Homeopathic Medicine For Cystitis : मूत्राशय के भीतर की झिल्ली में अगर सूजन आ जाय, तो मूत्राशय में दर्द, अकड़न या भार अनुभव होता है। मूत्राशय में पेशाब इकट्ठा हो जाता है, और जोर लगाने से वह निकलता है। पेशाब में खून या पस मिला हो सकता है।
अक्सर रोगी को कंपकंपी महसूस होती है। मूत्राशय की सूजन (Cystitis) तथा प्रोस्टेट की सूजन (Prostatitis) में अंतर यह है कि Cystitis में दर्द मूत्राशय से उठकर कमर तक ऊपर की ओर जाता है
जबकि Prostatitis में दर्द कमर से चलकर मूत्राशय तक नीचे जाता है । मूत्राशय के अनेक रोग हैं जैसे मूत्र-पथरी (Urinary Calculus), मूत्र-नली का सिकुड़ना (Stricture)
मूत्र-रोध (Retention of urine), मूत्र-नाश (Suppression of Urine), बहुमूत्र (Polyuria) आदि ।
इस लेख में हम BLADDER IRRITABLE (CYSTITIS) की मुख्य दवाओं की चर्चा करेंगे।
सिस्टाइटिस का होम्योपैथिक इलाज
कारण – मूत्राशय में ठण्ड, सर्दी बैठ जाना, चोट लगने, मूत्र-नली में सिकुड़ जाने, पेशाब उतारने के लिए मूत्राशय में सलाई डालने, प्रौस्टेट ग्लैण्ड की सूजन पथरी, सूजाक आदि कारणों से मूत्राशय में प्रदाह उत्पन्न हो जाता है ।
लक्षण – मूत्राशय की झिल्ली में सूजन आ जाने पर मूत्राशय में दर्द, अकड़न तथा भार का अनुभव होता है। सब अंगों में सर्दी अथवा कंपकंपी होना, पेशाब का कष्ट से उतरना, इस रोग में दर्द ऊपर की ओर कमर तक फैलता है, जबकि मूत्र-ग्रन्थि प्रदाह में नीचे की ओर कमर से मूत्राशय तक फैलता है।
चिकित्सा – यह रोग नया तथा पुराना दो प्रकार का होता है। इसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
कैन्थरिस 3x, 6, 30 – यह इस रोग की मुख्य औषध है तथा दोनों अवस्थाओं में लाभ करती है । बार-बार पेशाब आने की इच्छा, परन्तु जलन के साथ पेशाब की बूंदें निकलना तथा कभी-कभी पेशाब के साथ खून भी आना, मूत्राशय में अत्यधिक मरोड़, पुराना मूत्राशय-शोथ, मूत्र-त्याग के पश्चात भी मरोड़ तथा जलन बने रहना आदि लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। इसे बार-बार दुहराया भी जा सकता है। मूत्राशय में दर्द के मारे रोगी का दुहरा हो जाने के लक्षण तथा मूत्राशय-प्रदाह के प्रचण्ड-वेग में यह विशेष हितकर है ।
बर्बेरिस Q – बार-बार पेशाब जाने की इच्छा, परन्तु मूत्रत्याग के समय तथा बाद में मूत्रनली में जलन तथा काटता हुआ-सा दर्द, इन लक्षणों में लाभकारी है। इस औषध को चार-चार बूंद की मात्रा में गुनगुनाते पानी के साथ आधा-आधा घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। जब तकलीफ कम हो जाय, तब इस औषध को देने के समय का बड़ा अन्तर बढ़ा देना चाहिए। इस दर्द का मुख्य कारण प्राय: गुर्दे में पथरी का होना होता है ।
एपिस 3x, 30 – बार-बार पेशाब आने की इच्छा के साथ कुछ जलन के लक्षणों में लाभकारी है। मूत्राशय में भयंकर दर्द, कभी-कभी थोड़ा रक्त युक्त गरम पेशाब निकलना, कभी बिल्कुल ही न होना आदि में हितकर है ।
