मेडोराइनम के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Medorrhinum uses in hindi )
इस लेख में हम Medorrhinum होम्योपैथिक दवा की चर्चा करेंगे और इसके पूरे लक्षण को समझने का प्रयास करेंगे।
Medorrhinum जो मुख्य रूप से उन लोगों के लिए है जो रात में बहुत आराम महसूस करते हैं। शाम ढलते ही वे खुश और उत्साहित हो जाते हैं।
यह उन बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण दवा है जो बहुत भावुक, स्नेही और प्यार करने वाले हैं। इनमें प्रेम और स्नेह की तीव्र इच्छा होती है। यह बच्चों की व्यवहार संबंधी समस्याओं के लिए भी दिया जाता है। जो बच्चे पहले बहुत भावुक, स्नेही थे अचानक असभ्य और आक्रामक हो जाते हैं, जो अन्य बच्चों के साथ लड़ते हैं, खासकर दिन के दौरान और जो अपने माता-पिता या रिश्तेदारों को मारते हैं। फिर रात में ये बच्चे बहुत चंचल, सहज और स्नेही हो जाते हैं।
यह उन महत्वपूर्ण दवाओं में से एक है जहां माता-पिता या स्वयं रोगी में गोनोरिया का इतिहास होता है।
एक बच्चा जिसे स्कूल में ‘A’ ग्रेड मिल रहा था, उसे अचानक ‘C’ ग्रेड मिलने लगता है। जो बच्चा अपने माता-पिता से प्यार करता था वह अपने दिल की गहराई से उनसे नफरत करने लगता है। एक बच्चा जिसे जानवरों से बहुत लगाव था (Aethusa और Nuphar lutea की तरह ) फिर उनसे नफरत करने लगता है और यह बच्चा जानवरों के प्रति बहुत हिंसक हो जाता है। (tarentula, Anacardium, moschus की तरह)। ये सभी दवा जानवरों के प्रति बहुत क्रूर हैं। tarentula में, आपको शारीरिक बेचैनी के साथ हिंसा मिलेगी। Anacardium में, आपको दो इच्छाशक्ति और भ्रम मिलेगा कि क्या सही है और क्या गलत। Moschus में आपको यौन उत्तेजना और हिंसा देखने को मिलेगी।
Medorrhinum का बच्चा बहुत संवेदनशील और भावुक होता है। वह फूलों, जानवरों से प्यार करता है और उनकी अच्छी देखभाल करता है। जो बच्चा विनम्र, कोमल, भावुक और प्यार करने वाला था वह शैतान बन जाता है। अब उसे काटने, लात मारने की प्रबल इच्छा होती है। उसके सभी कार्य अनियमित हो जाते हैं, उसके मन में कठोरता विकसित हो जाती है, और ऐसे में इन बच्चों को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है।
अब इन बच्चों को वह सब कुछ पसंद होता है जिसकी मनाही होती है। यदि आप उन्हें कुछ चीजें नहीं करने के लिए कहते हैं, तो वे सबसे पहले जाते हैं और इसे करते हैं। यह लक्षण tarentula के समान है। ये दोनों दवा में साहस है, लेकिन tarentula में किसी भी चीज के लिए उसके मन में कोई नरमी नहीं है। ये इतने विश्वास के साथ झूठ बोल सकते हैं, कि दूसरा व्यक्ति इसे सच मानने लगता है। उदाहरण के लिए, यदि उसे कुछ पैसे दिए गए, तो वह शेष राशि वापस नहीं करेगा। वह इसे अपने ऊपर खर्च कर लेगा।पूछने पर वह यही कहेगा कि हो सकता है कि शेष राशि उसकी जेब से गिर गई हो। अगर आप उसके मुंह के आसपास चॉकलेट के निशान दिखाएंगे तो वह सफाई देगा कि चॉकलेट किसी दोस्त ने दी थी। वह बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी सत्य को कभी स्वीकार नहीं करेगा।
