फास्टफूड एवं जंक फूड के बढ़ते चलन से भोजन में रेशों की मात्रा घटती जा रही है।
रेशे क्या हैं? – रेशे भोजन में उपस्थित ऐसी कार्बोहाइड्रेट है, जो आँतों में पचती नहीं है। समझने हेतु तन्तु युक्त वनस्पतियों, फल जिनमें रस की अपेक्षा गूदा तथा ठोस भाग अधिक होता है रेशों के मुख्य स्रोत हैं।
रेशे कैसे काम करते हैं? – ये रेशे या तन्तु आमाशय एवं आंत्रीय एंजाइमों द्वारा पचाए नहीं जा सकते तथा स्पंज की तरह पानी सोखकर फूल जाते हैं। आँतों को क्रमाकुंचन गति के लिए प्रेरित करते हैं, फलत: भोजन का शीघ्र पूर्ण पाचन होता है।
रेशों के स्रोत – ये मुख्यत: वनस्पति भोज्य-पदार्थों में पाए जाते हैं, जैसे-पालक, मेथी, बथुआ, कमलगट्टा, मूली के पत्ते, अनाज साबुत या चोकर सहित आटा, जैसे-जौ, जई, गेहूँ, दालें, फल साबुत (ज्यूस नहीं), नारियल, कन्द – जैसे मूली, गाजर, शलजम, चुकन्दर, राजमा, सत्तू इत्यादि में तन्तु पर्याप्त होते हैं। अन्य रेशों के प्रचुर स्रोतों में ईसबगोल, जई के छिलके, (92 प्रतिशत), मटर साबुत, मक्का चोकर सहित, सोयाबीन साबुत (60 प्रतिशत से अधिक), गेहूँ, जौ, चावल चोकर सहित (20 से 40 प्रतिशत) पाए जाते हैं। ग्वार गम तथा चुकन्दर भी इनके प्रचुर स्रोत हैं।
कितना खायें – वयस्क व्यक्ति के लिए 25 से 40 ग्राम रेशे प्रतिदिन या 10 से 15 ग्राम प्रति 1000 कैलोरी उपभोग के हिसाब से रेशेदार भोजन होना चाहिए। भोजन में रेशेयुक्त सब्जी व फलों का प्रयोग करें तथा घी, तेल, मसाला, अचार आदि गरिष्ठ भोज्य-पदार्थों को कम-से-कम लें।
हमें स्वस्थ रहने के लिए रेशेदार भोजन की आवश्यकता है। माँस, मैदा व रस में रेशा नहीं होता। हमें रिफाइन्ड फूड की जगह रफ फूड की आवश्यकता है। मोगर के स्थान पर छिलके वाली दाल, मैदे की जगह मोटा आटा, तले-भूने भोजन के स्थान पर अंकुरित एवं उबले हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग, स्वस्थ रहने के लिए साबुत खाना श्रेयस्कर है। गाजर, सेब, नारंगी आदि को खाने से रेशायुक्त रस पेट में जाता है।
रेशे की कमी से बड़ी आँतों में कैंसर, मोटापा, मधुमेह, कब्ज़, बवासीर तथा फिशर होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं। शाकाहारियों में माँसाहारियों की अपेक्षा अाँतों के रोग कम होते हैं। माँसाहारियों में अाँतों के रोगी अधिक पाये जाते हैं। माँसाहार में रेशे नहीं होने से अाँतों के रोग होते हैं।
फल सब्जियों का रस पीने से रेशा निकल जाता है। रस पीने से शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है। इससे मोटापा बढ़ता है। रस के स्थान पर फल, सब्जी चबा-चबाकर खाना अधिक लाभदायक है। रेशायुक्त भोजन करने से बहुत-सी बीमारियों से बचाव हो जाता है।
आजकल चाट-चीनी-चिकनाई युक्त दावतें दिल के दौरे की दावतें बन गई हैं। पाँवों की चुस्ती और चहल-कदमी के बिना चौराहे व चौपाटी की चटपटी चाट स्वास्थ्य को चौपट कर रही है। प्रात: से रात्रि तक जो भी हम खाते हैं उसका विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि चीनी व चिकनाई की मात्रा पेट में अधिक पहुँच रही है। नाश्तें में चाय, नमकीन, बिस्किट, ब्रेड व मक्खन, भाँति-भाँति के शीतल पेय, आइसक्रीम, मिठाइयाँ, बच्चों के लिए टॉफी, मीठा दूध पेट में अधिक पहुँचे रहे हैं। हम स्कूटरों, मोटरों में आते-जाते हैं। शारीरिक श्रम नहीं करते। हम स्वाद और सुगन्ध को अधिक महत्व देते हैं, न चाहते हुए भी जीभ के चटोरेपन से आवश्यकता से अधिक खा जाते हैं, पेट को पेटी बना देते हैं। ‘जैसा आहार वैसी डकार’, ‘जैसे खायें अन्न, वैसा होये मन’। ‘संयम गया छूट, तकदीर गई फूट ।
स्वस्थ रहना चाहते हैं तो भोजन नियमित, संतुलित एवं स्वास्थ्यवर्धक हो तथा रेशेदार भोजन को प्राथमिकता दीजिये।