इस औषधि का प्रयोग ऐलोपैथिक चिकित्सा में अधिक किया जाता है। साधारणत: मूत्रयंत्र, मूत्रनली और श्वासयंत्र की श्लेष्मिक झिल्ली के ऊपर ही इसकी क्रिया होती है, मूत्रयंत्र और मूत्रनली पर क्रिया होने के कारण इससे सुजाक के नये प्रदाह के लक्षण पैदा हो जाते हैं, इसलिये प्रमेह रोग की पहली अवस्था में जब पेशाब करते समय बहुत जलन, बार-बार पेशाब लगना, दर्द के साथ बूंद-बूंद पेशाब निकलना, पीब जैसा सफेद और पतला मवाद आना आदि लक्षण रहते हैं तब प्रदाह धीरे-धीरे मूत्राशय तक जाकर पेशाब के साथ गोंद जैसा लेसदार श्लेष्मा और खून निकलता है और पेशाब गंदला दिखाई देता है, उस समय भी इससे फायदा होता है, सूजाक की बीमारी में कोपेवा के लक्षण बहुत कुछ कैन्थरिस के समान है।
श्वास की बीमारी – खांसी के साथ विपुल मात्रा में मटियाले रंग का पीब जैसा बलगम निकलता है, बलगम में बहुत बदबू और कभी-कभी उसका रंग हरा हो, खांसने के पहले गले में सुरसुराहट होती है। तो उस समय कोपेवा के प्रयोग से फायदा होगा।
चर्म – एक प्रकार का चर्म रोग, जिसमें शरीर पर आमवात या आमवात की तरह छोटे-छोटे दाने तथा मसूर की दाल की तरह उदभेद निकलते है, उसमें भी कोपेवा फायदा करती है।
सम्बन्ध – कैन्थर, कैनाबिस, एपिस, सीपिया, वेस्पा।
मात्रा – 1 से 6 शक्ति ।