प्रसव होने से कुछ मास अथवा कुछ समय पूर्व निम्नलिखित औषधियों का सेवन विभिन्न प्रकार के कष्टों को दूर करता है
सिमिसिफ्यूगा 3, 30 – इस औषध के प्रसव के 3-4 मास पूर्व सेवन करने से प्रसव आसान तथा सुरक्षित हो जाता है एवं प्रसव के समय कोई कष्ट नहीं होता । यदि किसी स्त्री के पहले मृत-सन्तान उत्पन्न हुई हो अथवा होने की आशंका हो तो इस औषध को प्रसव के 6-7 मास पूर्व सेवन कराने से अगली सन्तान जीवित ही उत्पन्न होती है। जरायु-मुख के आपेक्षिक-संकोचन तथा मिथ्या-प्रसव-पीड़ा में हितकर है।
कैली-सल्क 6x, 200 – प्रसव से दो मास पूर्व औषध का सेवन कराने से प्रसव ठीक, सुरक्षित तथा बिना कष्ट के होता है। दुर्बलता के कारण प्रसव के बिलम्ब में हितकर हैं ।
कोलोफाइलम 6, 30 – यदि प्रसव के एक माह पूर्व से इस औषध की एक मात्रा प्रतिदिन सेवन करा दी जाय तो प्रसव के समय कोई कष्ट नहीं होता । यह औषध प्रसव के झूठे दर्दों को भी रोक देती हैं । यह जरायु-मुख की कठोरता के कारण होने वाली प्रसव-पीड़ा एवं प्रसव-बिलम्ब में लाभ करती है ।
सिकेल 6, 30 – पेट की सभी वस्तुएँ बाहर निकल पड़ने की अनुभूति होते हुए भी प्रसव का न होना, बहुत दिन पूर्व अनियमित प्रसव वेदना का आरम्भ हो जाना तथा जरायु की दुर्बलता के कारण प्रसव होने में विलम्ब-इन लक्षणों में हितकर है।
पल्सेटिला 30, 200 – जरायु की जड़ता अथवा भ्रूण की अस्वाभाविक स्थिति के कारण कमर में दर्द एवं मुँह में घाव आदि उपसर्ग प्रकट होने पर यह औषध जादू जैसा लाभ करती हैं ।
बेलाडोना 30, 200 – तीव्र दर्द के अचानक उठने पर पेट से सभी चीजों के बाहर निकल पड़ने जैसा अनुभव, फिर थोड़ी देर तक ठहरने के बाद दर्द का अचानक ही चले जाना, जरायु-मुख का लाल, तर, कड़ा, पतला तथा आपेक्षिक संकोचयुक्त होना, कभी-कभी शरीर में गर्मी तथा तीव्र, मोटी तथा सबल नाड़ी के लक्षण प्रकट होना-इन सब उपसर्गों में तथा अधिक आयु वाली गर्भवती के प्रसव कष्ट में यह विशेष लाभ करती हैं ।
एकोन 30, 200 – गर्भिणी की अत्यधिक बेचैनी, मृत्यु-भय, निरन्तर कराह, थोड़ी-थोड़ी देर बाद तीव्र दर्द होना, दर्द के कारण श्वास तक न ले पाना, योनि-द्वार एवं जरायु मुख का सूखा कड़ा व दर्दयुक्त होना एवं चेहरे पर भय के लक्षणों का प्रकट होना-इन सब उपसर्गों में लाभकर है ।
आरम-मेट 6, 30 – अत्यधिक तीव्र दर्द को सहन न कर पाने के कारण गर्भिणी द्वारा मृत्यु अथवा आत्महत्या की कामना करने की स्थिति में हितकर है।
प्लैटिना 30 – जरायु-मुख तथा योनि-द्वार के मुख के कारण प्रसव-वेदना का रुक जाना तथा केवल बाईं ओर का ही दर्द बने रहना-ऐसे लक्षणों में इसको दें।
मैग-फॉस 6x, 30 – आक्षेपिक-प्रवल वेदना के साथ ही दोनों पाँवों में अकड़न के लक्षण होने पर इसका प्रयोग करें ।
जैल्सीमियम 30, 200 – प्रसव के झूठे दर्द का ऊपर अथवा पीठ की ओर फैलना, जरायु-मुख का कड़ा होना, दर्द के ऊपर फैलने के कारण भ्रूण के ऊपर की ओर धक्का देते हुए चढ़ने जैसी अनुभूति, गर्भिणी को बीच-बीच में स्नायविक शीत का अनुभव, चेहरे तथा आँखों में तमतमाहट, कम्प एवं पेशियों की स्नायु में अशक्तता के कारण प्रसव-कार्य में विलम्ब-इन सब लक्षणों में विशेष लाभकारी है ।
लाइकोपोडियम 30, 200 – प्रसव के दर्द का ऊपर की ओर अथवा दाईं ओर को फैलना, गर्भिणी के मन में निरन्तर चलते रहने की आकांक्षा तथा उसके द्वास कभी किसी वस्तु पर पाँव रखकर जोर से काँखने के लक्षणों में हितकर है ।
नक्स-वोमिका 6, 200 – हर बार दर्द उठने के साथ ही गर्भिणी का बेहोश हो जाना, अज्ञानावस्था में मल-मूत्र त्याग तथा कमर में दर्द होना-इन लक्षणों में लाभकर हैं ।
नक्स-मस्केटा 6, 30 – मिथ्या तथा अपर्यात प्रसव-वेदना एवं अनियमित तथा आक्षेपिक वेदना में हितकर है ।
ओपियम 30, 200 – गर्भवती का चेहरा तमतमाया हुआ, आँखें चढ़ी हुई, तन्द्रालुता, शय्या का कड़ा अनुभव होना तथा भय के कारण प्रसव वेदना को दबाये रखना इन लक्षणों में हितकर है ।
कालि-कार्ब 30 – कमर में तीव्र दर्द, गर्भिणी द्वारा केवल कमर को दबाने के लिए कहना एवं अपर्यात प्रसव-वेदना में लाभकारी है। यह मोटी तथा थुलथुल शरीर वाली स्त्रियों के लिए विशेष हितकर है ।
क्लोरोफार्म 30, 200 – सम्पूर्ण पेट में दर्द, पीठ में दर्द की अधिकता के कारण रोगिणी को कमर टूट जाने जैसा अनुभव तथा जरायु मुख में कड़ापन होने के कारण दर्द का न घट पाना-इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
कैमोमिला 6, 30 – असहनीय आक्षेपिक-वेदना, तोड़ डालने जैसा दर्द, दर्द का कमर से आरम्भ होकर पाँवों की ओर फैलना, हर बार दर्द के साथ सफेद पेशाब होना, जरायु-द्वार में अकड़न तथा दर्द के कारण गर्भिणी का रोना-इन लक्षणों में हितकर है ।
काफिया 6, 30 – गर्भिणी को प्रसव-वेदना के कारण बैचेनी तथा प्रसव का दर्द होने पर भी प्रसव न होना-इन लक्षणों में हितकर हैं ।