कैंसर का होम्योपैथिक इलाज: कर्कट अर्थात् कैंसर रोग दो प्रकार का होता है – (1) शरीर की ऊपरी त्वचा अर्थात् होंठ, स्तन तथा श्लैष्मिक एवं स्नेहिल-झिल्ली की ऊपरी आवरक-झिल्ली में तथा (2) संयोजक तन्तुओं में । संयोजक तन्तुओं के कैंसर को ‘माँसार्बुद’ भी कहते हैं । माँसार्बुद (कैंसर) की चिकित्सा के विषय में ‘अर्बुद‘ की चिकित्सा के साथ ही प्रकाश डाला जा चुका है ।
कैंसर की उत्पति के कारणों में मानसिक-उत्तेजना तथा शारीरिक-उत्तेजना मुख्य है । चिन्ता, आर्थिक-हानि के कारण अवसाद, आदि मानसिक-उत्तेजना के कारण हैं तथा शारीरिक-उत्तेजना के कारणों में धूम्रपान, दाँत के अग्रभाग का जीभ में निरन्तर लगते रहकर वहाँ जख्म उत्पन्न कर देना, रजोरोध तथा स्तनों को कसे रखना आदि की गणना की जाती है। आमाशय का पुराना घाव, बड़ी आँत में रोगोत्पादक कृमि की उपस्थिति, गहरी चोट के कारण शारीरिक-विकृति, स्नायु-शूल, चर्म-रोग, वात-रोग, सिर का पुराना दर्द आदि कारण भी इस रोग को उत्पन्न कर सकते हैं। यह रोग वंशानुगत भी हो सकता है ।
इस रोग की सर्वथा सफल-चिकित्सा ऐलोपैथी में भी नहीं है । उसमें एक्स-रे अथवा रेडियम किरणों के प्रयोग द्वारा इसे नष्ट करने की कोशिश की जाती है । प्रारम्भिक-अवस्था के कुछ रोगी ठीक भी हो जाते हैं, परन्तु बढ़ा हुआ रोग समूल नष्ट नहीं हो पाता, उसके कुछ सामान्य लक्षणों में कमी अवश्य आती है। इस रोग की अन्तिम परिणति ‘मृत्यु’ में ही होती है ।
डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार होम्योपैथिक-चिकित्सा द्वारा भी कैंसर का मूलनाश होना सम्भव नहीं हैं, परन्तु रोगी के कष्टों में कमी अवश्य आ जाती है ।
इस लेख में हम बच्चेदानी के कैंसर के एक केस की चर्चा करेंगे कि कैसे होमियोपैथी दवाओं से इस समस्या को ठीक किया गया।
एक महिला रोगी उम्र लगभग 66 वर्ष जो बच्चेदानी के कैंसर से पीड़ित थी, दो महीने नर्सिंग होम में चिकित्सा कराने के बाद उसे असाध्य समझकर घर भेज दिया गया। उस अवस्था में मुझे रोगी को परामर्श एवं उपचार हेतु बुलाया गया।
रोगिणी बेहोशी की अवस्था में थी, उससे लक्षणों की जानकारी लेना कठिन था, केवल जो देख सकता था, वही समझकर चिकित्सा की जा सकती थी। देखने पर पाया कि उसका पेट घड़े की तरह फूल रहा था, जो चाईना 30 देने से कम हो जाता था और एक घंटे बाद पुनः उसी अवस्था में आ जाता जैसे कोई फुग्गे में हवा भर रहा हो। उसी शाम फिर मरीज को देखने गया और देखा कि वह बेहोश तो थी परन्तु थोड़ी देर में उसका पेशाब थोड़ी-थोड़ी मात्रा में निकलता, जिसके साथ वह बहुत जोर से बेहोशी में ही कराहती थी, केवल इस एक लक्षण से मुझे अनुभव हुआ कि उसकी मूत्र-नलि में बहुत जलन है, जो पेशाब के समय तेज होती है और पेशाब भी रुक-रुक कर थोड़ा-थोड़ा हो रहा है, जिसने ‘केन्थरिस’ औषधि का संकेत दिया। मैने उस समय केन्थरिस 6ch की एक-एक घंटे में देने के लिए कहा। जब यह औषधि दी गई उस समय एक दूसरे डॉक्टर ने कहा कि रोगिणी कुछ घंटे की मेहमान है, मैं व्यर्थ में प्रयास कर रहा हूँ। यह बात ठीक थी कि रोगिणी की सभी ज्ञान इन्द्रियों ने कार्य करना बंद कर दिया था, घरवालों ने बताया कि कई दिनों से धीरे-धीरे देखना, सुनना, बोलना आदि कार्य भी नहीं कर रही है और अब रोगिणी को इस अवस्था में ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल से डिस्चार्ज करा लाये हैं, ताकि उसका अन्त घर में ही हो।