एकोनाइट 1x, 3x, 30, 200 – सूखी ठण्ड लगने के कारण प्रदाह, पेशाब में खून आना, पेशाब करने से पूर्व रोगी का चिल्लाना तथा ठण्ड लगने के कारण पेशाब रुक जाने के लक्षण में हितकर है । किसी आघात के कारण पेशाब का रुकना, मूत्राशय में जलन तथा दर्द होने पर इसे दें ।
डल्कामारा 3 – सर्दी लग जाने के कारण पेशाब के रुकने तथा प्रदाह के लक्षणों में हितकर है ।
बेलाडोना 30, 200 – मूत्र-ग्रन्थि की बीमारी होने के कारण अधिक श्लेष्मा निकलने के लक्षण में लाभकर है। भयंकर दर्द के समय बूंद-बूंद पेशाब आना तथा दर्द का जाँघ से नीचे की ओर फैलना इसका मख्य लक्षण है ।
टेरिबिन्थिना 6 – दर्द के साथ बूंद-बूंद पेशाब आना तथा पेशाब के साथ रक्त भी आना एवं थोड़ा पेशाब आकर पेशाब की मरोड़ बने रहने के लक्षण में हितकर है। मूत्राशय तथा नाभि-प्रदेश में एक-दूसरे के बाद असह्य पीड़ा, खड़े होकर पेशाब का आसानी से उतरना तथा बैठने पर बूंद-बूंद टपकना, रात को पेशाब से बिस्तर का तर हो जाना, मूत्र में ढेर सा रेत निकलना तथा अनजाने में मूत्र निकलना – इन लक्षणों में भी इसे देना चाहिए ।
नक्स-वोमिका 6, 30 – मूत्र का कठिनाई से होना, मूत्र की हाजत तो होना, परन्तु हाजत के साथ ही दर्द होना, पेशाब की कुछ बूदों का ही उतरना तथा पेशाब की बूंदें उतरते समय जलन होना और तभी पेशाब की हाजत के साथ ही टट्टी की भी हाजत होना-इन सब लक्षणों में उपयोगी है ।
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कोपेवा 3 – स्त्रियों के मूत्राशय तथा मूत्र-नली के मुँह पर सामान्य-सी जलन, पेशाब का बूंद-बूंद तथा दर्द के साथ उतरना-इन लक्षणों में लाभकारी है । यह औषध स्त्रियों के लिए विशेष उपयोगी है ।
सेनेगा Q, 30 – पेशाब का निकल जाना, विशेषकर रात के समय-इस लक्षण में हितकर है ।
फैरम-फॉस 6x – पेशाब का निकल जाना, विशेष कर दिन के समय-इस लक्षण में हितकर है ।
कास्टिकम 30 – खाँसते अथवा छींकते समय पेशाब का निकल जाना, दिन-रात बार-बार पेशाब आना, पेशाब करने के लिए बैठने पर दो-चार बूंद से अधिक न उतरना तथा पेशाब निकलते समय अत्यधिक पीड़ा होना-इन लक्षणों में हितकर है।
सौलिडेगो Q, 3 – पेशाब के रुक जाने पर इसके प्रयोग से प्राय: कैथीटर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । इसे पाँच से दस बूँद तक की मात्रा में दिन में तीन बार देना चाहिए ।
टेरेण्टुला हिस्पैनिया 30 – मूत्राशय-प्रदाह के साथ ज्वर, पेट में खराबी, पेशाब की एक-एक बूँद निकलना भी असंभव, अत्यधिक पीड़ा, मूत्राशय का सूजा हुआ अनुभव होना, यदि पेशाब उतरे तो उसका लाल, काला, भूरा तथा दुर्गन्धयुक्त होना अत्यधिक बेचैनी के कारण टहलना अथवा इधर से उधर करवटें बदलना आदि लक्षणों में हितकर है ।
