इस लेख में हम फोड़ा अर्थात boils को ठीक करने की 4 होम्योपैथिक दवा के बारे में समझेंगे की कौन सी दवा पहले और कौन सी दवा बाद में देनी है, तो आइए समझते हैं।
फोड़ा बनने में पहले सूजन होती है, फोड़ा लाल-लाल होता है, बुखार भी आ सकता है। यह फोड़े की प्रथम अवस्था है। इसमें बेलाडोना काम आता है जो मुख्य तौर पर सूजन की अवस्था की दवा है। ऐसे में आप पहले बेलाडोना 30 दें, दिन में 3 से 4 बार ताकि सूजन वहीं ठीक हो जाए। अगर आपने बेलाडोना नहीं दिया तो 3 अवस्था आ सकती है या तो सूजन के बाद फोड़ा पकने लगता है, या वह सूख जाता है, या उसमें पस पड़ जाती है। फोड़े में जितनी पस पड़ेगी उतना ही मर्क सॉल का क्षेत्र अधिक समझना चाहिये।
पस पड़ जाने पर मर्क सॉल का प्रयोग होता है – जब फोड़े में सूजन बढ़ना समाप्त होकर पूरी सूजन आ जाने के बाद उसमें पस पड़नी शुरू हो जाती है, तब मर्क सॉल का प्रयोग करना चाहिये। मर्क पस बनने को नहीं रोकता, रोकने के बजाय पस बनने में सहायता देता है, इसलिये इसका प्रयोग तब करना चाहिये जब पस बनना शुरू हो जाय। ध्यान रखियेगा मर्क सॉल से पहले और बेलाडोना के बाद जब पस बनना अभी शुरू ही हुआ हो, तब हिपर सल्फ़ का क्षेत्र है। इस समय उच्च-शक्ति का हिपर या तो पस को सुखा देगा या फोड़े को पका देगा। अगर जीवनी शक्ति फोड़े को सुखा सकती होगी, सो सुखा देगी, अगर सुखा नहीं सकती होगी, तो पका देगी। जब फोड़े में पस पड़ जाय, तब मर्क सॉल का क्षेत्र है जैसे अभी हमने चर्चा की। जब मर्क सॉल अपना काम कर चुके, फोड़े में पस पड़ जाय, और ठीक होने में देर लगे, तब साइलीशिया फोड़े में से पस निकाल कर उसे ठीक होने में सहायता देता है। इस दृष्टि से बेल-हिपर-मर्क-साइलीशिया – इस क्रम से लक्षणानुसार औषधि दी जाती है। इन सबको देना आवश्यक नहीं है, परन्तु क्रम निम्न-प्रकार ही है:
बेलाडोना – जब फोड़े में सूजन हो, बुखार हो, अभी पस न पड़ी हो, belladonna 30 की 2 बून्द दिन में 3 से 4 बार
belladonna 30 का प्रयोग नहीं किये और जब फोड़े में पस पड़ने के आसार प्रकट होने लगे तब Hepar sulph 30 की 2 बून्द दिन में 3 से 4 बार या Hepar sulph 200 की 2 बून्द दिन में 2 बार।
Hepar sulph का प्रयोग नहीं किये और जब फोड़े में पस पड़ जाय तब merc sol 30 की 2 बून्द दिन में 3 से 4 बार।
और जब पस पड़ने के बाद उसके ठीक होने में देर लगे silicea 30 की 2 बून्द दिन में 3 से 4 बार।
यह समझ लें कि मर्क्यूरियस के पीछे साइलीशिया नहीं देना चाहिये। इसका कारण यह है कि मर्क का काम फोड़े को पकाना होता है, जितनी पस बननी है वह बन जाय-यह मर्क का काम होता है। साइलीशिया का काम तो पस निकल जाने के बाद घाव को भरना होता है। अगर जब मर्क पस को बना रहा है, तब साइलीशिया दे दिया जाय, तो परस्पर-विरुद्ध प्रक्रियाएं शुरू हो सकती हैं – मर्क तो पस को बना रहा है, और साइलीशिया घाव को भर रहा है। इसलिये कहा जाता है कि मर्क के पीछे तत्काल साइलीशिया नहीं देना चाहिये। अगर मर्क का काम समाप्त हो जाय, फोड़े में पस पूरी बन चुके और हिपर से या किसी और वजह से पस निकल जाय और घाव भरने में देर हो रही हो, तब मर्क के बाद घाव को भरने के लिये साइलीशिया देने में लाभ मिलता है।
आशा है फोड़े के लक्षण में आप बेल-हिपर-मर्क-साइलीशिया के क्रम को समझ गए होंगे।