कारण – मूत्र-रोध अथवा मूत्र-नाश के कारण जब शरीर के दूषित पदार्थ बाहर न निकल कर रक्त में ही रह जाते हैं, तब मूत्र-रोध के साथ ही जो रक्त-दोष सम्बन्धी अनेक उपसर्ग प्रकट होते हैं, उन्हें मूत्र-रोध सम्बन्धी विकार अथवा युरीमिया कहा जाता है ।
लक्षण – इस रोग के उपसर्ग धीरे-धीरे अथवा अचानक ही प्रकट होते हैं। मूत्र की कमी, शोथ, मिचली, वमन, तीव्र सिर-दर्द, सिर में चक्कर आना, आक्षेप, प्रलाप, बेहोशी जैसी नींद, पेशाब का बहुत कम होना अथवा बिल्कुल ही न होना, शरीर की गर्मी का बढ़ जाना, नाड़ी की चाल में तेजी, चेहरा मलिन तथा मोम जैसा दिखाई देना आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
चिकित्सा – इस रोग में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
टेरिबिन्थिना 2x – यह इस रोग की मुख्य औषध है । यदि इससे कोई लाभ न हो तो लक्षणानुसार कैलि-बाई, मर्क-कोर, कैंथरिस अथवा आर्सेनिक की परीक्षा करनी चाहिए ।
आयोडीन – मूत्र-रोध के कारण उत्पन्न वमन में इस औषध के मूल-अर्क को केवल आधी बूंद की मात्रा में सेवन करनी चाहिए।
क्युप्रम ऐसेटिकम 2x – यह बेहोशी जैसी नींद की श्रेष्ठ औषध है । यदि पन्द्रह-पन्द्रह मिनट के अन्तर से सेवन कराने के बाद तीन-चार घण्टे तक भी रोगी को कोई लाभ न हो तो ‘ओपियम 3x’ को पन्द्रह मिनट के अन्तर से देना चाहिए । ‘ओपियम” से भी लाभ न होने पर ‘आर्टिका युरेन्स Q’ को 5 बूंद की मात्रा में चार घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
कार्बोलिक-एसिड 1x – वृद्ध व्यक्तियों की प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने कारण रात्रि के समय थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बारम्बार मूत्र आना, मूत्र का रंग लगभग काला होना तथा रोगी का तन्द्रा की स्थिति में जा पहुँचना-इन सब लक्षणों में विशेष लाभ करती है । इस औषध को पन्द्रह-पन्द्रह मिनट के अन्तर से देना चाहिए ।
ओपियम 30, 200 – यदि ‘कार्बोलिक एसिड’ से चौबीस घण्टे के भीतर लाभ दिखाई न दे तो इस औषध को देना चाहिए ।
क्युप्रम ऐसेटिकम 3x – यदि रोगी को आक्षेप की शिकायत हो जाय तो यह औषध प्रति आधा घण्टे के अन्तर से देनी चाहिए ।
बेलाडोना 30 – मूत्र-रोध के कारण हिष्ट-पुष्ट व्यक्ति को उत्पन्न होने वाले तीव्र कष्ट में यह औषध विशेष लाभ करती है। गुर्दों का काम करना बन्द कर देना, खून का काला तथा गंदला तथा मांसपेशियों की फुदकन आदि लक्षणों में इसे दें । यदि रोगी को आक्षेप पड़ने लगे तो इस औषध तथा ‘क्युप्रम-एसेटिकम’ में से किसी एक का चुनाव करने की आवश्यकता पड़ सकती है ।
हेलिबोरस 3 – पेशाब के रुक जाने पर यदि मूत्राशय अधिक फूल जाय तथा रोगी बेहोश हो जाय, तब इसका प्रयोग हितकर रहता है।
विशेष – उत्त औषधियों के अतिरिक्त कभी-कभी निम्नलिखित औषधियों देने की जरूरत भी पड़ सकती है :- हाइड्रोसायनिक ऐसिड 3, क्रियोजोट 6, ऐमोन-कार्ब 3 ।
- सुहाते गरम पानी के टब में रोगी को कमर तक डुबा कर बैठाने से बन्द पेशाब खुल जाता है ।
- एक हिस्सा दूध में चार हिस्सा पानी मिला कर अथवा अरारोट को पानी में खूब पतला घोल कर तथा उसमें नीबू के रस के साथ नमक या मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से बन्द पेशाब प्राय: सहज में ही खुल जाता है।
- पानी में थोड़ा-सा कल्मी शोरा घोलकर उसमें कपड़े की पट्टी भिगोयें । इस पट्टी को रोगी के पेट के ऊपर लगाने से भी पेशाब प्राय: हो जाता है।
- कच्चे नारियल का पानी पीने से भी बन्द पेशाब खुल जाता है।
- मूत्र-रोध विकार में भाप-स्नान या बफारा लेना लाभकारी है । रोग के आक्रमण के पश्चात् कुछ दिनों तक केवल पेय-पदार्थ (विशेष कर दूध) का सेवन करना चाहिए ।