Medorrhinum में, बच्चा झूठ के साथ शुरू करता है, लेकिन यह नहीं जानता कि कैसे खत्म करना है और आधे रास्ते में पकड़ा जाता है, लड़खड़ाना शुरू कर देता है और उसके पास tarentula बच्चे के समान आत्मविश्वास नहीं होता है।
जैसे-जैसे Medorrhinum का बच्चा टीन-एज में पहुँचता है, वह हर चीज का अनुभव करना चाहता है। वह जीवन में नई चीजों को आजमाना चाहता है। वह पार्टियों, डिस्कोथेक में लड़कियों के साथ बाहर जाना पसंद करता है। ये ऐसे छोटे बच्चे हैं जो आपको देर रात सड़कों या डिस्कोथेक में घूमते मिलेंगे। वे हमेशा वही करना पसंद करते हैं जो वर्जित है। पिता कहे कि रात 10 बजे तक आ जाना, परन्तु वो रात 2 बजे आएंगे। वे धूम्रपान करते हैं, पीते हैं और बहुत कम उम्र में यौन संबंध बनाते हैं। उन्हें बंधन पसंद नहीं है। इसलिए शादी की बात बर्दाश्त से बाहर लगती है। ये ऐसे लोग हैं जो जीवन में बहुत देर तक अविवाहित रहते हैं।
Medorrhinum बहुत ही आत्मकेंद्रित और कठोर हृदय वाले होते हैं और वे अपने आसपास के लोगों के साथ कोई संबंध नहीं चाहते हैं। कई बार वे बहुत असभ्य और हिंसक होते हैं। वे लोगों के प्रति, अपने बच्चों के प्रति और जानवरों के प्रति क्रूर और हिंसक हैं। यहाँ समानता Lycopodium और Sepia की तरह है। दोनों को अपने बच्चे पसंद नहीं हैं। लेकिन Lycopodium में, उन्हें बच्चे पसंद नहीं हैं, क्योंकि उन्हें जिम्मेदारी लेना पसंद नहीं है इसलिए वे अविवाहित रहते हैं। Sepia को बच्चों, पुरुषों और सेक्स से घृणा है।
Medorrhinum व्यक्ति को जबरदस्त यौन भूख है, वे विभिन्न लड़कियों या वेश्याओं से मिलने जाते हैं और उन्हें यौन संचारित रोग हो सकते हैं, विशेष रूप से सूजाक।
Medorrhinum व्यक्ति के साथ से 3 चीजें हो सकती हैं:-
1. वे अत्यधिक धार्मिक हो जाते हैं और महसूस करने लगते हैं कि जीवन असत्य है।
2. वे अत्यधिक चिंता विकसित करते हैं।
3. उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है।
इसलिए युवा वयस्कों में आत्महत्या की प्रवृत्ति के लिए एक Meorrhinum एक मुख्य दवा बन जाता है।
Medorrhinum व्यक्ति का समय बहुत धीरे-धीरे गुजरता है (Arg Nit, Cann Ind)।
हाल की घटनाएँ ऐसी प्रतीत होती हैं मानो वर्षों पहले घटित हुई हों या आज की गई चीज़ें ऐसा महसूस करती हों जैसे एक सप्ताह पहले की गई हों।
रोगी मुख्य रूप से जल्दी में काम करने वाला स्वभाव का होता है, जो अपने काम में पूरी तरह से लगा रहता है। वह सोचने लगता है कि लोग बहुत धीमे हैं और लोगों को हर समय जल्दी करनी चाहिए। बचपन से ही उन्हें अंधेरे से डर लगता है; डर है कि कोई उसके पीछे है और उसके चारों ओर राक्षसों का डर है।
हर समय कुछ न कुछ होने की चिंता। काल्पनिक बातों को लेकर चिंता।
उंगलियों और पैर के नाखून चबाकर चिंता व्यक्त करने के लक्षण होते है। यह शायद एकमात्र दवा है, जहां रोगी अपने पैर के नाखून खुद ही चबाता है।