सार्सापैरिल्ला 6 – मूत्र-त्याग के पश्चात् दर्द, मूत्राशय में तनाव, बैठकर पेशाब न कर पाना, खड़े होकर पेशाब करने से सरलतापूर्वक उतरना, रात के समय पेशाब के बिस्तर का तर हो जाना, मूत्र में ढेर सारा रेत निकलना तथा अनजाने में मूत्र निकल जाना – इन सब लक्षणों में लाभकारी है।
ट्यूबर्क्युलीनम 1M – डॉ० नोबेल के मतानुसार यह औषध मूत्र-प्रदाह की महौषध है ।
सीपिया 200 – रुग्णा-स्त्री का ध्यान मूत्राशय के द्वार पर इस कारण केन्द्रित बने रहना कि कहीं पेशाब अपने आप न निकल पड़े, पेशाब को बर्तन में रखने पर उसमें आसानी से न घुलने वाली सफेद परत का जम जाना, पेशाब का वेग इतना प्रबल होना जैसे जरायु भी बाहर निकल कर आ जायेगा । पेशाब में चाकू चलने जैसी पीड़ा, उदासी, पेट में कुछ डूबता-सा अनुभव होना, मुँह तथा नाक से होता हुआ घोड़े की जीन जैसा काला पीव, धब्बा, सब लोगों से दूर एकान्त में रहने की इच्छा – इन सब लक्षणों में हितकर है । यह औषध विशेषकर स्त्रियों के लिए लाभकारी है ।
पेट्रोसिलीनम 3 – पेशाब के समय दर्द के मारे काँपने लगना, भयंकर पीड़ा के कारण कमरे में पाँव पटकना, एकदम पेशाब करने की इच्छा और यदि रोगी को बवासीर भी हो तो उसके मस्सों में अत्यधिक खुजली का अनुभव होना – इन लक्षणों में हितकर है ।
लाइकोपोडियम 30, 200 – इस औषध के मूत्राशय-प्रदाह के रोगी के पेशाब के रेत के लाल कण पाये जाते हैं । पेशाब का गंदला, दुर्गन्धित तथा मवाद युक्त होना, मूत्राशय में भारीपन का अनुभव, बहुत देर में बड़ी कठिनाई से पेशाब उतरना एवं रोगी द्वारा पेट के हाथ से थामे रखना आदि लक्षणों में हितकर है। इस औषध के रोगी बच्चों के कच्छे में पेशाब के लाल कण पाये जाते हैं। दिन के समय कम तथा रात के समय अधिक पेशाब आना, सायं चार बजे से आठ बजे के बीच तकलीफ का बढ़ जाना, रोगी का मीठा पसन्द करना, गर्म-पदार्थों को खाने-पीने की इच्छा, थोड़ा-सा खाना खाते ही पेट का भरा-भरा-सा लगना तथा पेट में गैस भरने के लक्षणों में यह औषध श्रेष्ठ लाभ करती है ।
मर्क-कोर 30 – पेशाब का बूंद-बूंद आना तथा पेशाब करते समय अत्यधिक दर्द होना, जलन होना, खून आना, मूत्राशय में मरोड़, पेशाब करते समय अथवा कर चुकने पर श्लेष्मा तथा खून निकलना, मरोड़ के साथ मल निकलना, मल-त्याग के लिए बहुत जोर लगाने की आवश्यकता, मुँह से लार बहना, मुँह का स्वाद नमकीन बने रहना, पसीना अधिक आना तथा त्वचा का पीली एवं ठण्डी होना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
आर्निका 30, 200, 1M – मूत्राशय पर चोट लगने के कारण उत्पन्न हुआ प्रदाह, हर समय मूत्र-त्याग की इच्छा का बने रहना तथा बूंद-बूंद करके मूत्र का अपने आप निकल जाना, मूत्राशय से रक्त आना, पेशाब का गाढ़ा तथा पसयुक्त होना, पेशाब में जलन, आपेक्षिक घनत्व का अधिक होना, रोगी का सम्पूर्ण शरीर दुखना तथा उसे स्पर्श न कर सकना, रोगी का अत्यन्त रुग्ण होते हुए भी स्वयं को स्वस्थ बताना – इन सब लक्षणों में यह औषध विशेष लाभ करती है ।