‘केन्थरिस’ 6 ने चमत्कार दिखाया। रोगिणी को अगले दिन होश आ गया और उसकी सभी ज्ञान इन्द्रियों ने पुनः कार्य करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी स्थिति सुधरने लगी और वह बाद में स्वयं चलकर क्लिनिक में आकर दवा लेने लगी। उसका रोग अर्थात् कैन्सर ऑफ सर्विक्स भी लगभग दो साल में ठीक हो गया। कभी-कभी होम्योपैथिक दवा जादू की तरह काम करता है, विश्वास नहीं होता की आखिर ऐसा कैसे हो गया, परन्तु ऐसे कई केस हैं, जिसमे होमियोपैथी ने जीवन दान दिया है।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ हितकर सिद्ध होती हैं :-
Homeopathic Treatment For Cancer In Hindi
हाइड्रेस्टिस 30 – कैंसर का घाव बनने से पूर्व की अवस्था में, जबकि कैंसर के अन्य लक्षण प्रकट न हुए हों, केवल किसी अंग में दर्द बना रहता हो – इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है। पीला तथा रक्तहीन रुग्ण-चेहरा, क्षीण-शरीर, उत्साहहीनता, भूख न लगना तथा पुराना कब्ज-ये सब कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण माने जाते हैं । इस औषध को आधा-आधा घण्टे के अन्तर से तब तक देते रहना चाहिए, जब तक कि उक्त लक्षण दूर न होने लगें ।
कार्सिनोसिन 200 – जिन रोगियों को कैंसर होने का शक हो अथवा किसी रोगी के वंश में कैंसर के लक्षण हों, उन्हें यह औषध सप्ताह में एक मात्रा के हिसाब से देते रहने पर लाभ होता है ।
आर्स-आयोड 3x – तीखे तथा छिलने वाले स्राव के लक्षणों में, जिसके कारण कैंसर हो जाने का भय हो, इस औषध को भोजन के ठीक बाद दो ग्रैन की मात्रा में, दिन में तीन बार सेवन करना चाहिए । इस औषध का रोगी सींक जैसे पतले-दुबले शरीर का, कमजोर हाजमे वाला, त्वचा के अनेक रोगों का शिकार तथा जलनशील दर्द वाला होता है ।
कोनियम – डॉ० बर्नेट के मतानुसार यह औषध मोतियाबिन्द तथा कैंसर में लाभ करती है – यह डॉ० स्टोर्क का भी अनुभव है।
फाइटोलैक्का 3 – गाँठों की सूजन और जलन, ग्रन्थि-शोथ के साथ मोटा होने की प्रवृत्ति, रक्त-संचार का शिथिल होना तथा आलसी स्वभाव-ये सब कैंसर की प्रवृत्ति के सूचक हो सकते हैं। इन लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से कैंसर होने की सम्भावना नहीं है ।
विभिन्न अंगों के कैंसर की चिकित्सा
जीभ का कैंसर – इसमें ‘थूजा 3x‘ का प्रति 6 घण्टे बाद सेवन करें तथा इसी औषध के मूल-अर्क को प्रात:-सायं रुई की फुरहेरी द्वारा रोगी स्थान पर लगायें । यह उपचार जीभ में कैंसर होने का शक होने पर ही करना चाहिए । यदि जीभ में कैंसर का हो जाना असंदिग्ध हो तो ‘हाइड्रेस्टिस 1‘ को प्रति 6 घण्टे के अन्तर से सेवन करें तथा इसी औषध के मूल-अर्क को समभाग ग्लिसरीन में मिलाकर, प्राय:-सायं दिन में दो बार रुई की फुरहरी से रोगी स्थान पर लगाते रहें। यदि इस उपचार को दो-तीन महीने तक करते रहने पर भी कोई लाभ न हो तो ‘कैलि-साइनेट 3x‘ का प्रात:-सायं सेवन करें । इस औषध को 6 से 200 तक की शक्ति में दिया जा सकता है। जीभ के घाव, जिनमें जीभ के किनारे कड़े पड़ जाएँ तथा बोलना कठिन हो जाय, परन्तु रोगी की विचार-शक्ति बनी रहे ऐसे लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है।
