दिन-रात काम करते रहने से हमारी शरीर की शक्तियाँ खर्च होती रहती हैं। स्वस्थ रहने के लिए इस कमी को पूरा करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।
भोजन के कार्य
1. शरीर निर्माण एवं तन्तु क्षय को पूर्ति।
2. उष्मा, ऊर्जा तथा जीवन क्रिया का निर्माण।
3. स्वास्थ्य रक्षा एवं रोग अवरोधक शक्ति का संचय।
भोजन के आवश्यक तत्व हैं – (1) प्रोटीन, (2) कार्बोहाइड्रेट (शर्करा), (3) वसा (चिकनाई), (4) विटामिन, (5) खनिज लवण, एवं (6) जल।
उपर्युक्त तत्व सब प्रकार की सब्जियों, फल, अनाज, दालों, दूध में पाए जाते हैं। माँसाहारी भोजन में इनमें से कई तत्व बिल्कुल नहीं हैं, कुछ नगण्य हैं और कुछ आवश्यकता से अधिक होते हैं जो पाचन क्रिया को प्रभावित करते हैं। ऐसे में शाकाहार ही सम्पूर्ण भोजन है। आपका स्वास्थ्य आपके हाथ में है। शाकाहारी शब्द का अर्थ अंग्रेजी पर्याय ‘वेजीटेरियन’ लेटिन शब्द ‘वेजिटस’ से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है ‘सक्रिय’ अथवा ‘ओजपूर्ण’। इस तरह यह शब्द ‘वेजीटेबल’ से नहीं बना है जैसा कि सामान्यतया समझा जाता है लेकिन इसका मतलब है – वह व्यक्ति जो माँस वाले भोजन से परहेज रखता है।
सन् 1961 तक अमेरिका में अाँतों का कैंसर सर्वाधिक था। जाँच करने पर माँसाहार ही इसका मुख्य कारण पाया गया। इससे बचने के लिए सन् 1970 से वहाँ के निवासियों ने अपनी भोजन व्यवस्था में परिवर्तन किया। माँसाहार कम करके वे प्राकृतिक आहार, सलाद आदि लेना अधिक पंसद करते हैं। शाकाहार के प्रति लोगों की प्रवृति में काफी परिवर्तन हुआ है। अमेरिका और यूरोप के समृद्ध देशों में भी शाकों वाले आहार की ओर रुचि अधिक बढ़ी है।
शाकों वाले आहार में प्रोटीन – शरीर की वृद्धि, मरम्मत और नए ऊतकों के बनने के लिए प्रोटीन महत्वपूर्ण निर्माणकारी इकाइयाँ हैं। आज यह ज्ञात हो गया है कि प्रोटीनों के घटक एमीनो अम्ल कहलाते हैं। शरीर के सामान्य कार्यों के लिए इसे 23 एमीनो अम्लों की जरूरत पड़ती है जिनमें से आठ अनिवार्य होते हैं यानि आहार द्वारा इनकी आपूर्ति अवश्य होनी चाहिए। यदि सभी अनिवार्य एमीनो अम्ल आदर्श अनुपात में विद्यमान रहते हैं तो स्वस्थ शरीर अधिकांश प्रोटीनों का उपयोग कर सकता है। उचित योजना से शाकाहारी व्यक्ति भी अपने आहार से उच्च गुणता और दक्षता वाले प्रोटीन प्राप्त कर सकता है। इसके लिए व्यक्ति को प्रोटीन संपूरण के सिद्धान्तों की पूरी-पूरी जानकारी होनी चाहिये।
उदाहरण के लिए फलियों में एक अनिवार्य एमीनो अम्ल मैथियोनिन कम मात्रा में होता है। लेकिन इनमें दूसरा एमीनो अम्ल लाइसीन यथेष्ट मात्रा में होता है। धान सरीखे धान्यों से मिलाने पर, जिनमें कि मैथियोनिन अधिक होता है पर लाइसिन कम। इनसे जो प्रोटीन का मिश्रण प्राप्त होता है वह पर्याप्त होता है। भारतीय आहारों का दाल-भात वाला संयोजन इस तरह का जाना-पहचना आदर्श उदाहरण है। धान्यों, दालों, सब्जियों और दूध की चीजों के मिश्रण से संतुलित आहार सुनिश्चित होता है।
कार्बोहाइड्रेट – मानव आहार में कार्बोहाइड्रेट सबसे अधिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। शाकाहारी लोग मुख्यतया धान्यों, साबुत दालों और विविध प्रकार के कन्दमूलों से मंड (स्टार्च) के रूप में काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रट प्राप्त करते हैं।
वसाएँ – वसाएँ और तेल ऊर्जा के सबसे गाढ़े स्रोत हैं। वनस्पति वसाओं में (नारियल के तेल), वनस्पति आदि को छोड़कर अधिकांशतया असंतृप्त वसाएँ होती हैं, कोलेस्ट्रोल नहीं होता और साथ ही अनिवार्य वसा अम्ल बहुत अधिक होता है। यह एक मान्य तथ्य है कि असंतृप्त वसाएँ सीरम कोलेस्ट्रोल स्तर को कम करके रखती हैं। रक्त में कोलेस्ट्रोल की अधिक मात्रा से परिहृद धमनी रोग हो सकता है। वनस्पति वसा की खपत से हृदय की गड़बड़ियों के होने की संभावना कम होती है।
विटामिन – विटामिन बी-12 के संभव अपवाद को छोड़कर शाकाहारी व्यक्ति का भोजन सभी अनिवार्य विटामिनों की आपूर्ति कर सकता है। विटामिन बी-12 रक्त कोशिकाओं के सामान्य रूप से बनने और तंत्रिका के सामान्य कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है। इस विटामिन की कमी से तंत्रिका को क्षति पहुँच सकती है। दूध और पनीर तथा पत्तेदार सब्जियों से इस विटामिन की आपूर्ति करते हैं।