पल्सेटिला 30, 200 – अत्यधिक मरोड़, अत्यन्त दर्द, रक्त तथा जलनयुक्त पेशाब होना, मूत्राशय में एक बूंद मूत्र के जमा होते ही उसे निकालने की बेचैनी का उत्पन्न होना, तनिक भी छींकने, हँसने, खाँसने अथवा दरवाजे का खटकने के शब्द सुनने मात्र से ही बूंद-बूंद करके पेशाब का टपकने लगना, रात को बिस्तर पर पेशाब निकल जाना, रोगी का ध्यान हर समय मूत्राशय पर अटके रहना तथा ध्यान हटते ही मूत्र का निकल पड़ना आदि लक्षणों में हितकर है। गर्भावस्था के मूत्राशय प्रदाह की यह एक मात्र औषध मानी जाती है। मूत्राशय के पुराने शोथ में भी लाभ पहुँचाती है।
स्टैफिसेग्रिया 30 – डॉ कैण्ट के मतानुसार नव-विवाहिता युवतियों के मूत्राशय-प्रदाह में यह औषध बहुत लाभ करती है। बार-बार दर्द के कारण पेशाब का अपने आप निकल जाना, पेशाब में रक्त आना, पेशाब जिस जगह लग जाय, वहाँ की त्वचा को छील दे तथा उस स्थान पर जलन होना, पेशाब करने से पूर्व तथा बाद में जलन होना, हरकत से कष्ट में वृद्धि होना आदि लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है। डॉ० नैश के मतानुसार इस औषध के रोगी को पेशाब करते समय जलन नहीं होती, परन्तु शेष समय जलन होती रहती है ।
इक्विसेटम Q, 6 – वृद्धा-स्त्रियों अथवा बच्चों का अपने-आप पेशाब निकल जाने अथवा कठिनाई या दर्द के साथ पेशाब होने के लक्षणों में लाभकारी है । बार-बार पेशाब की हाजत, पेशाब कर चुकने पर अत्यधिक दर्द, पेशाब का बूंद-बूंद होना तथा पेशाब करते समय मूत्र-नली में जलन एवं कष्ट का अनुभव होना – इन लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
लैकेसिस 30, 200 – मूत्राशय-प्रदाह में दुर्गन्धयुक्त सड़ी श्लेष्मा का निकलना, पेट पर कपड़े का स्पर्श भी सहन न हो पाना, मूत्राशय अथवा पेट में एक गोले के लुढ़कते-फिरने जैसा अनुभव, पेशाब की हाजत होने पर भी पेशाब का न उतरना अथवा अत्यधिक जलन के साथ थोड़ा पेशाब होना, पेशाब करने के लिए रोगी को लेट जाना पड़ता हो – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। इस औषध का रोगी उष्ण-प्रकृति का होती है, वह गर्मी को सहन नहीं कर पाता तथा स्पर्श-असहिष्णु भी होता है। वह बहुत अधिक बोलने वाला तथा शक्की स्वभाव का होता है। सोने के बाद उसकी तबियत और अधिक बिगड़ जाती है।
- गरम पानी में फ्लानैल का टुकड़ा भिगोकर, उसके द्वारा रोगी के तलपेट पर सिकाई करना, रोगी को गरम पानी से स्नान कराना तथा उसे कमर तक पानी में डुबो कर रखना हितकर रहता है ।
- थोड़े से गुनगुने पानी में दस-पन्द्रह ग्रेन बोरिक एसिड मिलाकर, उससे मूत्रनली तथा तलपेट को धीरे-धीरे धोना भी लाभ करता है ।
- रोगी को मिश्री अथवा चीनी मिश्रित शर्बत पिलाने से पेशाब के सरलतापूर्वक साफ आने में सहायता मिलती है ।
- रोगी को हल्का तथा सुपाच्य भोजन देना उचित है ।