मैग्नीशिया फॉस का बायोकैमिक उपयोग
स्नायु-शूल जिसमें गर्मी से तथा दबाने से आराम मिले – यह शुस्लर के 12 लवणों में से एक है। बायोकैमिस्ट लोग नर्व-संबंधी बीमारियों में मैग्नीशिया फॉस और कैलि फॉस दिया करते हैं, परन्तु इन दोनों में भेद यह है कि मैग्नीशिया फॉस में इस लवण की कमी के कारण ‘नर्व’ तन जाता हैं, उत्तेजित (irritated) हो जाता है; कैलि फॉस में उसकी कमी के कारण नर्व म्लान (Depressed) हो जाता है। कैलि फॉस तो नर्व का भोजन है अत: कैलि फॉस की शिकायतें नर्व को पूरी खुराक न मिलने के कारण होती है, मैग फॉस की शिकायतों में नर्व की उत्तेजना प्रधान कारण होता है। उत्तेजना मिलने पर नर्व में दर्द पैदा हो जाता है इसलिये जितने काटने वाले, गड़ते-से तीखे दर्द होते हैं, भले ही वे शरीर में कहीं भी हों, सब की दवा मैग फॉस है। कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि शरीर में कहीं खेंचन पड़ रही हैं, ऐसा दर्द होता है कि शरीर निचुड़ता-सा जान पड़ता है, कभी घूमता-फिरता दर्द होता है – ये सब ‘नर्व’ की उत्तेजना से होते हैं, और इन सबका इलाज यही दवा है। ‘नर्व’ का स्वभाव है कि जरा-सा छू दो, तो उत्तेजित हो जाती है, लेकिन पकड़कर दबा दो तो शान्त हो जाती है, इसलिये मैग फॉस में भी हल्के दबाव से तो छूने पर दर्द बढ़ता है, परन्तु जोर से दबा देने से दर्द को आराम पड़ जाता है। ‘नर्व’ को ठंड लगने से भी दर्द बढ़ा करता है, अत: मैग फॉस में ठंडक से दर्द को आराम नहीं होता, गर्मी से आराम मिलता है। इस लिहाज से फैरम फॉस के दर्द में और मैग फॉस के दर्द में भेद यह है कि फैरम फॉस का दर्द तो ठंडक से आराम मानता है, मैग फॉस का दर्द सेक से आराम मानता है। सिर-दर्द, दांत के दर्द, अंगों में दर्द में सेक से आराम हो तो यही दवा दी जाती है। पेट के दर्द में रोगी अगर आगे को दबाव के लिये झुके और सेक से आराम हो तो इसी दवा से लाभ होगा। क्योंकि नर्व को जोर-से दबा देने से और सेंक से नर्व की उत्तेजना शांत हो जाती है, इसलिये पेट-दर्द के उक्त लक्षणों में इस औषधि से लाभ होता है। कभी-कभी पेट-दर्द के साथ रोगी को पनीले दस्त आ जाते हैं। पनीले दस्त आने का कारण भी यही है कि अांतों में मैग फॉस की कमी के कारण वे उत्तेजित हो जाती हैं, मरोड़ से आतों का पानी निकल पड़ता है, और पनीला दस्त, आंव या खून आने लगता है। अगर दर्द के साथ आंतों में उक्त-लक्षण प्रकट हों, तो यह दवा लाभ करती है।
क्योंकि मैग फॉस नर्व की उत्तेजना (Irritation) को ठीक करता है, इसलिये यह दवा सिर्फ दर्द को ही नहीं, नर्व की दूसरी बीमारियों को भी ठीक करती है। कई तरह की अकड़न नर्व की उत्तेजना से पैदा होती हैं, अत: जबड़ा अकड़ जाना, हिचकी, पिंडलियों में अकड़न आदि भी इससे ठीक हो जाते हैं। हूपिंग-कफ में भी नर्व उत्तेजित हो जाती हैं जिसमें यह दवा फायदा करती है। प्रसूता को जब बच्चा होता है तब मूत्र-स्थान निकट होने के कारण कभी-कभी नर्व इतनी उत्तेजित हो जाती है कि पेशाब रुक जाता है। उस समय नर्व की उत्तेजना को मैग फॉस दूर कर देता है। होम्योपैथ ऐसी हालत में कॉस्टिकम देते हैं परन्तु यह औषधि भी वही काम करती है और पेशाब आ जाता है। मासिक-धर्म का दर्द भी नर्व की उत्तेजना से होता है। अगर इस दर्द में सेंकने से आराम हो तो मैग फॉस से ठीक हो जायेगा।
