दमा का कारण – यह एक गम्भीर एलर्जिक और जटिल चिकित्सकीय बीमारी है जो विभिन्न प्रकार के एलर्जी के कारण श्वास नलिकाओं की ऐंठन के फलस्वरूप होती है। वंश परम्परा से इसका सम्बन्ध है। धूल के कण श्वास नलिकाओं में प्रवेश करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
दमा के लक्षण – इस रोग में तीव्र खांसी, सूं-सूं की आवाज के साथ दम फूलना व श्वास क्रिया में कठिनाई हो जाती है। ठण्ड के दिनों में वर्षा में भीगने व अाँधी के दिनों में तेज दौरा पड़ता है। दौरे के समय श्वास लेने में कठिनाई होती है, कभी-कभी भय, तनाव और भावुकता से भी इस स्थिति को बढ़ावा मिलता है।
दमा ( अस्थमा ) का इलाज घरेलू, आयुर्वेदिक, जड़ी-बूटियों द्वारा
– चकोतरा (फल) के शर्बत की चार-पाँच बोतलें बना लें। सर्दी या बरसात का मौसम हो तो पानी मत डालें और अकेला शर्बत ही चखते रहें। पाँच-पाँच ग्राम दिन में आठ बार तक दे सकते हैं। यदि खाँसी, बलगम से ज्यादा परेशान हों तो आम की गिरी के चूर्ण (पाँच ग्राम) की फंकी चकोतरी शर्बत की चाशनी में मिलाकर चटा दें। गर्मियों में मटकी का पानी मिलाकर शर्बत बनाकर पियें। खांसी भी रुक जायेगी और दमा भी जाता रहेगा।
– फूली हुई फिटकरी आधा रत्ती मुँह में डाल लें और चूसते रहें। न कफ बनेगा और न ही दमा सतायेगा।
– पुराने दमे वाले फूली हुई फिटकरी और मिश्री दस-दस ग्राम पीसकर रख लें। दिन में एक-दो बार डेढ़ ग्राम की फंकी ताजा पानी के साथ लें। दूध, घी, मक्खन,तेल, खटाई, तेज मिर्च मसाले का परहेज रखें। मक्खन निकला मट्ठा, सब्जियों के सूप आदि लें।
– दमे के रोगियों के लिये शहद, प्याज, लहसुन, तुलसी की चाय और गुड़ अमृत है। दालचीनी मुँह में डालकर चूसते रहें।
– बिना छिलका उतारे एक पके केले में चाकू से गड्ढा बना लें। उस गड्ढे में जरा-सा नमक तथा काली मिर्च का चूर्ण भरकर उसे रात भर चाँदनी में पड़ा रहने दें। सवेरे उस केले को छिलके सहित आग पर भूनें और छीलकर खायें, इससे दमे में आराम पहुँचता है।
– दमा तथा श्वास रोग में शहद के साथ अनार के सूखे छिलकों को पीसकर सेवन करें।
– कपूर को उबलते पानी में डालकर सूंघने से श्वसन सम्बन्धी रोगियों को विशेष लाभ मिलता हैं ।
– अंगूर का रस फेफड़ों के कोषों को शक्ति देता है इसलिए दमा, खाँसी, टी बी के रोगियों को अंगूर बहुत लाभकारी रहता है।
– दस बूंदें नीम का तेल पान पर लगाकर खाने से दमा व खांसी में फायदा होता है।
– दमा होने पर अजवाइन की गर्म पुल्टिस से रोगी के सीने का सेंक करना चाहिए।
– जाड़े के मौसम में तिल-गुड़ के लडडू या गजक का सेवन करते रहने से दमा, खांसी, जुकाम आदि रोगों में फायदा पहुँचता है। इनका सेवन वैसे भी रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में सहायक रहता है।
– नमक सेंधा और सरसों का तेल छाती पर मलने से खाँसी, दमा में आराम मिलता है।
– ईसबगोल साबुत लें आएँ। ईसबगोल का सत या भूसी नहीं लेना है। इसका कचरा मिट्टी हटा कर साफ कर लें। सुबह-शाम 10-10 ग्राम ईसबगोल पानी के साथ निगल जाएँ। एक माह में दमा विदा हो जायेगा। परहेज में चावल, तेल पदार्थ, गुड़, तेल, खटाई, बादी वाले पदार्थ बन्द रखें और ठीक हो जाने के बाद भी कम से कम छ: माह तक परहेज जारी रखें।