होंठ का कैंसर – डॉ० क्लार्क के मतानुसार इस रोग में ‘लाइकोपोडियम 6‘ को प्रति 8 घण्टे के बाद अथवा ‘सीपिया 30‘ को प्रति 8 घण्टे बाद दो ग्रेन की मात्रा में अथवा ‘कैनेबिस-सैटाइवा Q’ को दो बूंद की मात्रा में, 15 दिन में एक बार लेते रहने से लाभ होता है । होंठ अथवा त्वचा या किसी अन्य स्थान के कैंसर में ‘आर्स आयोड 3x‘ को दो ग्रेन की मात्रा में भोजन के पश्चात् दिन में तीन बार लेते रहने से लाभ होता है, इसके साथ ही ‘आर्सेनिक 3x‘ का लोशन प्रात:-सायं-दिन में दो बार रोगी स्थान पर लगाना चाहिए। एक औंस पानी में 10 बूंद औषध डालकर लोशन तैयार किया जाता है।
उक्त उपचार के साथ ही बीच-बीच में हर पन्द्रहवें दिन ‘कार्सिनोसिन 200‘ अथवा ‘एपिथीलियोमीनम 200’ की एक मात्रा लेते रहना लाभकर रहता है। इससे रोग के दूर होने में सहायता मिलती है।
छाती में कैंसर – यदि छाती पर कोई गाँठ पड़ गई हो और उसमें दर्द हो तथा उसके कैंसर होने के विषय में भी कोई निश्चय न हो तो ‘ब्रायोनिया 1’ को प्रति 8 घण्टे के अन्तर से देना हितकर रहता है । यदि उस गाँठ में दर्द न हो तो ‘कैल्केरिया आयोड 3x‘ को 4 बूंद की मात्रा में प्रति 8 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। यदि रोगी की दुर्बलता बढ़ती चली जाय तो ‘आर्स आयोड 3x‘ को दो ग्रेन की मात्रा में, नित्य दिन में तीन बार भोजन के साथ देना चाहिए । यदि यह ज्ञात हो कि रोगी के वंश में कैंसर की बीमारी चली आ रही है तो ‘कार्सिनोसिन 200‘ की मात्रा हर पन्द्रह दिन के अन्तर से देनी चाहिए । इसके साथ ही पूर्वोक्त चिकित्सा को भी करते रहना आवश्यक है । यदि यह निश्चय हो जाय कि गाँठ में कैंसर ही है तो ‘स्किरहीनम 200‘ अथवा ‘कार्सिनोसिन 200‘ को प्रति सप्ताह अथवा प्रति पन्द्रहवें दिन देते रहें ।
पेट का कैंसर – पेट के कैंसर में ‘ओरनिथोगैलम’ के मूल-अर्क की एक बूंद को पानी में डालकर देना चाहिए। इससे रोगी को काले रंग की उलटी आती है और उसे आराम का अनुभव होता है । यदि पहली मात्रा की कोई प्रतिक्रिया न हो तो 48 घण्टे बाद इसी औषध की दूसरी मात्रा देकर देखना चाहिए ।
यदि पेट के कैंसर में जलन हो तथा बेचैनी, थोड़ा-थोड़ा पानी पीने की इच्छा, गरम सेंक से आराम का अनुभव-ये सब लक्षण हों तो ‘आर्सेनिक‘ देना हितकर रहता है, पेट के कैंसर के लिए फास्फोरस भी अच्छी औषध है तथा चेलिडोनियम 1M अथवा C. M. देकर भी देखा जा सकता है ।
जरायु का कैंसर – यदि जरायु में कैंसर हो, जरायु से बहुत अधिक रक्त आता हो, गाँठ पड़ गई हो तथा दर्द हो तो-इन लक्षणों में ‘एपिहिस्टीरीनम 200‘ को प्रति सप्ताह एक मात्रा के हिसाब से देना चाहिए। इसके साथ ‘रूटा Q‘ की दो बूंदें दुग्ध शर्करा में डालकर पन्द्रह दिन में एक बार देते रहना चाहिए ।
हाइड्रैस्टिस को समभाग ‘ग्लिसरीन‘ में मिलाकर घोल तैयार कर लें तथा इस घोल से जरायु को धोयें । इस औषध के आयण्टमेण्ट का प्रयोग भी किया जाता है।
यदि जरायु से रक्त का स्राव अधिक बढ़ जाय तो ‘हाइड्रेस्टिस‘ के स्थान पर ‘हैमामेलिस‘ का लोशन (पूर्वोक्त विधि से ही) तैयार करके जरायु को धोना चाहिए तथा इसी औषध का आयण्टमेण्ट भी प्रयोग में लाना चाहिए ।