कभी-कभी मैग फॉस से पूरा काम नहीं चलता, तब इसकी क्रिया को पूरा करने के लिये कैलकेरिया फॉस देना पड़ता है। इसलिये कहा जाता है कि मैग फॉस का क्रौनिक कैलकेरिया फॉस है। असल में, इसका कारण यह है कि कैलकेरिया फॉस का प्रभाव शरीर में नये-नये कोष्ठकों को उत्पन्न करना है। अगर शरीर में कैलकेरिया फॉस की कमी हो जाय, तो नये ‘कोष्ठक’ (Cells) बनने बन्द हो जाते हैं, शरीर निर्बल हो जाता है। जब कोई औषधि काम करना बन्द कर दे, तो अधिक संभावना यही होती है कि शरीर में नवीन कोष्ठकों का तेजी से निर्माण नहीं हो रहा। ऐसी अवस्था में कैलकेरिया फॉस देने से नवीन कोष्ठक बनने लगते हैं और रोगी के चंगा होने में जो बाधा थी वह दूर हो जाती है। बायोकैमिस्ट चिकित्सक 3x, 6x, 12x विचूर्ण का प्रयोग करते हैं। गर्म पानी के साथ दवा लेने से जल्दी लाभ होता है। चार-चार, पांच-पांच गोली गर्म पानी के साथ दिन में तीन-चार बार दी जाती हैं, आराम पड़ने पर दवा बन्द कर दी जाती है।
मैग्नेशिया फॉस का होम्योपैथिक उपयोग
( magnesia phos uses in hindi )
(i) हर प्रकार के स्नायु-शूल में जिसमें सेंक से तथा दबाने से आराम मिले – बायोकैमिस्ट्री की तरह होम्योपैथी में भी इस औषधि का प्रयोग स्नायु के शूल में होता है। शुस्लर तो हर प्रकार के दर्द में, स्नायु की अकड़न में, स्नायुओं के तांडव (Chorea) में इसका प्रयोग करते थे, परन्तु होम्योपैथ ‘समः सम शमयति’ के आधार पर ही इसका प्रयोग करते हैं, वे यह नहीं मानते कि इस लवण की कमी से जो रोग होते हैं उन्हें इस लवण द्वारा पूरा करके इन रोगों का उपचार किया जाता है। मैग्नीशिया फॉस देने के अन्य लक्षण निम्न हैं: –
(ii) गर्मी से दर्द को आराम – यह औषधि उस दर्द में दी जाती है जिसमें दर्द को गर्मी से, सेंक से आराम पहुंचे। अगर रोगी को ठंड लगे, या वह ठंडी जगह पर जाये, तो उसे दर्द में महान कष्ट होता है। देर तक ठंड लगने पर दर्द हो जाता है। चेहरे पर ठंड लगे तो चेहरा दर्द करने लगता है, और गर्म सेंक से आराम मिलता है। दर्द में गर्म सेंक से आराम आर्सेनिक में भी पाया जाता है, परन्तु आर्सेनिक में उस दर्द को आराम पहुंचता है जो जलन वाला दर्द (Burning pain) हो। जो दर्द जलन वाले न हों उनमें उत्कृष्ट-औषधि मैग्नीशिया फॉस ही है।
(iii) कृच्छ्-रजोधर्म (Dysmenorrthea) में अगर सेंक से आराम पहुंचे – कष्टपूर्वक रजोधर्म में जब दर्द में गर्म सेंक से रोगी को आराम पहुंचे, तब यह सर्वोत्तम औषधि है। डॉ० टायलर का कहना है कि उनके अस्पताल में अनेक रोगिणों को जिन्हें कृच्छु-रजोधर्म था मैग्नीशिया फॉस C.M. की मात्रा देने से आशातीत लाभ हुआ। डॉ० नैश का कथन है कि कष्टप्रद-रजोधर्म में यह औषधि पल्सेटिला, कॉलोफ़ाइलम, सिमिसिफ्यूगा या अन्य किसी भी औषधि से अधिक प्रभावशाली साबित हुई है। डॉ० नैश ने भी इसका 55M शक्ति में प्रयोग किया और उसे निम्न-शक्ति की अपेक्षा अधिक सफल पाया।
(iv) देर तक काम करने से ऐंठन हो जाना – डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि जब हाथों का बहुत अधिक उपयोग करने से उनमें ऐंठन होने लगे, उनमें अकड़न (Cramps) पड़ने लगे, तब इस औषधि से लाभ होता है। उदाहरणार्थ, लिखते-लिखते अंगुलियां ऐंठ जायें, कारीगर के हाथ काम करते-करते अकड़ने लगे, पियानो बजाने वाले की अंगुलियां मरोड़ खा जायें – किसी भी काम करने वाले के सीमा से अधिक काम करने पर ऐंठन पड़े, तो यह औषधि लाभ करती है।
