मिर्गी रोग का कारण
मिर्गी का रोग नकारात्मक भावों के कारण उत्पन्न होता है, जैसे अधिक चिंता करना, शोक में अधिक समय तक डूबे रहना, भयग्रस्त रहना, क्रोध करना, ईर्ष्या तथा द्वेष करना आदि। इन सब भावों का दिमाग, खून के दौरे, पाचन संस्थान, मल-मूत्र संस्थान पर खराब प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा ज्यादा हस्तमैथुन या स्त्री प्रसंग करना, अधिक शराब पीना, शक्ति से ज्यादा मानसिक परिश्रम करना, आंव, कृमि आदि की बीमारी तथा दिमाग में चोट लगना आदि कारणों से भी मिर्गी (अपस्मार) के दौरे पड़ने लगते हैं।
मिर्गी रोग का लक्षण
मिर्गी के दौरे में व्यक्ति अचानक अकड़कर बेहोश हो जाता है। बेहोश होने से पहले रोगी को इस बात की जानकारी बिल्कुल नहीं होती कि उसको इस बीमारी का दौरा पड़ने वाला है। वह चलते-फिरते, बातें करते-करते यकायक बेहोश हो जाता हैं। उसकी गरदन अकड़ कर टेढ़ी हो जाती है, आंखें फटी-सी रह जाती हैं, मुंह से झाग निकलने लगते हैं, रोगी अपने हाथ-पैर पटकने लगता है, दांत आपस में जुड़ जाते हैं या कभी-कभी जीभ भी बाहर आ जाती है। सांस लेने में तकलीफ होती है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है और व्यक्ति अपनी सुध-बुध खो देता है।
मिर्गी का घरेलू उपचार
- रोगी यदि मिर्गी के दौरे में बेहोश हो गया हो, तो राई को पीसकर रोगी को सुंघाएं, इससे बेहोशी दूर हो जाती है।
- तुलसी के पत्तों का रस लेकर उसमें चुटकी भर सेंधा नमक मिलाकर नाक में टपकाएं।
- तुलसी का सत्त्व (रस) तथा कपूर मिलाकर सुंघाने से रोगी की चेतना लौट आती है।
- नीबू के रस में जरा-सी हींग डालकर रोगी के मुंह में डालें।
- मिर्गी के रोगी को लहसुन कुचलकर सुंघाने से होश आ जाता है।
- मिर्गी के रोग को दूर करने के लिए लहसुन घी में भूनकर खाएं।
- करौंदे के पत्तों की चटनी नित्य खाने से अपस्मार का रोग जाता रहता है।
- एक गिलास दूध में एक चम्मच मेहंदी के पत्तों का रस मिलाकर पिलाएं।
- एक चम्मच प्याज के रस में थोड़ा सा पानी मिलाकर रोगी को नित्य पिलाएं। जब मिर्गी के दौरे पड़ने बंद हो जाएं, तो यह रस पिलाना बंद कर दें।
- शहतूत तथा सेब के रस में जरा-सी हींग मिलाकर रोगी को देने से लाभ मिलता है।
- शरीफे के पत्तों को पीसकर उसका रस रोगी की नाक में डालें।
- आक की जड़ की छाल निकाल लें। फिर उसे बकरी के दूध में घिस लें। मिर्गी का दौरा पड़ने पर इस रस को रोगी को सुंघाएं।
मिर्गी का आयुर्वेदिक उपचार
- रीठे को कूट-पीसकर कपड़छान कर लें। इस चूर्ण का रोज सुबह-शाम नस्य (सूंघने की क्रिया) लें। ऐसा करने से कुछ दिनों में यह रोग खत्म हो जाता है।
- 5 ग्राम लहसुन तथा 10 ग्राम काले तिल को पीसकर चटनी के रूप में 20-25 दिन तक सेवन करें।
- एक चम्मच शहद में आधा चम्मच ब्राह्मी का रस मिलाकर सेवन करें।
- शतावर के चूर्ण को एक पाव दूध के साथ नित्य सेवन करें।
- मुलेठी का चूर्ण आधा चम्मच, 10 ग्राम पेठे के रस के साथ सेवन करें।
- बच का चूर्ण शहद या देसी घी के साथ चाटें।
- 250 ग्राम सरसों का तेल, 250 ग्राम नीम का तेल, 250 ग्राम चिड़चिड़े का रस, 100 ग्राम ग्वार पाठे का रस। इन सबको मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। तेल जब चौथाई मात्रा में रह जाए, इसे उतार व छानकर शीशी में भर लें। इस तेल की नित्य मालिश करें। इससे सब प्रकार की मिर्गी रोग दूर हो जाता है।
- शोधा हुआ पारा, अभ्रक की भस्म, लोहे का सार, शोधा हुआ गंधक, शोधा हरताल तथा रसौंत। सब चीजें बराबर की मात्रा में लेकर थोड़े-से गोमूत्र में खरल करें। उसके बाद उसमें दूनी गंधक मिलाकर लोहे के बरतन में धीमी आंच पर पकाएं। लगभग दो घंटे अच्छी तरह पकने के बाद इसे उतार लें, फिर ठंडा करें। इसमें से दो रत्ती दवा प्रतिदिन खाएं। लगभग एक माह में मिर्गी की बीमारी ठीक हो जाएगी।
- सहजन की छाल, नेत्रवाला, कूट, सोंठ, काली मिर्च, पीपर, हींग, सफेद जीरा, लहसुन। सभी चीजें बराबर-बराबर मात्रा में लेकर 600 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं। जब अच्छी तरह पक कर लाल हो जाए, तो इसे आग पर से उतार लें। इस तेल को चौड़े मुंह की शीशी में भर लें। फिर उसकी नस्य लें। यह मिर्गी रोग को दूर करने की बड़ी अच्छी दवा है।
- पीपल, चित्रक, चक, सोंठ, पीपलामूल, त्रिफला, बायबिडंग, सोंठ, नमक, अजवायन, धनिया, सफ़ेद जीरा। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसमें से दो चुटकी चूर्ण प्रतिदिन पानी के साथ सेवन करें।
- दशमूल धृत 2-4 ग्राम दूध में मिलाकर दो बार लें।
- स्मृतिसागर रस 125-250 मि. ग्राम तक दो बार शहद से लें।
- अश्वगन्धादि तैल नाक में सुंघाएं।
- वात कुलान्तक रस 125 मि. ग्राम वचा चूर्ण 500 मि. ग्राम के साथ मिलाकर दें।
मिर्गी का प्राकृतिक चिकित्सा
- रोगी का सिर सीधा करके उसके नीचे तकिया लगा दें। अब उसके पैरों के तलवों पर पानी की धार धीरे-धीरे छोड़ें।
- पैरों के नाखूनों पर तिल्ली या आंवले का तेल मलें।
- बेहोशी हटने पर रोगी के सिर के बीचोबीच तिल्ली के तेल में कपूर मिलाकर मलें।
- स्नान करते समय रोगी को नेति-क्रिया अर्थात् नाक से पानी खींचकर मुंह से निकालने के लिए कहें। इस क्रिया को दो-तीन बार करने के बाद रोगी को इस क्रिया का अभ्यास हो जाएगा तथा इस रोग में लाभ होगा।
- बाथिंग टब में रोगी को बैठाकर उसके घुटनों पर पानी की धार छोड़ें। घुटने की नसों का संबंध मस्तिष्क से भी है।