Medorrhinum एक बहुत ही महत्वपूर्ण दवा है जिसमें रोगी बिना रोए अपने लक्षणों को व्यक्त नहीं कर सकता है क्यूँकि रोने से उसका दु:ख दूर होता है। Pulsatilla की तरह
Syphillinum की तरह, Medorrhinum भी एक महत्वपूर्ण दवा है जहां रोगी बार-बार हाथ धोना चाहता है।
Medorrhinum मुख्य रूप से Hot patient होता है। हमेशा ठंडी जगह की तलाश करता है। उन्हें अपने पैरों को ढंकना पसंद नहीं है। उन्हें बर्फ और कोल्ड ड्रिंक्स की भी लालसा होती है। वे मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर आसानी से थक जाते हैं।
Video On Medorrhinum
Medorrhinum Uses, Benefits In Hindi
(1) गोनोरिया के दब जाने से उत्पन्न होने वाले रोग – सवा सौ साल से अधिक हुआ तब अमरीका के डॉ० स्वैन ने इस औषधि की रोगों का उपचार करने में उपयोगिता पर होम्योपैथों का ध्यान आकर्षित किया था। अमरीका के अनेक डाक्टरों ने इस विषय की अपने ऊपर ‘परीक्षा-सिद्धि (Proving) की। अधिकतर परीक्षण 5c शक्ति में किये गये थे। यह औषधि गोनोरिया का विष है इसलिये इसे गोनोरिनम भी कहते हैं। गोनोरिया की तरह सिफिलिस के विष की भी ‘परीक्षा-सिद्धि’ की गई है। इन विषों को नोसोड्स (Nosodes) कहा जाता है। डॉ० बर्नेट, जिन्हें रोगियों को लक्षणानुसार नोसोड्स देने का विशेष अनुभव था, लिखते हैं कि घृणिततम पदार्थ को अगर होम्योपैथी के नियमों के अनुसार शक्तिकृत किया जाय, तो यही नहीं कि वह दोष-हीन हो जाता है अपितु सोने के समान मूल्यवान् हो जाता है। ऐसी ही मूल्यवान् औषधियां गोनोरिया के विषय से बनी मेडोराइनम तथा सिफिलिस के विष से बनी सिफिलीनम हैं।
जिसे गोनोरिया हो वह एलोपैथिक इलाज करा कर समझता है कि रोग ठीक हो गया। असल में, रोग ठीक नहीं होता, दब जाता है, और गोनोरिया दब कर ‘वात-रोग’ (Rheumatism) को उत्पन्न कर देता है। वात-रोग से पीड़ित अनेक रोगी अपने जीवन-काल में गोनोरिया के शिकार रह चुके होते हैं। जब ये लोग विवाह करते हैं, तब उनकी स्त्री को जो विवाह से पहले बिल्कुल ठीक थी अनेक रोग हो जाते हैं। यह नहीं कि ऐसे व्यक्ति की पत्नी को गोनोरिया ही हो जाय, वह तो दब चुका होता है, परन्तु जो विष रुधिर में प्राप्त हो गया है वह पुरुष में वात-व्याधि तथा पुरुष के संगम से स्त्री में डिम्ब-ग्रंथियों में दर्द, मासिक-धर्म की गड़बड़ी, रति-क्रिया के प्रति उदासीनता, चेहरे का पीलापन, स्नायु-रोग आदि उत्पन्न कर देता है। ऐसे पुरुष-स्त्री की सन्तान में भी अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। बच्चा सूखने लगता है, दमे का शिकार हो जाता है, नाक बहती रहती है, आंख के पपोटे सूजे रहते हैं, सिर में दाद, चेहरा बौनों-सरीखा होता है। इन सब रोगों में जिनका आधार पुरुष का गोनोरिया से पीड़ित होना है, या जिन रोगों में वंशानुगत गोनोरिया का विष काम कर रहा होता है, यह औषधि जादू का काम करती है। परन्तु यह समझना भूल है कि क्योंकि रोग की जड़ में गोनोरिया का विष है, और क्योंकि रोगी के इस विष को मेडोराइनम सफलता से दूर कर रहा है, इसलिये रोगी को गोनोरिया हुआ ही है।
