विवरण – कटा हुआ चमड़ा चाटने अथवा पागल कुत्ता, सियार, बिल्ली आदि के काटने से यह रोग होता है । इन पशुओं के दाँत अथवा नखों द्वारा शरीर के किसी भाग में जख्म हो जाने तथा उस जगह इनकी लार लगने से सम्पूर्ण शरीर में विष फैल जाता है।
पागल कुत्ता, बिल्ली आदि जिस दिन काटते हैं, उसके 17, 18 दिनों तक रोग का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, फिर जख्म वाले स्थान पर सामान्य जलन तथा उसके आस-पास की जगह में खुजली मचने लगती हैं । फिर मन में चंचलता तथा स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है । रात के समय बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं तथा गले की पेशियां सिकुड़ कर गर्दन अकड़ जाती है ।
इस रोग का रोगी तेज रोशनी को सहन नहीं कर पाता। किसी पतली वस्तु को गले से नीचे उतारने में कष्ट होता हैं तथा साँस लेने में भी तकलीफ होती है । फिर पानी अथवा किसी अन्य तरल पदार्थ को देखते ही रोगी को भय लगने लगता है । तदुपरान्त टिटनस, मिर्गी एवं ऐंठन आदि के उपसर्ग प्रकट होते हैं । रोगी कभी पागलों की तरह चिल्लाता है, कभी दीवाल पर सिर पटकता है और कभी पागल कुत्ते की भाँति काटने दौड़ता है । मेरुमज्जा एवं मस्तिष्क के पदार्थों में बहुत कुछ अन्तर हो जाता है । यदि उचित उपचार द्वारा रोग पर नियंत्रण न पाया जा सके तो रोगी की मृत्यु हो जाती है ।
जलान्तक रोग की चिकित्सा इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-
हाइड्रोफोबिनम 30, 200 – यह इस रोग की श्रेष्ठ औषध है। यदि रोगी पानी के बहने अथवा उड़ेलने के शब्द को बर्दाश्त न कर पाता हो, तब इसे देना चाहिए। इस रोग का उपचार इसी औषध द्वारा आरम्भ करना अच्छा रहता है । इस औषध में पुराने सिर-दर्द के लक्षण आदि पाये जाते हैं। इसे एक सप्ताह तक दिन में तीन बार के हिसाब से देना चाहिए ।
बेलाडोना 3, 30 – मस्तिष्क-शोथ अथवा मस्तिष्क की उत्तेजना के कारण रोगी का प्रतिहिंसक हो जाना, अत्यधिक क्रोध करना, कपड़े फाड़ डालना, अपने समीप आने वाले व्यक्ति को काटने की कोशिश करना तथा पानी से डरना-इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । यदि ‘हाइड्रोफोबिनम’ के प्रारम्भिक प्रयोग से ही लाभ हुआ हो तो उसके बाद एक वर्ष तक इस औषध को नित्य दिन में दो बार सेवन करते रहना चाहिए। डॉ० ह्यूजेज के मतानुसार यह इस रोग की मुख्य औषध है।
स्ट्रैमोनियम 1x, 6, 30 – इस औषध के लक्षण भी बेलाडोना जैसे ही हैं, परन्तु वे उतने उग्र न होकर, मध्यम होते हैं । रोगी जब पानी पीने का प्रयत्न करता है तो उससे भय होता है, साथ ही वह पानी को देख भी नहीं सकता । वह धीमे-धीमे कुछ प्रलाप भी करता रहता है। मस्तिष्क की उग्रता में बेलाडोना तथा मध्यम लक्षणों में स्ट्रैमो देना चाहिए। स्नायविक-उत्तेजना एवं प्रलाप अधिक हो तो इसे दें।
कैन्थरिस 30 – बेलाडोना जैसी मस्तिष्क की उत्तेजना के साथ ही रोगी का कुत्ते की तरह भौंकने के लक्षणों में यह औषध विशेष लाभ करती है। यदि जलान्तक के साथ ही मूत्रशूल की शिकायत भी हो तो यह अचूक दवा सिद्ध होती है । इस औषध के रोगी का चेहरा पीला तथा झुर्रियों से युक्त होता है, साथ ही उसकी भौंहें इस तरह की तनी रहती हैं, जैसे वह किसी बड़े कष्ट में हो ।
हायोसायमस 30 – यदि रोगी को नींद बिल्कुल न आती हो, शरीर की प्रत्येक माँसपेशी में ऐंठन, आँख से अँगूठे तक फड़कन और विशेष कर गले में ऐठन की शिकायत हो तो यह औषध बहुत लाभ करती है ।
स्कुटेलेरिया 30 – डॉ० हेले के मत में यह जलान्तक रोग की मुख्य औषध है।
लैकेसिस 6, 30 – डॉ० हेरगि के मतानुसार जलान्तक में अकड़न अथवा खींचन अधिक होने पर इस औषध का प्रयोग अधिक हितकर रहता है ।
जिस स्थान पर पागल कुत्ते आदि ने रोगी को काटा हो, वहाँ से कुछ ऊपर हट कर एक बन्ध कस कर बाँध दें । फिर उस जगह को कार्बोलिक एसिड अथवा नाइट्रिक एसिड से जला दें। कुछ चिकित्सक ऐसी स्थिति में नैजा 6x की एक मात्रा खिलाने की भी राय देते हैं। उपयुक्त प्रारम्भिक उपचार करने के बाद अन्य औषधीय उपचार करने चाहिए । जब तक रोगी का पागलपन दूर न हो जाय, तब तक उसे मीठी वस्तु खाने के लिए नहीं देनी चाहिए ।