विवरण – यह बीमारी रक्तहीनता (Anaemia) की ही एक किस्म है । इसमें रक्त में लाल कणों की कमी हो जाती है । यह रोग मासिक-धर्म आरम्भ होने की आयु में प्राय: नवयुवतियों में ही अधिक पाया जाता है। इस रोग में रोगिणी की त्वचा के रंग में हरीतिमा (हरापन) पाया जाता है । कलेजा धड़कना, चेहरे पर पीलापन तथा सूजन, श्वास-कष्ट, शरीर के तापमान का गिर जाना, आँखों के चारों ओर काला दाग पड़ जाना, होठों में खून दिखाई न देना अर्थात् उनका सफेद पड़ जाना, हर समय ठण्ड का अनुभव, अजीर्ण, कब्ज, अरुचि तथा स्वभाव में चिड़चिड़ापन आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
यह रोग ऋतु की गड़बड़ी, रक्त-स्राव, हस्त-मैथुन, नियमित परिश्रम न करना तथा अधिक चिंता करना आदि कारणों से प्रकट होता है ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्न औषधियाँ लाभ करती हैं:-
फेरम-रैडेक्टम 3x वि० – यह इस रोग की मुख्य औषध है। इसे प्रतिदिन एक ग्रेन की मात्रा में, दिन में दो बार सेवन करना चाहिए। शरीर की त्वचा पर हरापन (हरीतिमा), सदैव ठण्ड लगना, कभी-कभी अचानक ही गर्मी की झलक का अनुभव होना, सिर में दर्द, रजोरोध, अत्यधिक रज:स्राव एवं अजीर्ण-इन लक्षणों में यह लाभकारी है । ‘फेरम’ के अन्य मिश्रण भी इस रोग में लाभ करते हैं ।
फेरम-मेटैलिकम 2x, 6 – अन्य औषधियों से लाभ न होने पर इसका प्रयोग करें । यह हरित रोग में लाभकर है । अत्यधिक कमजोरी, सिर में चक्कर, कान में भों-भों की आवाज, श्वास-कष्ट, कलेजा का धड़कना, रजोरोध तथा अत्यधिक ठण्ड का अनुभव-इन लक्षणों में लाभकर है ।
फेरम-म्यूर 3x – इसे भोजनोपरान्त सेवन करने से लाभ होता है। चेहरा पीला तथा फूला हुआ, त्वचा पर अंगुली दबाने से गड्ढा पड़ जाना, रोगिणी का थकी-थकी रहना, भूख न लगना, पेट में अम्ल की शिकायत, थोड़ी-सी बात पर ही आँसू बहाने लगना तथा ऋतुकाल में थोड़ा स्राव निकलना-इन सब लक्षणों में हितकर है।
कैल्केरिया-फॉस 3x, 30 – डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार स्कूल जाने वाली लड़कियों में अत्यधिक स्नायविकता के कारण बेचैनी, कभी घर छोड़ने की इच्छा हो तो कभी घर लौटने की आंकाक्षा, स्कूल में सिर-दर्द बना रहना, शारीरिक-वृद्धि में अधिक विलम्ब तथा हरित रोग के अन्य लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
ऐलूमिना 30, 200 – नवयुवतियों के हरित-रोग में यह औषध तब अधिक लाभ करती है, जब मासिक-धर्म बहुत कम होता हो, स्राव का रंग लाल के स्थान पर पीला जैसा हो तथा रोगिणी को चूना, चाक (खड़िया) तथा स्लेट-पेंसिल आदि खाने की प्रबल इच्छा बनी रहती हो ।
नेट्रम-म्यूर 12x वि० 30, 200 – यह औषध पुरानी बीमारी (Chronic Chlorosis) में लाभकारी है। शरीर तथा मन की सुस्ती होने पर यह बहुत हितकर सिद्ध होती है। उरु-देश में ठण्ड का अनुभव, तलपेट में भार, कब्ज, शोथ, ऋतु का बन्द हो जाना, परन्तु बीच-बीच में कपड़े पर दाग पड़ना तथा उत्कण्ठा आदि लक्षणों में हितकर है। पुराने दुर्दमनीय रोग में बहुत लाभकर है।
