हिंदी नाम – ओलक ताम्बूल है। यह घरेलू चिकित्सा के हिसाब से बाधक वेदना दूर करने के लिये उपयोग होता है। इसका सूक्ष्म मूल 1 ड्राम ( 45 रत्ती ) परिमाण में 6 गोल मिर्च के साथ पीसकर ऋतुकाल के 1 सप्ताह पहले से मासिकस्राव प्रारम्भ होने के समय तक नित्य सवेरे एक बार ठण्डे जल के साथ सेवन करने से बाधक-वेदना का दोष दूर होकर मासिकस्राव स्वाभाविक रुप में होता है। इसकी पत्तियों का रस बहुमूत्र रोग में भी लाभदायक है।
माननीय डॉ डी० एन० राय महाशय का कहना था – इसकी पत्तियों का रस बहुमूत्र रोग में विशेष लाभदायक है । इसका मदर टिंचर – बहुमूत्र रोग में 10 वर्षों तक परीक्षा कर उन्होंने संतोषजनक फल प्राप्त किया है। बहुमूत्र, शर्करायुक्त पेशाब, पेशाब परिमाण में बहुत अधिक, प्राय: दो घंटा के अन्तर से पेशाब होना, पेशाब करने के बाद ही प्यास लगना, मुख सूखा, पेशाब में मछली-सी बदबू आना, कभी-कभी घुला मूत्र , आपेक्षिक गुरुत्व अधिक, रात को बार-बार व परिमाण में अधिक पेशाब होना, मूत्रनली के मुख में जलन, सारे शरीर में जलन, पेशाब में एल्बुमेन रहना, अनजाने में पेशाब निकलना, मूत्र की हाजत को रोक-रखने में असमर्थता, दुर्बलता, सिर चकराना, अनिद्रा, शीर्णता, कब्ज, बहुमूत्रजनित फ़ोड़े इत्यादि में इसका उपयोग उत्तम है।
रजस्रावः – मासिकस्राव अनियमित, समय के बहुत पहले ही प्रकट हो जाना, रज: बहुत थोड़े दिन या बहुत दिनों तक रहता है, मासिकस्राव होने के दो-एक दिन पहले निम्नोदर में भीषण शूल की तरह दर्द होना, रक्त का रंग काला व रक्त थक्का -थक्का व उसके साथ थोड़ा या बहुत प्रदर का स्राव रहना। इनके अलावा – कार्बन्कल व फोडों में जहाँ पर शीघ्र ही पीब उत्पन्न होना नहीं चाहती, वहाँ इसका व्यवहार होता है।
क्रम – Q, 2x, 3x शक्ति।
मात्रा – एब्रोमा आगस्टा Q की 10 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में 3 बार लें।