इस रोग में हृदय में दर्द होने लगता है जो पिछले हिस्से तक फैलता जाता है । छाती में जलन, जी मिचलाना, कमजोरी, नाड़ी का अनियमित हो जाना, साँस लेने में कठिनाई आदि लक्षण प्रकटते हैं । यह रोग मुख्यतः मादक पदार्थों के अति सेवन, अति भोजन, अति श्रम, अति भोग, चिन्ता, पौष्टिक तत्वों की कमी, मधुमेह, मोटापा, चोट लग जाना आदि कारणों से हो जाता है ।
नैजा 30- हृदय में ऐसा दर्द कि कोई उसे खींच रहा है, सुईयाँ चुभने जैसा दर्द, हृदय में घुटन, रोगी का बोल न पाना, साँस लेने में भी दर्द का बढ़ना- इन लक्षणों में दें ।
ग्लोनाइन 30- दर्द ऐसा कि सुई गड़ रही हो, व्याकुलता, साँस लेने में कष्ट, दिल बैठता-सा प्रतीत हो तो देनी चाहिये ।
क्रेटेगस Q- दर्द के साथ धड़कन बढ़ना, दर्द का असहनीय होना, घुटन, मूच्छा, स्नायविक उत्तेजना, साँस लेने में कष्ट आदि में उपयोगी है ।
ऑरम मेट 30, 200- ऐसा लगे कि दिल ने धड़कना बंद कर दिया है और फिर एकाएक धड़कने लगे, दम घुटे, मूच्छा, चेहरा पीला पड़ जाये, मृत्यु-भय हो तो इन लक्षणों में लाभप्रद है ।
एमिल नाइट्रेट 30– दर्द ऐसा कि रोगी कराहने लगे पर बोल न पाये, हृदय में कम्पन्न, साँस लेने में भारी कष्ट हो, हाथ कॉपे, घुटन प्रतीत होती हो, रोगी खुली हवा चाहता हो तो देवें ।
वाइबर्नम 30– हृदय के बॉये भाग में गोली लगने जैसा दर्द, ऐसा लगे नेज चलती ही ती देनी चाहिये ।