(2) गोनोरिया न होने पर भी इसका विष रोगी की प्रकृति में, उसके रुधिर में हो सकता है – हनीमैन का कहना है कि मानव-समाज सदियों से चला आ रहा है। आदि पूर्वज को क्या रोग था – इसे कौन जानता है। माता-पिता के रज-वीर्य से वंशपरंपरा द्वारा न जाने कौन-कौन-सी प्रकृति हमें विरासत में प्राप्त होती है। तीन आधारभूत विष को माता-पिता के रुधिर में वंश-परंपरा से हमें प्राप्त हो सकते हैं, वे हैं-सोरा (Psora), साइकोसिस (Sychosis) तथा सिफिलिस (Syphilis). सोरा बड़ा विस्तृत शब्द है, और यहां इसकी व्याख्या करने का स्थान भी नहीं है। ‘साइकोसिस’ गोनोरिया के विष से उत्पन्न होने वाली प्रकृति (Dyscaria) को कहते हैं; ‘सिफ़िलिस’ का अर्थ भी उपदंश के विष से उत्पन्न होने वाली प्रकृति है। हनीमैन का कथन था कि सुनिर्वाचित औषधि देने पर भी अगर रोग ठीक नहीं होता, तो इसके तीन कारण हो सकते हैं। या तो रोगी ‘सोरा’-दोष से पीड़ित है, या ‘साइकोसिस’-दोष से पीड़ित है, या ‘सिफ़िलिस’-दोष से पीड़ित है। इन दोषों को दूर करने के लिये एन्टी-सोरिक (Anti-psoric), एन्टी-साइकोटिक (Anti-sychotic) तथा एन्टी-सफ़िलिटिक (Anti-syphilitic) औषधियां देनी पड़ती हैं। ये या तो उस विष को दूर कर रोगी को ठीक कर देती हैं, या इनके द्वारा स्वस्थ होने में बाधा डालने वाली रुकावट दूर हो जाती है, और सुनिर्वाचित-औषधि अपना काम ठीक से करने लगती है। हनीमैन ने सोरा-दोष को दूर करने वाली औषधियों में थूजा तथा नाइट्रिक ऐसिड को एवं सिफ़िलिस-दोष को दूर करने वाली औषधियों में मर्क्यूरियस सौल को मुख्यता दी थी। उनके बाद, डॉ० स्वैन के परीक्षणों से गोनोरिया विष के दोषों तथा गोनोरिया-रोग के उपद्रवों को दूर करने के लिये मेडोराइनम को भी विशेष उपयोगी पाया गया है।
(3) समुद्र-तट पर दमा; वात-रोग; ड्युडिनम के अल्सर; सिर की खुजली आदि में लाभ – इस औषधि का एक प्रमुख-लक्षण यह है कि रोगी को समुद्र-तट की हवा से लाभ होता है। समुद्र-तट पर रोग में लाभ विशेष तौर पर दमे के रोग में पाया गया है। रोगी जब समुद्र-तट पर रहने लगता है तब उसका दमा ठीक हो जाता है। इसके विपरीत ब्रोमियम में नाविक लोग जब तक समुद्र के बीच में नौका या जहाज पर रहते हैं, तब तक तो उन्हें दमा नहीं सताता, परन्तु समुद्र-तट पर आने से दमा सताने लगता है। ब्रोमियम की तरह मैग्नेशिया म्यूर में भी समुद्र-तट पर रहने से दमे की शिकायत होती है, समुद्र तट से दूर रहने पर नहीं।
‘वात-रोग’ (Rheumatism) प्राय: गोनोरिया के दब जाने से हुआ करता है। अनेक वात-रोगी जो इस कष्ट से पीड़ित रहते हैं गोनोरिया के शिकार हो चुके होते हैं। बिना गोनोरिया के भी शरीर में साइकोसिस-दोष के वंशानुगत होने से वात-रोग होता है। अगर वात-रोग में समुद्र-तट की हवा से लाभ हो, तो मेडोराइनम अमोघ-औषधि है। डॉ० टायलर लिखती हैं कि एक 60 वर्ष का वात-रोगी जो मृत्यु से भय के लक्षण की शिकायत करता था, अकेला नहीं रह सकता था, जब समुद्र-तट पर रहने गया तब उसका वात-रोग दूर हो गया। उसे मेडोराइनम 30 की एक मात्रा देने से उसका मृत्यु का भय तथा वात-रोग शीघ्र जाता रहा।
