विवरण – रक्त-विकार विभिन्न रूपों में प्रकट होता है । इस रोग का मुख्य कारण एक प्रकार का सूक्ष्म कीटाणु (Micro-Organism) बताया जाता है । इस रोग के कारण शरीर में एक प्रकार का विष फैल जाता है, जिससे वह दूषित हो जाता है। इस दोष से प्राय: ऐसे फोड़े-फुन्सी प्रकट होते हैं, जो किसी प्रकार भी ठीक ही नहीं होना चाहते ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभप्रद हैं:-
हिपर-सल्फर 6, 30, 200 – ऐसे सड़ने वाले जख्म इनके चारों ओर छोटी-छोटी फुन्सियाँ बन जाती हैं, फोड़ों में पकने की प्रवृति, शरीर के किसी भाग में, नासूर हो जाना, जिसमें से मवाद रिसता रहता हो तथा फोड़े से खट्टी दुर्गन्ध आना-इन लक्षणों में हितकर हैं ।
बैप्टीशिया 12 – यह औषध मुख्यत: रक्त-विकार के कारण होने वाले टाइफाइड-ज्वर में लाभ करती है । शरीर में अत्यधिक शक्ति-हीनता, प्रखर दुर्गन्ध, श्वास में भी दुर्गन्ध, यदि फोड़े हों तो उनमें भी सडाँध की गन्ध एवं इस गन्ध के साथ ही रोगी में तन्द्रालुता के लक्षण – इन उपसर्गों में इसका प्रयोग करें ।
ऐन्थ्रासीनम 200, 1M – डॉ० क्लार्क के मतानुसार यह औषध रक्त-विकार के कारण होने वाले विषैले-फोड़े, सड़ने वाले जख्म तथा फोड़े, कान की जड़ के जख्म तथा अन्य अनेक प्रकार के जख्म, फोड़े, मुँहासे आदि में हितकर है । इसके मुख्य लक्षण हैं – असह्य जलन तथा दुर्गन्धित स्राव ।
ऐकिन्नेशिया 6, 30 – यह रक्त-विकार की मुख्य औषध है । गन्दे तथा ठीक न होने वाले जख्म, फोड़े, फुन्सी, मुँह तथा कान से अत्यधिक दुर्गन्ध आना, प्रसूति ज्वर में रक्त का दूषित हो जाना, बार-बार फोड़े होना, कार्बन्कल, गैंग्रीन आदि दोषों में हितकर है ।
पाइरोजेन 200 – सडाँध तथा विषाक्त गैस वाले प्रत्येक रोग में लाभकर है । टाइफाइड तथा प्रसूति ज्वर में-जबकि रक्त दूषित हो जाता है-यह सर्वश्रेष्ठ औषध सिद्ध होती है ।
गन पाउडर 3x – डॉ० क्लार्क के मतानुसार यह औषध रक्त-विकार में अत्यधिक लाभ करती है। इसका प्रयोग आरम्भ करने से दो दिन पूर्व यदि हिपर सल्फर 200 की एक मात्रा ले ली जाय तथा बाद में इसका सेवन किया जाय तो शीघ्र फायदा होता हैं ।
सुपाच्य हल्का तथा पौष्टिक भोजन करें । शुद्ध वायु का सेवन करें । हर प्रकार की गन्दगी से दूर रहें, जब तक रोग दूर न हो जाय, अधिकाधिक विश्राम करें ।