल्का व्यायाम करना (जिससे थकावट न हो) लाभकर होता है ।
जब एक्स-रे कराने पर किडनी में बड़ी पथरी दिखाई दे तो ऐसी अवस्था में इसकी एकमात्र चिकित्सा ऑपरेशन ही है, क्योंकि इतनी बड़ी तथा हर प्रकार की पथरियां दवाओं से तोड़कर मूत्र के साथ नहीं निकाली जा सकती है ।
जब यूरिक एसिड की पथरी बहुत छोटी हो तो 8 मि.ली. ग्लीसरीन 30 मि.ली. जल में मिलाकर दिन में तीन बार बिना कुछ खाये 7-8 दिन तक पिलाना बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होता है । ऐसी पथरी में रोगी को शराब, मांस, कलेजी आदि किसी प्रकार का मांस न खिलायें । रोगी को मटर, पालक, मूली फलियाँ, मछली थोडी-थोड़ी मात्रा में खिला सकते हैं। जब मूत्र में यूरिक एसिड आता हो तो-रोगी को दही की लस्सी पिलाना अतीव गुणकारी सिद्ध होता है।
कैल्शियम ऑक्सलेट की पथरी काली कठोर और खुरदरी होती है। ऐसी अवस्था में वह भोजन खिलायें, जिनमें कैल्शियम और ऑक्सलेट बहुत कम मात्रा में हो । जैसे – गाजर, मटर, हरे प्याज, हरी मिर्च, आलू, टमाटर और सन्तरे आदि । परन्तु ऐसे भोजन जिनमें ऑक्जेलिक एसिड अधिक मात्रा में हों जैसे- चुकन्दर, पनीर, अण्डे, मटर, मसूर आदि न दी जाये ।
अब रोगी में कैल्शियम फास्फेट अधिक मात्रा में हो तो पीले और सफेद रंग की रेत मूत्र में आया करती है और मूत्र का स्वभाव क्षारीय होता है। ऐसी अवस्था में – मांस, कलेजी, खुश्क फल, केले, आलू, दाल, रोटी खिलायें और ऐसे भोजनों को न खिलायें जिनमें कैल्शियम और फास्फोरस बहुत अधिक मात्रा में हों । जैसे – अण्डा, पनीर, मछली और दूध का प्रयोग न करें ।