खनिज – मानव शरीर को करीब 24 खनिजों की जरूरत होती है। शरीर की वृद्धि, मरम्मत और आवश्यक कार्यों के नियमन के लिए खनिज जरूरी हैं। आहार में धान्यों, ज्वार, बाजरा और दालों के खाने से शाकाहारी व्यक्ति को सभी अनिवार्य खनिज प्राप्त हो जाते हैं।
जल – मनुष्य को जीवित रहने के लिए जल अत्यंत आवश्यक तत्व है। हमारे शरीर का लगभग दो-तिहाई भाग जल से ही निर्मित है। जल की आवश्यकता इसी बात से सिद्ध हो जाती है कि मनुष्य भोजन के बिना कुछ दिन जीवित रह सकता है, परन्तु जल के बिना नहीं।
जो लोग माँसाहारी भोजन अधिक करते हैं, वे प्रकृति की संरचना के विरुद्ध कार्य करते हैं और अपने ही पाचन क्रिया के प्रति अन्याय करते हैं। उनकी बड़ी आँतें काम ही नहीं आतीं, इसलिए वे शिथिल और निष्क्रिय होकर सूखती जाती हैं और बाद में सिकुड़ जाती हैं। यही कारण है कि माँसाहारी मनुष्यों में बड़ी आँतों का और मलाशय का कैंसर बहुत व्याप्त है। माँसाहारी भोजन में चर्बी बहुत अधिक होती है, जिसे माँसाहारी जीव तो झेल लेते हैं, लेकिन शाकाहारी व्यक्ति झेल नहीं पाते। यही कारण है कि माँसाहारी मनुष्यों में रक्तचाप बहुत बढ़ जाता है।
मछली को छोड़कर (जिसमें विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ पाया जाता है) अन्य माँस में विटामिन बिलकुल नहीं होते, जिसकी वजह से मनुष्यों की रोग-निरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है। इसी प्रकार माँसाहारी भोजन में रेशा बिल्कुल नहीं होता, जो मनुष्य के आमाशय में झाडू का काम करता है। इसी वजह से माँसाहारी मनुष्य में पेट की दीवारें पट जाती हैं और वे तरह-तरह के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी माँस भक्षण हानिकारक है। कहा गया है ‘जैसा खाए अन्न, वैसा पाए मन’। यह अक्सर देखा गया है कि माँस-भक्षी लोगों में प्राय: क्रूरता, क्रोध, आक्रामकता और हिंसक प्रवृति का अंश ज़्यादा होता है, जबकि शाकाहारी व्यक्ति में दया, करुणा, सहनशीलता और उदारता का समावेश प्राय: अधिक होता है। वर्तमान समाज में व्याप्त तनाव, हिंसा, असहिष्णुता और आतंक के अनेक कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण माँस भक्षण भी है।
शाकाहार से लाभ
1. शाकाहार जीवन को दीर्घायु, शुद्ध, बलवान एवं स्वस्थ बनाता है।
2. शाकाहार ‘जीओं और जीने दो’ के सिद्धान्त को प्रतिपादित करता है।
3. शाकाहारी माँसाहारी की तुलना में अधिक मात्रा में उष्णता (कैलोरीज) विटामिन, प्रोटीन एवं धातु प्राप्त करते हैं।
4. शाकाहारी रोगी पशु के सड़े-गले माँस के खाने से होने वाली बीमारियों से बचा रहता है।
5. सरसों का तेल, दालें, हरी सब्जियाँ व चना का उपयोग शरीर में विद्यमान कोलेस्ट्रोल में कमी करता है।
6. शाकाहारी भोजन मन में दया, समानता, आपसी स्नेह और सहनशीलता उत्पन्न करता है।
7. शाकाहारी संकल्प हिंसा के दोष से मुक्त रहता है। अत: वह सब बन्धनों से मुक्त होकर मोक्ष का रास्ता प्रशस्त करता है।
8. नैतिक और आध्यात्मिक सभी दृष्टि से शाकाहारी भोजन मानव के लिए सर्वोतम है।
9. शाकाहारी अधिक उत्पादक हैं और कम-से-कम अपव्ययी हैं। शाकाहारी कम खर्च में जीवन निर्वाह कर सकता है।
10. सात्विक भोजन से ही मनुष्य अध्यात्म के मार्ग पर चल सकता है।
11. 99 प्रतिशत शहरी नागरिकों को कब्ज़ व सिरदर्द का रोग भोगना पड़ता है। इनसे बचने के लिए फलों व सब्जियों के रस का सहारा लेना चाहिए।
12. फलाहार विटामिन की कमी के कारण होने वाले रोगों से बचाव एवं छुटकारा देता है।
13. दुर्बल रोगी फलों अथवा सब्जियों के रसों का उपयोग कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
14. एक मुट्ठी भर भुने हुए चने मनुष्य प्रात:काल खा ले तो उसे क्षय या प्लूरिसी की बीमारी जन्म भर नहीं हो सकेगी।
15. प्रकृति ने मनुष्य के दाँतों और अाँतों की रचना शाकाहारी भोजन के लिए की है। माँसाहार तो हिंसक पशुओं का आहार है।
16. शाकाहारी भोजन मधुमेह रोगी के गुर्दे और तंत्रिका तन्त्र को स्वस्थ रखता है। यह वजन घटाने में सहायक है। फल और सब्जियाँ खाने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है। शाकाहारियों की मृत्युदर माँसाहारियों की तुलना में कम है। शाकाहारी होना मानवीय है। शाकाहारी भोजन स्मार्ट फूड’ है।