हड्डी का कैंसर – इस रोग में ‘फास्फोरस 30‘ (प्रति 6 घण्टे बाद) अथवा ‘सिम्फाइटम 30’ (प्रति 4 घण्ट बाद) अथवा ‘आरम आयोड 3x‘ (प्रति 6 घण्टे बाद) का सेवन कराना चाहिए तथा ‘सिम्फाइटम Q‘ में लिंट (रुई) को भिगोकर, उसे रोगी हड्डी के ऊपर लगाना चाहिए।
डॉ० एलउड की चिकित्सा-पद्धति
कैंसर रोग के विशेषज्ञ डॉ० एलउड (Ellwood) निम्नलिखित अंगों के कैंसर में उनके सामने उल्लिखित होम्यो-औषधियों के प्रयोग को लाभकर मानते हैं :-
- उप-जिहवा का कैंसर – फेरम-पिकरिक 3x तथा हाइड्रैस्टिस Q ।
- गल-कोष, गल-नली का कैंसर – फेरम-पिकरिक 3x तथा थूजा 1x ।
- दाँयें स्तन का सर्कोमा – आर्स आयोड 3x तथा हाइड्रेस्टिस 3x – इन दोनों औषधियों की पर्यायक्रम से देना चाहिए ।
- नाक का सर्कोमा – नेट्रम-म्यूर 200 ।
- उरु की हड्डी का सर्कोमा – साइलीशिया 200।
- बाँयें उरु की हड्डी का सर्कोमा – सिलिका 6।
- जरायु-ग्रीवा का कैंसर – आर्स-आयोड 3x तथा पल्स 3x ।
- बगल की बढ़ी हुई ग्रन्थि का कैंसर – साइलीशिया 200 ।
- स्थूलान्त्र का कैंसर – हाइड्रेस्टिस 6x, क्रोकस Q – (सप्ताह के अन्त में एक बार सेवन करें), नासूर के लिए सिलिका 6 का प्रयोग करें।
- बड़ी आँत के आखिरी अंश का कैंसर – हाइड्रेस्टिस 1x, सैलबिया Q – सप्ताह के अन्त में एक बार सेवन करें ।
- यकृत के कैंसर के साथ उदरी रोग होने पर – आर्स-आयोड 3x तथा हाइड्रेस्टिस Q ।
कैंसर की लक्षणानुसार-चिकित्सा
विभिन्न लक्षणों के आधार पर कैंसर में निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
जलने वाले कैंसर में – ‘आर्स’ (निम्न-क्रम में) तथा हाइड्रैस्टिस 3x, Q – मुख द्वारा सेवन तथा बाहय-प्रयोग के लिए |
गाँठ अथवा जरायु के कैंसर में – कार्बोएनि 1x वि० ।
हड्डी के कैंसर में – ऐकोन-रेडिक्स Q, (इसे आधा से तीन बूंद तक की मात्रा में रोगी को नींद आ जाने तक ही सेवन करायें, नींद आ जाने पर न दें)। कैंसर के कारण उत्पन्न अत्यधिक कष्ट को शान्त करने की यह रामबाण औषध है ।
कैंसर से स्राव होने पर – आरम-मेट 3x वि०।
अत्यधिक जलन के साथ स्राव होने पर, विशेष कर जरायु के कैंसर में – लेपिस एल्बा 2x, कार्सिनोसिन 30, 200 (सप्ताह में केवल एक बार) ।
कैंसर की कठिन तकलीफ में – एक्स-रे 30, 200 (सप्ताह में केवल एक बार) ।
गहरे लाल, नीले अथवा खाकी रंग के कैंसर में लैकेसिस 6, 30 ।
आघात के कारण उत्पन्न हुए अथवा छाती के कैंसर में – कोनियम 6, 30 ।
(1) जख्म वाले कैंसर की दुर्गन्ध कम करने के लिए ‘कार्बोलिक-एसिड’ अथवा ‘आयोडोफार्म’ के पाउडर का प्रयोग करना चाहिए अथवा ‘कोयले की पुल्टिस’ लगानी चाहिए । ‘रूटा का मरहम’ लगाना भी हितकर रहता है।
(2) कैंसर के रोगी को भोजन के पूर्व तथा बाद में थोड़ा-सा विश्राम करना चाहिए। खुली हवा में थोड़ा टहलना भी उचित है।
(3) स्तन में कर्कट होने पर हाथ को अधिक हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।
(4) रोगी को अजीर्ण न हो जाय-यह ध्यान रखना चाहिए ।
(5) माँस, मछली, अण्डा, शराब, कॉफी, चाय, उड़द, सेम, मसूर, दूध तथा नमक मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए । अधिक परिमाण में ताजे फलों का सेवन करना उचित रहता है ।