– यदि साँस फूलती है या हल्का दमे का रोग है, तो रोगी को पीपल, काली मिर्च, सोंठ व चीनी को बराबर मात्रा में पीसकर दिन में तीन-चार बार मुँह में रखकर चूसना चाहिए या शहद मिलाकर खा लेना चाहिए। इसके अलावा घी, चावल, सिगरेट, आलू, ठण्डी लस्सी, फ्रिज का पानी व उरद की दाल का कम से कम या बिल्कुल प्रयोग न करें।
दमा ( अस्थमा ) का बायोकेमिक/होमियोपैथिक इलाज
कारण – माता-पिता को दमा होने पर प्राय: यह रोग सन्तान में हो जाता है। श्वास-यंत्र में श्वास के साथ धूल के कण या धुआँ प्रवेश करने, दुर्गन्धित स्थान में रहने, ठण्डे पदार्थों के अधिक सेवन, अतिमैथुन आदि से रोग की उत्पत्ति हो जाया करती है।
लक्षण – श्वास-कष्ट, छाती में दबाव। इसके आक्रमण के समय रोगी न तो सो सकता है और न बैठ ही सकता है। खुली हवा पाने को व्याकुल हो उठता है और बेचैन रहता है।
फेरम-फॉस 12x – यकायक सर्दी के प्रकोप, धुआँ अथवा धूल के कण जाने से वाय-नली में उत्तेजना होने पर तुरन्त लाभ करती है।
काली म्यूर 3x – यकृत-दोष से रोग का आक्रमण, जीभ पर सफेद मैल की परत जम जाने पर उपयोगी ।
काली फॉस 3x – इस रोग की प्रधान दवा है। तेज श्वास को घटाने के लिये इससे बहुत फायदा होता हैं। गुनगुने पानी में लें।
नेट्रम-सल्फ 3x – युवक-युवतियों तथा छोटे बच्चों के दमा (अस्थमा) में अधिक फायदा करता है। वर्षा या सर्दी के कारण रोग बढ़े तो इससे अवश्य लाभ होता है।
मैग्नेशिया-फॉस 3x – श्वास नली की अकड़न, छाती में तीव्र दर्द आदि श्वास कष्ट हों तो ‘फेरम फॉस’ के साथ पर्यायक्रम से व्यवहार करें।
एकोनाइट 6 तथा इपिकाक – रोगी को यदि साँस लेने में कठिनाई होती है और कफ भी बहुत आता है तथा मुश्किल से निकलता है।
इपीकाक 30 – रोगी को हिलने-डुलने में भी परेशानी होती है। छाती में कफ भरा रहता है जो आसानी से नहीं निकलता। रोगी न तो सर्दी को बर्दाश्त कर पाता है और न गर्मी को। छाती सिकुड़ी रहती है। छाती में कफ के कारण घड़घड़ाहट सुनाई देती है।
ब्लैटा ओरियण्टेलिस मूल अर्क – यह दमे के रोगियों के लिये एक उत्तम औषधि है। रोगी को दौरे के समय इसकी दस-पन्द्रह बूंदें बार-बार गर्म पानी के साथ देनी चाहिए।
आर्सेनिक 30 – यदि रोग का आक्रमण आधी रात के बाद होता है। रोगी लेट नहीं सकता। लेटने से बेचैनी और घबराहट बढ़ती है। रोगी बैठना पसन्द करता है।
कैलीब्राइक्रोम 30 – रेशेदार कफ निकलता है। रोगी को साँस लेने में तकलीफ होती है। यह रोग भी आधी रात के बाद आक्रमण करता हैं और रोगी लेट नहीं पाता।
कैलीकार्ब 6x, 30 – रोगी की पीड़ा यदि प्रात: तीन बजे के आस पास बढ़ जाती है, छाती में काटने जैसा दर्द महसूस होता है। कफ गाढ़ा चिपकने वाला होता है तो यह औषधि दें।
कार्बोवेज 30 – ऐसे रोगी, जो वृद्ध हैं, दमे के शिकार हैं और अत्यन्त दुर्बल हो गये हैं। दमे के दौरे के समय अत्यन्त घबराहट और बेचैनी महसूस होती है। डकार आने से राहत मिलती हैं।
लैकेसिस 200 – रोगी आराम से सोता हैं किन्तु एकाएक दमे का आक्रमण होने से उठ जाता है। खाँसने से ढ़ेर सारा पतला कफ आता है। इससे रोगी को राहत मिलती है।
नैट्रम सल्फ 6x ऐसा दमा, जो बरसात का मौसम आते ही शुरू हो जाये। रोगी बेचैनी महसूस करे।
ब्रोमियम 1, 3 – रोगी को यदि खुश्क हवा से दमे का आक्रमण होता हो तो यह औषधि उपयोगी है।
मैडोराइनम 200 – रोगी यदि छाती, पेट अथवा घुटनों के बल सोता है और दमे का मरीज हैं। ऐसी स्थिति में यह एक लाभकारी औषधि है।
ऐलुमेन विचूर्ण 1x – इस औषधि का चूर्ण मुँह में रखने से दमे का दौरा शांत हो जाता हैं।