(v) सिर-दर्द, चेहरे का दर्द, आँखों के ऊपर या नीचे दर्द जिसे सेंक या दबाने से आराम हो – अगर सिर-दर्द में सेंक से या दबाने से आराम पहुंचे, अगर चेहरे के दर्द में या आँखों के ऊपर तथा नीचे के हिस्से में सेंक या दबाने से आराम हो, तब भी इसी दवा से लाभ होगा। वात-रोग (Rheumatism) में सेंक से और विश्राम से लाभ होने पर, हरकत से दर्द बढ़ जाने पर भी वही औषधि उपयुक्त है।
(vi) पेट में केन्द्र से उठकर फैलने वाला दर्द जिसे सेंक से और दबाने से आराम हो – कभी-कभी पेट में ऐसा दर्द उठता है जिसमें रोगी दर्द के मारे दोहरा हो जाता है। यह दर्द एक केन्द्र से उठकर पेट में चारों तरफ फैल जाता है। इसमें प्राय: कोलोसिन्थ दिया जाता है परन्तु इन दोनों औषधियों में भेद यह है कि कोलोसिन्थ का दर्द किसी सख्त वस्तु के द्वारा पेट को दबाने से ठीक होता है, उसमें गर्म सेंक से दर्द के शान्त होने का लक्षण नहीं है, मैग्नीशिया फॉस में दबाने से दर्द के शान्त होने का लक्षण तो है ही, परन्तु साथ ही गर्म सेंक से दर्द के शान्त होने का लक्षण भी है।
दर्द की मुख्य-मुख्य औषधियां
( Dard ki Homeopathic Dawa)
एकोनाइट – ठंड लगने, ठंडी हवा से दर्द, रात को बढ़ जाता है, घबराहट।
ऐमोनिया म्यूर – बैठने पर ज्यादा, चलने फिरने पर कम, लेटने पर गायब। शियाटिका में उपयोगी है। रोगी ऐसे चलता है मानो मांसपेशी छोटी हो गई हो, लंगड़ाता-सा।
ऐक्टिया रेसिमोसा – जरायु या डिम्ब-कोश के रोग के कारण स्त्री के किसी अंग में दर्द।
एपिस – चलता-फिरता दर्द जिसे ठंडी हवा या ठंडे सेक से आराम हो।
आर्सेनिक – जलनवाला, मध्य-रात्रि में बढ़ने वाला दर्द।
कैक्टस – भोजन न खाने पर दर्द, समय छोड़कर (Periodicity) आने वाला दर्द।
कैपसिकम – गर्म या ठंडी, किसी भी तरह के हवा के झोंके से बढ़ने वाला दर्द
सिड्रन – आंख के ऊपर के हिस्से में दर्द, समय छोड़कर आने वाला; मैथुन के बाद बढ़ने वाला; रजोधर्म के दिनों में बढ़ने वाला; बायीं करवट लेटने पर बढ़ने वाला।
कैमोमिला – अत्यधिक चिड़चिड़ेपन से दर्द; क्रोध से भड़क उठने वाला; दर्द से माथे और चेहरे पर पसीना आने लगे ऐसा दर्द।
चायना – समय छोड़कर आने वाला (Periodicity); रक्तहीन व्यक्तियों का सिर-दर्द, चेहरे में आखों के नीचे दोनों तरफ के हिस्सों में होने वाला दर्द।
चिननम आर्स – बायें-स्तन प्रदेश में होने वाला दर्द।
इग्नेशिया – पेट से गोला उठने के साथ होने वाला दर्द, सिर में ऐसा दर्द मानो कील ठोकी जा रही है।
जेलसीमियम – मेरु-दंड के गले के पास से उठकर माथे और आंख के गोलकों में आ जाने वाला दर्द।
कैलि बाईक्रोम – चलता-फिरता दर्द।
मैग्नीशिया फॉस – चलता-फिरता दर्द सेंक और दबाने से आगम हो।
नैट्रम म्यूर – सूर्योदय से सूर्यास्त तक का सिर-दर्द या कोई-सा ऐसा दर्द।
प्लम्बम – गुदा-प्रदेश में दर्द।
पल्सेटिला – अनियमित तथा दौरे-जैसा दर्द जो प्राय: बायीं तरफ होता है; दर्द के साथ ठंडक महसूस करना।
रोडोडेन्ड्रन – अंडकोश में दर्द।
स्पाइजेलिया – सूर्योदय के साथ दर्द शुरू होता है, दोपहर को तीव्रतम हो जाता है, दर्द बायीं आंख के ऊपर टिक जाता है, शाम को शांत हो जाता है; दर्द के साथ पित्त की उल्टी आती है। सैंग्विनेरिया से उल्टा।
सैंग्विनेरिया – सिर की गुद्दी से दर्द शुरू होकर ऊपर चढ़ता है और दायीं आंख, के ऊपर आ टिकता है। स्पाइजेलिया से उल्टा।
स्टैफ़िसैग्रिया – कन्धों के और हाथ के जोड़ों का दर्द।
थुजा – जो रोगी गोनोरिया रोग से पीड़ित रहे हों उनका दर्द नम मौसम में रोग का बढ़ना।
(vii) शक्ति तथा प्रकृति – उच्च-शक्ति 200, 1000 (औषधि ‘सर्द’ – प्रकृति के लिये है।)