पल्सेटिला 3x, 6, 30 – डॉ० जहार के मतानुसार हरित-रोग की चिकित्सा इसी दवा से आरम्भ करनी चाहिए। ऋतु का एकदम न होना अथवा बहुत कम होना, सर्दी लगने के कारण ऋतु का बन्द होकर रोगिणी का धीरे-धीरे कमजोर होते चले जाना, प्रदर का स्राव दूध जैसा, कलेजे में धड़कन, हाथ-पाँवों का ठण्डा रहना, घर-गृहस्थी के कामों में मन न लगना, खुली हवा में रहने की इच्छा तथा बात-बात पर रो देना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
सल्फर 30 – यदि ‘पल्सेटिला’ से रोगिणी का ऋतुधर्म ठीक न हो तो उसे कुछ दिनों तक यह औषध सेवन करायें । ब्रह्मतालु अथवा हाथ-पाँवों की तली में गर्मी का अनुभव, कब्ज, प्रदर एवं रात में बेचैनी होना आदि लक्षणों में हितकर है।
कैल्केरिया-कार्ब 30 – ‘सल्फर’ के कुछ दिनों बाद इस औषध का सेवन कराने से रोगिणी पूर्ण स्वस्थ हो जाती है । डॉ० ज्हार के मतानुसार पल्स, सल्फर और कैल्केरिया-कार्ब-ये तीनों हरित-रोग की मुख्य औषधियाँ हैं । यदि किसी विशेष औषध के लक्षण स्पष्ट न हों तो इन तीनों को क्रमश: सेवन कराने से रोग दूर हो जाता है ।
किशोरावस्था (12 से 16 वर्ष) में बालिकाओं को यह रोग हो जाने पर स्नायु-शूल, सिर में चारों ओर पसीना, पैरों में ठण्डापन तथा अस्थि-गुल्म का बढ़ जाना – ये लक्षण प्रकट होते हैं। इनमें कैल्केरिया का प्रयोग लाभकर सिद्ध होता है । पुरानी सर्दी, अतिसार, रीढ़ के कमजोर अथवा टेढ़ी हो जाने की आशंका अथवा रोगिणी का धीरे-धीरे मोटी हो जाना आदि लक्षणों में ‘कैल्केरिया’ विशेष लाभ करती है ।
ग्रैफाइटिस 3x – अल्प रज:, सूखी या रूखी त्वचा, कब्ज, गर्भस्राव तथा शरीर के मोटे हो जाने के लक्षणों में हितकर हैं ।
सीपिया 12 – जरायु-प्रदेश में दर्द, तीव्र सिर-दर्द, पेट का खूब चिपके रहना, कब्ज, बकरी की मैंगनी जैसा मल, जोर लगाने पर भी पाखाना न होना, केवल वायु अथवा श्लेष्मा निकलना, अधकपारी का सिर-दर्द, स्वल्परज: अथवा रजोरोध अथवा बहुत दिनों बाद ऋतुस्राव होना एवं पीले अथवा हरे रंग का प्रदर-इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
क्युप्रम 6 – ‘फेरम’ अथवा लौह-निर्मित औषधियों के अप-व्यवहार के कारण होने वाली बीमारी तथा गरम पानी से रोग-वृद्धि के लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
हेलोनियस 2x, अथवा पिकरिक एसिड 6 – पेशाब में फास्फेट की अधिकता होने पर इनमें से किसी भी एक औषध का प्रयोग करें ।
आर्सेनिक 30 – अधिक परिमाण में रक्तस्राव अथवा शोथ, लौह-निर्मित औषधियों के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न हुआ रोग अथवा रोगी के कमजोर हो जाने पर इसका प्रयोग करना चाहिए ।
आर्जेण्टम-नाइट्रिकम 6 – पेट में दर्द, वमन, मूर्च्छा तथा कलेजा धड़कना – इन सब लक्षणों के एक साथ रहने पर इसे दें ।
वेलेरियाना Q – स्नायविक-उपसर्ग अथवा हिस्टीरिया के साथ हरित-रोग के लक्षणों में इसके प्रयोग से लाभ होता है ।
- समुद्री पानी अथवा ठण्डे पानी में स्नान करना, सूर्य की धूप में इधर-उधर घूमना तथा कपड़े उतार कर सम्पूर्ण शरीर में धूप लगने देना हितकर है ।
- हाथ की चक्की का पिसा आटा, दलिया, दूध, कच्चा अण्डा अथवा अण्डे का पीला अंश ताजा तथा पके हुए फल, दूध, दही, मट्ठा आदि पदार्थों का भोजन तथा अधिक परिमाण में पानी पीना लाभकर रहता है ।
- यथाशक्ति परिश्रम करना चाहिए । आलस्य में समय न बितायें ।