एक अन्य 38 वर्ष की स्त्री का उल्लेख करते हुए वे लिखती हैं कि उसे ड्यूडीनम का अलसर था, खाने के दो घंटे बाद पेट में दर्द उठता था, पेट फूलता था, वह 8 साल से रोग से पीड़ित थी। उसकी पेट की शिकायतें समुद्र-तट पर रहने से कम हो जाती थीं। उसे मेडोराइनम (C.M.) दिया गया जिससे सब लक्षण जाते रहे।
एक पतली-दुबली स्त्री जिसके सिर में सदा खुजली मचती थी, बाल झड़ते थे, समुद्र-तट पर उसे लाभ होता था। उसे मेडोराइनम 10M दिया गया और उसकी सब शिकायतें दूर हो गई, बाल झड़ने भी बन्द हो गये।
(4) गोनोरिया-दोष की माता-पिता की सन्तान के रोग – जो बच्चे गोनोरिया-दोष के माता-पिता से उत्पन्न होते हैं, उन्हें स्वयं तो गोनोरिया नहीं होता, परन्तु ‘साइकोसिस’ के कारण उन्हें अनेक रोग हो जाते हैं, वे सूखने लगते हैं, दमा हो जाता है, नाक बहा करती है, आंखें सूजी रहती हैं, सिर दाद से भरा रहता है, बढ़ नहीं पाते। माता-पिता से चिकित्सक को पूछ लेना चाहिये कि उनके घराने में गोनोरिया तो नहीं रहा। रहने पर इस औषधि से ये सब रोग जड़-मूल से उखड़ जाते हैं।
(5) गोनोरिया-दोष से दूषित पति से पत्नी के रोग – गोनोरिया-दोष से या साइकोसिस से पति द्वारा पत्नी को अनेक रोग हो जाते हैं। विवाह से पहले वह स्वस्थ थी, विवाह के बाद उसे डिम्ब-ग्रन्थियों में दर्द होने लगा, मासिक में गड़बड़ी आ गई, जरायु-संबंधी अनेक शिकायतें होने लगीं। ऐसी हालत में भी चिकित्सक को पति को एकान्त में बुलाकर पूछ लेना चाहिये कि उसे गोनोरिया तो कभी नहीं हुआ। साइकोसिस के दोष से ये शिकायतें हो सकती हैं। इन सबको मेडोराइनम दूर कर देता है।
(6) सोराइनम, मेडोराइनम (समुद्र तट पर ठीक), सिफिलीनम (पहाड़ पर ठीक) की तुलना – सोरा-दोष में सल्फ़र और सोरिनम, साइकोसिस-दोष में मेडोराइनम, थूजा, और नाइट्रिक ऐसिड तथा सिफ़िलिस दोष में सिफ़िलीनम, मर्क सौल लाभ करते हैं। मेडोराइनम की तकलीफें दिन को, और सिफ़िलीनम की तकलीफें रात को परेशान करती हैं। मेडोराइनम का रोगी समुद्र-तट पर, और सिफिलीनम का रोगी पहाड़ पर ठीक रहता है।
मेडोराइनम औषधि के अन्य लक्षण
(i) बच्चा तकिये पर मुंह नीचा करके, या औधे मुंह घुटनों के बल या पेट पर सोता है।
(ii) रोगी के पैरों के तलुवे नाजुक होते हैं, दर्द करते हैं; कई रोगी तो इस दर्द के कारण घुटनों के बल चलते हैं।
(iii) गोनोरिया के कारण वात-रोग (Rheumatism) में यह उत्तम दवा है।
(iv) मेरु-दंड के ऊपरी भाग में बहुत गर्मी महसूस होती है।
(v) सल्फर की तरह पैर जलते हैं और जिंकम की तरह पैर टिकते नहीं, हिलते रहते हैं।
(vi) किसी भी रोग के लक्षण दिन को प्रकट होते हैं, रात को गायब हो जाते हैं – यह विचित्र लक्षण है।
(8) शक्ति तथा प्रकृति – डॉ० कैंट लिखते हैं कि इस औषधि का निम्न-शक्ति में कभी प्रयोग नहीं करना चाहिये। गोनोरिया के रोगी को देर-देर बाद 10M शक्ति की मात्रा देना उचित है। रोगी नमी में ठीक नहीं रहता परन्तु समुद्री-हवा में ठीक रहता है।